लखनऊ :काला नमक के स्वाद और सुगंध का मुरीद इंग्लैंड रह चुका है. सात दशक पहले गुलाम भारत में देशभर में अंग्रेजों के बड़े बड़े फॉर्म हाउस हुआ करते थे. ये इतने बड़े थे कि इनके नाम से उस क्षेत्र की पहचान थी. मसलन बर्डघाट, कैंपियरगंज. सिद्धार्थनगर भी इसका अपवाद नहीं था. उस समय सिद्धार्थ नगर में अंग्रेजों के फार्म हाउसेज में काला नमक धान की बड़े पैमाने पर खेती होती थी.
अंग्रेज काला नमक के स्वाद और सुगंध से वाकिफ थे. इन खूबियों की वजह से इंग्लैंड में काला नमक के दाम भी अच्छे मिल जाते थे. तब जहाजों से चावल इंग्लैंड भेजा जाता था. करीब सात दशक पहले जमींदारी उन्मूलन के बाद यह सिलसिला कम हो गया और आजादी मिलने के बाद खत्म हो गया. इस साल पहली बार इंग्लैंड को चावल सप्लाई किया जाएगा. पहली बार अमेरिका को भी चावल का निर्यात होगा.
ओडीओपी घोषित करने के बाद बढ़ता गया कालानमक का क्रेज :योगी सरकार ने जबसे काला नमक धान को सिद्धार्थनगर का एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) घोषित किया है तबसे देश और दुनिया में स्वाद और सुगंध में बेमिसाल और पौष्टिकता में परंपरागत चावलों से बेहतर काला नमक धान के चावल का क्रेज लगातार बढ़ रहा है. जीआई मिलने से इसका दायरा भी बढ़ा है. योगी सरकार ने इसे सिद्धार्थनगर का एक जिला एक उत्पाद घोषित करने के साथ इसकी खूबियों की जबरदस्त ब्रांडिंग भी की है. रकबे उपज और मांग में भी बढ़ोतरी हुई है.