कैमूर: लोकतंत्र के सबसे बड़ा त्योहार यानी लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है. ऐसे में आज हम सासाराम संसदीय क्षेत्र 1962 की कहानी बताते हैं. सासाराम लोकसभा सीट की पहचान लोकतंत्र के इतिहास में आजादी के बाद से ही ऐतिहासिक मानी जाती है, क्योंकि इस संसदीय क्षेत्र से जीत कर बाबू जगजीवन राम को पहली बार देश के उपप्रधानमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ था. वहीं दूसरी तरफ उनकी बेटी मीरा कुमार ने लोकसभा की पहली महिला स्पीकर बन इतिहास कायम किया.
1962 इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में अंकित है क्योंकि यही वह साल है जब कांग्रेस के उम्मीदवार जगजीवन राम की साख डूबने के कगार पर थी और लेकिन तभी पंडित जवाहर लाल नेहरू भभुआ पंहुचे और जगजीवन राम की साख बचाई.
साल 1962 भभुआवासियों के लिए क्यों था खास
इसी साल पंडित जवाहरलाल नेहरू को एक झलक देखने और उन्हें सुनने के लिए दूर- दराज से लोग भभुआ पहुंचे थे. लेकिन लोगों का जमावड़ा सभास्थल से ज्यादा हेलिपैड के पास देखने को मिला. सभास्थल और हेलिपैड की दूरी लगभग 2 कि.मी. की थी, बावजूद इसके लोगों का जनसैलाब हेलीपैड के नजदीक उमड़ा. भीड़ ने पहले नेहरू को हेलीकॉप्टर से उतरते देखा और इसके बाद सभास्थल पर संबोधन को सुनने गए.
विनय पाठक, प्रत्यक्षदर्शी 1962 का मुकाबला
साल 1962 में सासाराम संसदीय क्षेत्र में जगजीवन राम का मुकाबला मध्यप्रदेश के निवाशी स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार रामेश्वर अग्निभोज से था. एक तरफ जहां स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार को जिताने के लिए रामगढ़ महाराज कामाख्या नारायण सिंह अपने उड़नखटोला से गांव-गांव में सभा कर लोगों को अपने पक्ष में लुभा रहे थे वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के उम्मीदवार जगजीवन राम की चिंताए लगातार बढ़ती जा रही थी.
जब मतदान के 3 दिन पहले आयोजित की गई सभा
बेलाव थाना अंतर्गत सिम्भी गांव के निवासी विनय पाठक(76) ने सारा नजारा अपनी आंखों के सामने देखा. वे बताते हैं कि उस वक़्त जगजीवन राम कांग्रेस के उम्मीदवार थे. साथ ही वे मतदान का अंतिम सप्ताह में विपक्ष की स्वतंत्र पार्टी के रामेश्वर अग्निभोज काटे की टक्कर दे रहे थे. लेकिन, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को लगा कि कहीं यह सीट हाथ से निकल न जाए, ऐसे में 1962 में सासाराम संसदीय क्षेत्र में पहली बार नेहरू को भभुआ आना पड़ा था.
वर्तमान में भभुआ का बेलाव मोड़ उस वक़्त टेढ़वा मोड़ के नाम से जाना जाता था, जहाँ नेहरू की सभा हुई थी. बहरहाल आपात स्थिति में पंडित नेहरू का आना सफल हुआ था और जगजीवन राम ने लगभग 54 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी. प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो यदि नेहरू नहीं आते तो उस समय नतीजा कुछ और ही होता.
विपक्ष ने अपनी सभा में प्रयोग किया था हेलीकॉप्टर
वर्ष 1962 में सासाराम संसदीय क्षेत्र के लोगों ने हेलीकॉप्टर का सिर्फ नाम ही सुना था. उस समय अपने चुनाव प्रचार के लिए विपक्ष के रामेश्वर अग्निभोज ने संसदीय क्षेत्र के एक दर्जन से अधिक गांव में हेलीकॉप्टर से अपना प्रचार किया था. वे अपनी सभा को संबोधित करने हेलीकॉप्टर से जाते थे. ऐसे में विपक्षी सभा को लोगों का हुजूम हेलीकॉप्टर देखने के लिए लगता था.
विपक्षी सभाओं में भीड़ के मद्देनजर बाबू जगजीवन राम अपनी सीट बचाने के लिए बेहद विचलित रहते थे. रामगढ़ महाराज के हाई-टेक जनसभा के कारण जगजीवन राम की मुश्किलें काफी बढ़ गई थी. तब जाकर मतदान से 3 दिन पहले नेहरू ने भभुआ में जनसभा की और अपने उम्मीदवार जगजीवन राम को जिताया.
साल 1971 के बाद लगातार 33 साल तक हारी थी कांग्रेस
1971 के बाद सासाराम संसदीय क्षेत्र से लगातार 33 सालों तक कांग्रेस दुबारा जीत नहीं पाई. 1977 की लोकसभा में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था. जगजीवन राम ने कांग्रेस छोड़कर भारतीय लोक दल के टिकट पर चुनाव में लड़ना तय किया और जीत दर्ज की. 1971 में कांग्रेस की टिकट पर जगजीवन राम ने चुनाव अपने नाम किया था लेकिन 1977 में कांग्रेस के उम्मीदवार मुंगेरीलाल थे. जगजीवन राम के लिए यह सीट काफी महत्वपूर्ण थी.
ज्ञात हो कि साल 1962 नेहरू की जनसभा के लिए अधौरा से भभुआ आ रहे अधिकारियों की एक गाड़ी अधौरा की घाटी में पलट गई थी. जिस दुर्घटना में बीडीओ सहित लगभग 10 अधौरा कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारियों की जान चली गई थी.