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सीट शेयरिंग के बाद BJP में बगावत, MLC अशोक अग्रवाल निर्दलीय लड़ेंगे लोकसभा चुनाव

शीर्ष पार्टी नेतृत्व के फैसले से नाराज होकर विधान पार्षद ने अब पार्टी को बाय-बाय करने का मन बना लिया है, इसकी घोषणा एमएलसी अशोक अग्रवाल आगामी 19 मार्च को करेंगे.

विधान पार्षद अशोक अग्रवाल

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Published : Mar 18, 2019, 8:34 AM IST

कटिहारः बिहार एनडीए में सीट शेयरिंग की घोषणा के बाद भाजपा में सिर फुटौवल की नौबत आ गई है.आजादी के बाद भाजपा जिस सीट को अपनी परम्परागत सीट बताकर हर चुनाव दावा करती रही है, उससीट को एनडीए केसहयोगी को सौंप देना कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रहा है. शीर्ष नेतृत्व के इस फैसले के खिलाफ लोगों ने दल को सदा के लिये बाय-बाय करने का मन बना लिया है.

19 मार्च को दिल्ली से कटिहार लौटने के बाद एमएलसी अशोक अग्रवाल कटिहार संसदीय सीट से अपने उम्मीदवारी की घोषणा करेगें और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपने नामजदगी का पर्चा दाखिल करेगें.

विधान पार्षद अशोक अग्रवाल का बयान

कटिहार संसदीय सीट जदयू के नाम
कहा जा रहा है कि विधान पार्षद अशोक अग्रवाल लोकसभा चुनाव 2019 के लिये कटिहार संसदीय सीट से बीजेपी के दावेदार थे.उनके नाम की दावेदारी कटिहार से पटना के रास्ते दिल्ली भाजपा चुनाव समिति के पास तक गयी थी.इस बाबत उन्होंने अपनी चुनावी तैयारी भी शुरू कर दी थी, लेकिन रविवार को पटना में सीट शेयरिंग की घोषणा के बाद कटिहार संसदीय सीट जदयू के खाते में चली गई.इस तरह विधान पार्षद अशोक अग्रवाल की दावेदारी भी खत्महो गई.

पार्टी को बाय-बाय करेंगे नेता
शीर्ष पार्टी नेतृत्व के फैसले से नाराज होकर विधान पार्षद ने अब पार्टी को बाय-बाय करने का मन बना लिया है और इसकी घोषणा एमएलसी अशोक अग्रवाल आगामी 19 मार्च को अपने नई दिल्ली से कटिहार लौटने के बाद करेगें. इस बाबत तैयारी पूरी कर ली गईहै और स्थानीय चन्द्रकला गार्डेन में आपात बैठक बुलायी गईहै,जिसमें दस हजार समर्थकों को आने का निमंत्रण दिया गया है.

नाराज हैं बीजेपी के कार्यकर्ता
बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सीमांचल की चार सीटों में कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज सभी सीटों पर अन्य दलों से गठबंधन के बावजूद खुद चुनाव लड़ाथा,लेकिन लोकसभा चुनाव- 2019 के चुनाव में सिर्फ अररिया संसदीय सीट को छोड़कर सभी सीटों परइस बार जेडीयू अपने प्रत्याशी मैदान में उतारेगी.अब तो यह आने वाला समय ही बताएगा कि एनडीए के सीट शेयरिंग के फैसले को मतदाता किस हद तक स्वीकार करते हैं.

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