पटना:बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार है और नीतीश कुमार के हाथ में सूबे की कमान है. सरकार की कार्यप्रणाली से बीजेपी खेमे में बेचैनी है. पिछले कुछ समय से कई मुद्दों पर दोनों दलों के बीच मतभेद भी है. प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने पहले तो बिहार में गिरती विधि-व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए. उसके बाद फिर बिहार में शराबबंदी की समीक्षा (Review of Liquor Ban in Bihar)की वकालत कर दी. मंत्री जीवेश मिश्रा प्रकरण में भी उन्होंने सवाल उठाए हैं. राज्य में ब्यूरोक्रेसी को लेकर भी बीजेपी नेता सवाल उठाते रहे हैं. बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census in Bihar) कराने को लेकर भी जेडीयू को बिहार बीजेपी का साथ नहीं मिल रहा है.
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दरअसल, बीजेपी और जेडीयू में मतभेद (Difference Between BJP and JDU) कई मुद्दों को लेकर है. बीजेपी के कुछ कद्दावर नेता और मंत्री अपने क्षेत्र या विभाग में अपने पसंद का अधिकारी चाहते हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है. दूसरा बात ये है कि बिहार बीजेपी की तरफ से नीतीश सरकार पर इस बात के लिए दबाव है कि बिहार में बोर्ड निगम आयोग और 20 सूत्री का गठन किया जाए.
ताजा विवाद जातीय जनगणना को लेकर है. नीतीश कुमार जहां जातीय जनगणना को लेकर सर्वदलीय बैठक बुलाने की तैयारी कर रहे हैं. वहीं बीजेपी इसको लेकर उत्साहित नहीं है. पार्टी नेताओं का मानना है कि जातीय जनगणना से कोई फायदा होने वाला नहीं है. कुछ राज्यों ने कराए थे, उसका नतीजा कुछ नहीं निकला. बीजेपी प्रवक्ता अजफर शम्शी ने कहा है कि जातीय जनगणना और शराबबंदी को लेकर पार्टी नेताओं ने बयान दिए हैं. सबकी अपनी अपनी राय है, लेकिन मेरा मानना है कि जातीय जनगणना से बहुत कुछ हासिल होने वाला नहीं है.
"जातीय जनगणना और शराबबंदी को लेकर पार्टी नेताओं ने बयान दिए हैं. सबकी अपनी अपनी राय है, लेकिन मेरा मानना है कि जातीय जनगणना से बहुत कुछ हासिल होने वाला नहीं है"-अजफर शम्शी, प्रवक्ता, बिहार बीजेपी
उधर, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने भी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने शराबबंदी को लेकर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है. उन्होंने कहा कि शराबबंदी कानून के तहत सिर्फ गरीब जेल में हैं. अमीर और ताकतवर लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मेरी मांग है कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बजाय सीमित शराबबंदी होनी चाहिए.