गयाः जिले का क्षेत्रफल सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 4,976 किलोमीटर है. इतने बड़े क्षेत्रफल वाले इलाके में कृषि लायक जमीन कम है. अधिकांश हिस्सों में पहाड़ और पथरीली जमीन है. जिले के सभी प्रखंडो में विभिन्न फसलों की खेती की जाती है. लेकिन किसान पानी के बिना हर साल कृषि में पिछड़ जाते हैं. नियमित सिंचाई का साधन नहीं रहने से किसान को हर साल सुखाड़ जैसी आपदा से लड़ना पड़ रहा है. यहां तक कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का लाभ किसानों को नहीं मिल पाती है.
गया जिले में नौ छोटी-बड़ी नदियां बहती है लेकिन सारी नदियां बरसाती है. इन नदियों के पानी को रोककर जिले के कुछ पंचायत में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया जाता है. जिले में अधिकांश जगह पानी नहीं पहुंचने पर किसानों ने सिंचाई के लिए भूमिगत स्रोत को साधन बना लिया है. गया शहर के बगल में स्थित खरखुरा गांव में सब्जी की खेती बड़े पैमाने पर होती है. लेकिन यहां भी सिंचाई के लिए भूमिगत जल स्रोत का उपयोग किया जा रहा है.
भू गर्भ जल से फसलों की जा रही सिंचाई परेशानियों से जुझ रहे किसान
इस गांव के किसान बताते है कि यहां कई सालों से सब्जी की खेती की जाती है. लेकिन सिंचाई की अब तक व्यवस्था नहीं की गई है. पहले बरसात की पानी से सिंचाई करते थे. लेकिन अब बिजली के मोटर पंप के जरिए भूमिगत जलस्रोत से सिंचाई करते हैं. इसमें बिजली बिल भी अधिक आता है. किसानों ने बताया कि पांच से छह किसान मिलकर मोटर पंप लगाए हैं. गर्मी और बरसात दोनो में परेशानी झेलना पड़ता है. गर्मी में पानी की कमी जबकि बरसात में पानी ही पानी. किसानों ने दुखड़ा सुनाते हुए कहा कि नहर रहने पर बरसात और गर्मी दोनों समस्या का हल निकल सकता है.
नौ नदियों पर ग्यारह सिंचाई योजना
बता दें कि जिले में सिंचाई व्यवस्था नदियों पर नहीं बल्कि सिर्फ बरसात के पानी पर आधारित है. इस संबंध में जल संसाधन विभाग के कार्यपालक अभियंता अभय नारायण ने बताया कि जिले में नौ नदियां है जो आठ माह सूखी रहती है. इन नदियों से सिर्फ खरीफ की फसलों की सिंचाई हो पाती है. नौ नदियों पर ग्यारह सिंचाई योजना संचालित है जिसके जरिए बरसात के पानी को रोककर खरीफ के फसलों को पानी देते हैं. इस वर्ष का सिंचाई करने का लक्ष्य 43 हजार हेक्टेयर कृषि क्षेत्र है.
इंजीनियर अभय नारायण, कार्यपालक अभियंता