औरंगाबाद: जिले के देव प्रखंड के भट्ट बीघा गांव निवासी बुजुर्ग पर्यावरणविद रामबुझावन यादव किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. पेड़ लगाने वाले बुजुर्ग के नाम से इनकी पहचान जिले भर में बनी हुई है. 115 साल के बुजुर्ग की ही देन है कि देव प्रखंड भट्ट बिगहा और आसपास के दर्जन भर गांवों में हरियाली ही हरियाली नजर आती है.
बता दें कि जिले के देव प्रखंड के भट्ट बीघा गांव, जिसे टांड़ी गांव कहा जाता था. यह पूरा क्षेत्र ही वीरान था. टांड़ी भोजपुरी और मगही भाषा में निर्जन और वीरान जगह को कहा जाता है. जहां ना पानी होता है ना वृक्ष होते हैं. इस वीरान गांव में जहां ना पेड़ थे और न ही तालाब, एक व्यक्ति के जुनून ने ना सिर्फ इसे हरा-भरा बना दिया. बल्कि आसपास के दर्जनों गांवों में भी इसकी देखा देखी पौधारोपन हुआ. आज इस क्षेत्र में एक लाख से अधिक पौधे सिर्फ रामबुझावन यादव द्वारा लगाए गए हैं.
पौधा लगाते बुजुर्ग पर्यावरणविद रिटायरमेंट के बाद गांव में जीवन बिताने का लिया फैसला
रामबुझावन यादव 1989 में कोलफील्ड से रिटायर होकर गांव वापस लौटे थे. वे चाहते तो कोलफील्ड के अन्य कर्मचारियों की तरह धनबाद या आसपास ही बस जाते. लेकिन उन्हें गांव से प्यार था और यही कारण था कि वे 1989 में अपने रिटायरमेंट के बाद गांव में जीवन बिताने आ गए. वहां से अपने गांव पहुंचने पर उन्हें इस बात का बुरा लगा कि यहां सिर्फ कुछ बांस और बबूल के पेड़ हैं. इसके अलावा पूरा गांव वीरान है. दूर-दूर तक कोई पेड़ नहीं दिख रहे हैं. उन्होंने अपने गांव में भी पौधारोपन करने और गांव को हरा-भरा बनाने की ठान ली. पेड़ नहीं होने के कारण गांव में पानी की किल्लत थी. तालाब भी नहीं थे और बारिश भी कम होती थी.
जबतक जिंदा रहेंगे पौधारोपन करते रहेंगे
बुजुर्ग पर्यावरणविद रामबुझावन यादव बताते हैं कि इन्ही सब बातों के कारण उन्होंने 1990 से ही गांव में खूब पौधारोपन करने की सोची. तब से लेकर आज तक रामबुझावन लगभग 10 हजार से अधिक पेड़ लगा चुके हैं. उनका मकसद सिर्फ पौधारोपन है. यह किसके जमीन पर लगा रहे हैं इससे उनका कोई मतलब नहीं होता है. कौन इसका मालिक बनेगा इससे भी इनको कोई मतलब नहीं होता है. वे सिर्फ पौधे लगाने से मतलब रखते हैं.
लगा चुके हैं 10 हजार से अधिक पेड़ गांव वालों ने कहा था पागल
ग्रामीण अवधेश यादव बताते हैं कि शुरूआत में जब रामबुझावन यादव ने पेड़ लगाना शुरू किया तो को गांव वालों ने उनका समर्थन नहीं किया था. लोग उन्हें पागल समझते थे. लेकिन उन्होंने बहंगी से पानी भर भर कर वीरान जमीन पर सिंचाई कर पौधे लगाना और उनकी देखभाल करना शुरू किया. फिर जब उनके लगाए पौधे फल देने लगे तब जाकर लोग उनके साथ जुड़े और उनकी बातों को मानने लगे. ग्रामीण बताते हैं कि एक समय था कि गांव में धूप से बचने के लिए रास्ते में एक भी पेड़ नहीं थे. लेकिन रामबुझावन यादव के पौधारोपन अभियान के बाद ना सिर्फ उनके गांव बल्कि आस पास के दर्जनों गांवों में 1 लाख से अधिक पेड़ लगाए गए हैं. अब सारा क्षेत्र हरा भरा दिखता है और गांव में एक बड़ा सा तालाब भी खुदवाया गया है. ग्रामीण अब आसानी से खेती करने लगे हैं. बारिश भी पहले के मुकाबले ज्यादा होने लगीं है.
पर्यावरणविद रामबुझावन यादव फेंके गुठलियों से तैयार करते हैं पौधे
रामबुझावन यादव के परिवार के सदस्य रजन्त यादव बताते हैं कि उनके दादा की उम्र लगभग 115 साल है. इस उम्र में भी वे लोगों द्वारा खाकर फेंके गए जूठे बीज को जमा करते हैं और इन बीजों से नर्सरी में पौधा तैयार करते हैं. इनके चार बेटों में से तीन उच्च पदों पर कार्यरत हैं. 85 वर्षीय बड़े बेटे कोल फील्ड में माइनिंग सरदार के रूप में कार्यरत थे. उनका इसी वर्ष निधन हो गया. दो अन्य बेटों में एक सिंचाई विभाग में इंजीनियर हैं तो दूसरे डॉक्टर हैं. एक पुत्र किसान हैं.
मिले हैं कई पुरस्कार
बुजुर्ग पर्यावरणविद रामबुझावन यादव को कई पुरस्कार मिल चुके हैं. हाल ही में वर्ष 2019 में जिले में तत्कालीन जिलाधिकारी राहुल रंजन महिवाल ने इन्हें वृद्धजन सम्मान से सम्मानित किया था. रामबुझावन यादव ने बताया कि वे जब तक जिंदा रहेंगे तब तक पौधारोपन का कार्य करते रहेंगे.