गया:गया को विष्णु का नगर माना जाता है, जिसे लोग विष्णु पद के नाम से भी जानते हैं. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण के अनुसार यहां पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है. मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं. जिन लोगों का देहांत इस तिथि को हुआ हो या कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष को हुआ हो, उनका तर्पण करने का विधान है. पितृ पक्ष के तीसरे दिन (Importance Of Third Day Pitru Paksha) भी बड़ी संख्या में पिंडदानी पितरों का पिंडदान कर रहे हैं.
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कैसे करें तीसरे दिन पिंडदान?:पहले पंचतीर्थ में उत्तर मानस तीर्थ की विधि है. हाथ मे कुश लेकर सिर पर जल छींटे. फिर उतर मानस में जाकर आत्म शुद्धि के लिए स्नान करें. उसके बाद तर्पण करके पिंडदान करें. सूर्य को नमस्कार करने से पितरों को सूर्यलोक की प्राप्ति होती है. उतर मानस से मौन होकर दक्षिण मानस में जाएं. दक्षिण मानस में तीन तीर्थ हैं, उनमें स्नान करके अलग-अलग कर्मकांड करके फल्गू नदी के तट पर जो जिह्वालोल तीर्थ है, वहां पिंडदान करने से पितरों को अक्षय शांति मिलती हैं. इसके बाद तीर्थों की श्राद्ध की योग्यता सिद्वि के लिए गदाधर भगवान को पंचामृत से स्नान करावें और वस्त्रालंकार चढ़ावें. तर्पण खुले स्थान में कर सकते हैं, परंतु गया में श्राद्ध के लिए खुले स्थान में बैठने पर कंधे पर अंगोछा रख कर श्राद्ध करना चाहिए. ब्रह्मचर्य का पालन, जमीन या कास्ट पर सोना एवं एक बार भोजन अनिवार्य है.
इन सामग्रियों का किया जाता है पूजा में प्रयोग:गंगाजल, कच्चा दूध, जौ, तुलसी और शहद मिश्रित जल की जलांजलि देने के बाद गाय के घी का दीप जलाने का प्रावधान है. धूप देना चाहिए, गुलाब के फूल और चंदन पितरों को अति प्रिय माने जाते हैं. उसके बाद जितने भी पूर्वजों का नाम याद हो ध्यान करके स्वधा शब्द से जलार्पण करना चाहिए. श्राद्ध में कढ़ी, खीर, पूड़ी और सब्जी का भोग लगाया जाता है. तृतीय श्राद्ध में तीन ब्राह्मणों को भोज कराया जाता है. उन्हें चीनी,चावल के साथ ही यथाशक्ति दान देकर तृप्त किया जाता है.
भूल के भी ना करें ये काम:हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व होता है. पितृपक्ष का समय पितरों यानी पूर्वजों के लिए समर्पित है. इसकी शुरुआत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होती है, जो अश्विम मास की अमावस्या तिथि को समाप्त होती है. ऐसे में इस दौरान घर के किचन में मीट, मछली, मांस, लहसून, प्याज, मसूर की दाल, भूलकर भी न बनाएं. ऐसा करने से पितृ देव नाराज होते हैं और पितृ दोष लगता है. इसके साथ ही इस दौरान जो लोग पितरों का तर्पण करते हैं उन्हें शरीर में साबुन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़े, भूमि, भवन सहित सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. इस दौरान कोई भी मांगलिक काम करने से परहेज करें.
पितरों को मिलता है बैकुंठ में निवास: ज्योतिषों के अनुसार जिस तिथि को माता-पिता, दादा-दादी आदि परिजनों की मृत्यु होती है, उस तिथि पर इन सोलह दिनों में उनका श्राद्ध करना उत्तम रहता है. जब पितरों के पुत्र या पौत्र द्वारा श्राद्ध किया जाता है तो पितृ लोक में भ्रमण करने से मुक्ति मिलकर पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो जाता है.
पितृपक्ष की तिथि:आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष माना जाता है. वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है. मान्यता के मुताबिक, पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि (बरसी) तथा महालय (पितृपक्ष) में उनका विधिवत श्राद्ध करे.
गया में ही क्यों पिंडदान?: गया को विष्णु का नगर माना जाता है, जिसे लोग विष्णु पद के नाम से भी जानते हैं. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण के अनुसार यहां पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है. मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं.
गया में भगवान राम ने भी किया था पिंडदान: ऐसी मान्यताएं हैं कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए यहीं आये थे और यही कारण है की आज पूरी दुनिया अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए आती है.
गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.
पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.
दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.
तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.