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बिहार में इंसेफेलाइटिस से मौत का सिलसिला जारी, अबतक 60 के अधिक बच्चों की हुई मौत

हम के राष्ट्रीय प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा है कि सरकार बीमारी से निबटने के लिए पूरी तरह नाकाम साबित हुई है. डबल इंजन की सरकार होने बावजूद अब तक बच्चों को बचाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए जा सके हैं.

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Published : Jun 13, 2019, 10:08 PM IST

पटना: बिहार में चमकी के प्रकोप से पूरा उत्तर बिहार जूझ रहा है. इस बिमारी के कारण अब तक 60 से ज्यादा मासूमों की जान जा चुकी है. लेकिन सरकार इस पर काबू पाने में नाकामयाब साबित हुई है. इधर, राजनेता अपने दौरे रद्द कर पार्टी के बैठकों में मशगूल हैं.

मंत्री कर रहे विदेश दौरा
इस बीमारी से निबटने के लिए सरकारी स्तर पर न तो एहतियाती कदम उठाए गए हैं ना ही लोगों को जागरूक किया जा रहा है. इंसेफेलाइटिस या चमकी बीमारी जब राज्य में पांव पसार रही थी तब स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे और प्रधान सचिव संजय कुमार विदेश घूम रहे थे.

अश्विनी चौबे का दौरा रद्द
गुरुवार को जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पूरी टीम के साथ मुजफ्फरपुर का दौरा करना था तब राजनीतिक बैठक के चलते दौरा रद्द कर दिया गया. अश्विनी चौबे मुजफ्फरपुर तो नहीं पहुंचे मगर दिल्ली में बैठक जरूर हुई.

पक्ष-विपक्ष दोनों का नकारात्मक रवैया
इस पूरे घटनाक्रम में सरकार की संवेदनहीनता तो साफ तौर पर दिखाई देती है लेकिन विपक्ष का रवैया भी कम नकारात्मक नहीं है. विपक्ष का कोई बड़ा नेता अब तक मुजफ्फरपुर नहीं पहुंचा. लेकिन ये नेता बयानबाजी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

नेताओं के बयान

'नाकाम साबित हो रही सरकार'
हम के राष्ट्रीय प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा है कि सरकार बीमारी से निबटने के लिए पूरी तरह नाकाम साबित हुई है. डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद अब तक बच्चों को बचाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए जा सके हैं.

'बीमारी पर काबू पाने की कोशिश जारी'
वहीं, बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि मेरी सरकार इंसेफेलाइटिस को लेकर संवेदनशील है और हम हरसंभव कोशिश कर रहे हैं कि बीमारी पर काबू पाया जा सके.

मौतों का जिम्मेदार कौन?
इन सब के बीच स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार असहाय दिखाई दे रहे हैं. वह अब तक यह भी नहीं बता पाए हैं कि अबतक 60 से ज्यादा बच्चों की मौत का जिम्मेदार किसे ठहराया जाए. अनेकों नाम वाले इस बिमारी का अबतक इलाज नहीं ढूंढा जा सका है. इसके कारण पिछले एक दशक में 1000 से ज्यादा बच्चे मौत के मुंह में समा चुके हैं. इस साल अब तक यह आंकड़ा 60 से पार हो चुका है, लेकिन सरकार गंभीर नहीं दिख रही है.

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