गयाःहोली की परंपरा हजारों साल से चली आ रही है. देश में होली का त्योहार कई जगहों पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. गया के टिकारी किला में भी होली मनाने का अलग परंपरा थी. ये परंपरा टिकारी किला के रानी ने शुरू की थी जो अब बिल्कुल विलुप्त हो गई है.
टिकारी राज की रंगपंचमी की परंपरा हुई विलुप्त, कभी रानी ने की थी शुरुआत
टिकारी राज से ही झुमटा का प्रचलन शुरू हुआ था. टिकारी क्षेत्र के वृद्धजनों के अनुसार टिकारी राज में होली के दूसरे दिन क्षेत्र में झुमटा का प्रचलन शुरू हुआ था. जो धीरे धीरे क्षेत्र के आसपास में भी प्रचलित हुआ. युवाओं की टोली झुंड बनाकर सड़कों पर निकलती थी और पानी की बौछार कर समाजिक समरसता का संदेश देती थी.
होली मनाने की अलग परंपरा
मगध क्षेत्र के प्रसिद्ध रियासत टिकारी राज घराने की होली आज भी क्षेत्र के बुजुर्ग याद कर प्रफुल्लित हो जाते हैं. एक जमाने में पांच दिनों तक चलने वाली रंगपंचमी यानी होली पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी है. टिकारी राज में होली बहेलिया, बिगहा और रानीगंज के लोगों की ओर से अलग ही तरह से खेली जाती थी. लोग राज महल में राज परिवार के साथ होली खेलकर एक दूसरे को शुभकामनाएं देते थे. रंगभरी एकादशी के दिन से टिकारी राज के लोगों की होली शुरू होती थी और पूर्णिमा तक चलती थी.
टिकारी राज में झुमटा का प्रचलन
तारानाथ मिश्रा ने बताया कि रंगपंचमी परंपरा से एक कथा और जुड़ी है कि राजा हरिहर प्रसाद के काल में लोग अलग ही चाव से होली का गायन करते थे. जो क्षेत्र में चर्चा का विषय होता था. चूंकि राजा हरिहर प्रसाद तत्कालीन महारानी के पति थे और उनका क्षेत्र के लोगों से दामाद का रिश्ता था. इस कारण तत्कालीन महारानी होली का गायन कर रहे मंडली से राजा हरिहर प्रसाद के बारे में अठखेली करने को कहती थी और लोग अठखेली करते थे. जो पांच दिनों का हास्य व्यंग चलता था.