भभुआ(कैमूर): कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर बिहार में 6 सितंबर तक लागू लॉकडाउन की वजह से इस साल मोहर्रम पर ताजिया के साथ जुलूस नहीं निकला गया. कोरोना महामारी के मद्देनजर प्रदेश सरकार ने मोहर्रम के तमाम आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया है. वहीं, इस साल कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यौम ए आशूरा (दस मोहर्रम) के दिन भी जुलूस नहीं निकला गया.
कैमूर: मोहर्रम में इस साल नहीं निकला ताजिया और जुलूस, बड़े आयोजन पर लगी थी प्रतिबंध
कैमूर में मोहर्रम के अवसर पर इस साल बड़े आयोजन पर प्रतिबंध लगाया गया था. वहीं, इस साल ताजिया और जुलूस निकाले बगैर हसन हुसैन को किया गया.
मोहर्रम का आयोजन
मोहर्रम के अवसर पर अलम, ताजिया, सिपर और आखाड़े का कोई जुलूस नहीं निकाला और शस्त्र का प्रदर्शन भी नहीं किया गया. कैमूर जिले के ताजिया कमिटी ने पहले ही फैसला किया था कि कोरोना महामारी को देखते हुए इस बार मोहर्रम पर किसी भी प्रकार का अखाड़े जुलूस का आयोजन नहीं होगा. साथ ही लाउडस्पीकर और डीजे का उपयोग भी नहीं हुआ. इस बार मोहर्रम पर ताजिया को अपने-अपने चौक पर रखा गया. वहीं, भभुआ नगर के वार्ड नंबर 22 में मोहर्रम के मौके पर जलसा का आयोजन हुआ. जहां हसन-हुसैन को याद करते हुए उनके बारे में बताया गया. जहां वार्ड नम्बर 22 के वार्ड पार्षद हलीम मंसूरी, बसपा नेता जैनेन्द्र आर्य और इरसाद खान मौजूद रहे.
कैसे मनाते हैं मोहर्रम
मोहर्रम के इस महीने को गम के महीने के तौर पर मनाया जाता है. मोहर्रम में कई लोग रोजे रखते हैं. पैगंबर मुहम्मद के नाती की शहादत और कर्बला के शहीदों के बलिदानों को याद किया जाता है. कई लोग इस महीने में पहले 10 दिनों के रोजे रखते हैं. जो लोग 10 दिनों के रोजे नहीं रख पाते, वे 9वे और 10वें को रोजा रखते हैं. इस दिन जगह-जगह पानी और शरबत बांटे जाते हैं. इस दौरान लोग ताजिया और जुलूस निकालते हैं.