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संस्कृत विवि राष्ट्रपति भवन में आयोजित करेगा शास्त्रार्थ, मिथिला के मंडन मिश्र और आदि शंकराचार्य के शास्त्रार्थ की स्मृति होगी ताज़ा

संस्कृत विवि राष्ट्रपति भवन में शास्त्रार्थ का आयोजन करेगा. मिथिला में शास्त्रार्थ का पुराना इतिहास रहा है, कभी मिथिला में पंडित मंडन मिश्र और उनकी पत्नी ने आदि शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में पराजित किया था.

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Published : Aug 24, 2019, 3:44 AM IST

कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि राष्ट्रपति भवन में आयोजित करेगा शास्त्रार्थ

दरभंगा:कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि जल्द ही दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में शास्त्रार्थ का आयोजन करेगा. विवि ने पिछले साल अपने छात्रों के बीच इसका आयोजन कर विलुप्त हो रही शास्त्रार्थ की सदियों पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू किया था. उसके बाद बिहार के राजभवन के अशोक हॉल में राज्यपाल लालजी टंडन के समक्ष इसका भव्य आयोजन हुआ था. अब विवि इसे राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित करने की योजना बना रहा है.

कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि , दरभंगा

'शास्त्रार्थ राष्ट्रपति भवन देखने को मिलेगा'
विवि के सीसीडीसी प्रो. श्रीपति त्रिपाठी ने कहा कि कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने राष्ट्रपति भवन में शास्त्रार्थ के आयोजन की प्रक्रिया शुरू की है. जल्द ही शास्त्रार्थ राष्ट्रपति भवन देखने को मिलेगा. उन्होंने कहा कि विवि में पिछले वर्ष शास्त्रार्थ की परंपरा को पुनर्जीवित किया है. राजभवन में आयोजन के दौरान तत्कालीन राज्यपाल लालजी टंडन ने इसे चार घंटे तक देखा था. वहीं, पूरा विवि परिवार इससे उत्साहित है.

संस्कृत विवि राष्ट्रपति भवन में आयोजित करेगा शास्त्रार्थ

'मिथिला और वाराणसी शास्त्रार्थ के दो बड़े केंद्र रहे हैं'
वहीं, पूर्व कुलपति और वर्तमान में व्याकरण विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश शर्मा ने कहा कि मिथिला और वाराणसी प्राचीन भारत मे शास्त्रार्थ के दो बड़े केंद्र रहे हैं. शास्त्रार्थ में तर्क के आधार पर किसी सिद्धांत को स्थापित किया जाता है. अब यह परंपरा लुप्त हो रही है. विवि इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहा है.

सातवीं सदी में आदि शंकराचार्य मिथिला आये थे
बतादें, सातवीं सदी में दक्षिण भारत से चलकर आदि शंकराचार्य मिथिला आये थे. यहां उन्होंने पंडित मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती के साथ शास्त्रार्थ किया था. आदि शंकराचार्य यहां पराजित हो गये थे. तब से मिथिला के शास्त्रार्थ की दुनिया भर में ख्याति है. विवि की इस कोशिश से इस परंपरा को राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्जीवित किया जा सकेगा.

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