गया : 22 जनवरी को अयोध्या राम मंदिर में में प्रभु रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. इसे लेकर देश भर में उत्सव मनाया जा रहा है. देश भर में उत्सव के माहौल के बीच गया में भी रामलाल के विराजमान होने को लेकर इसे त्यौहार के रूप में मनाया जा रहा है. इस दौरान वैसे कार सेवकों को याद किया जा रहा है, जिन्होंने विवादित ढांचा विध्वंस में अहम भूमिका निभाई थी. ऐसे ही कार सेवकों में एक गया के मनोज कुमार भी शामिल हैं, जिन्होंने न सिर्फ विवादित ढांचे के विध्वंस में बड़ी भूमिका निभाई थी, बल्कि उसमें लगी दो ईट भी लेकर आए थे. ईंट पर बाबर के सेनापति मीर बाकी का नाम लिखा हुआ था.
17 साल की उम्र में कारसेवा : गया शहर के रहने वाले मनोज कुमार तब नवमी कक्षा में पढ़ते थे. उम्र 17 साल की थी. जुनून विवादित ढांचे को ढाह देने और सैकड़ों साल के सपने को पूरा कर लेने का था. राम मंदिर में विवादित ढांचे को इसलिए तुरंत ढाह देना चाहते थे, क्योंकि यह ढांचा इन जैसे कारसेवकों के लिए गुलामी का प्रतीक था.
सरयू में स्नान कर कारसेवा में जुटे : मनोज कुमार बताते हैं कि वे 4 दिसंबर को गया से ट्रेन से निकले थे. 4 दिसंबर को शुक्रवार का दिन था. अयोध्या पहुंचने के बाद सरयू में स्नान किया. इसके बाद 6 दिसंबर 1992 को काफी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंच गए थे. 6 दिसंबर को विवादित ढांचे को ढाह देने के लिए कारसेवकों का जत्था पर जत्था पहुंचा था. इसमें एक कार सेवक के रूप में वे भी शामिल थे.
जिससे बैरिकेडिंग की गई उसी से तोड़ा विवादित ढांचा : मनोज कुमार बताते हैं कि ''विवादित ढांचे के विध्वंस के लिए कार सेवकों का जत्था लगातार बढ़ता जा रहा था. उन्हें रोकने के लिए लोहे के पाइप की बैरेकटिंग की गई थी, लेकिन यही लोहे की पाइप की बैरिकेडिंग को तोड़कर कारसेवक आगे बढ़ गए. ढांचे पर चढ़कर इसी लोहे की पाइप से बड़े हिस्से को ढाहाया गया था. जब वे भी ढांचा गिराने में लगे थे, उनके सामने ही यह दृश्य था, कि विवादित ढांचा ढहाने में जुटे कई कारसेवक अचानक ढांचे का एक हिस्सा गिरने के बाद, वो उसी ओर गिर गए. हादसे में कई कारसेवक मर गए. इसी हादसे में वे भी पीछे की ओर गिरे थे, जान बच गई लेकिन जख्मी हो गए थे.''