वाराणसीःलघु भारत कही जाने वाली काशी में मठ परंपरा हजारों वर्ष पुरानी मानी जाती है, जिसमें काशी से लेकर कन्याकुमारी तक की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. यहां उत्तर से लेकर दक्षिण तक के पूजा पद्धतियों का संगम होता है. मगर आधुनिकतावाद की इस दौड़ में काशी के मठ अब विलुप्त होते जा रहे हैं. कई ऐसे मठ हैं जो आज तलाशने पर भी नहीं दिखते. इन मठों में सबसे अधिक संख्या दक्षिण भारत के मठों की है. विलुप्त हो रहे इन मठों को इंदिरा गांधी कला केंद्र के माध्यम से डिजिटली संरक्षित किया जाएगा.
धार्मिक वैभव की नगरी है काशीः काशी न सिर्फ ऐतिहासिक बल्कि धार्मिक वैभव की नगर भी है. काशी को दुनिया के सबसे पुराने जीवित शहरों में से एक माना जाता है. इसे अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है. इन सभी महत्वों के साथ ही एक महत्व वाराणसी की मठों की वैभवशाली परंपरा का भी है. देश के प्रमुख मंदिरों के मठ अस्सी घाट से राजघाट के बीच स्थित हैं. इतना ही नहीं, चारों शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, महामंडलेश्वर के मठ भी यहां हैं. समय के साथ-साथ बीते 50 वर्षों में काफी मठों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है.
बनारस में करीब 2000 से अधिक मठः हम इन्हीं सब बातों के बारे में जानने के लिए काशी के 300 साल पुराने कैलाशपुरी मठ में पहुंचे. इस मठ को सनातन धर्म की सुरक्षा के लिए बनाया गया था. यहां पर आज भी बटुकों को शिक्षा दी जाती है. ऐसे ही काशी में 2000 से अधिक मठ रहे हैं, लेकिन 19वीं शताब्दी के बाद ये मठ धीरे-धीरे विलुप्ति के कगार पर हैं. अब इनके संरक्षण का बीड़ा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने उठाया है. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के माध्यम से इन मठों को डिजिटली सुरक्षित करने की कवायद शुरू हो रही है. शहर से लेकर गांव तक के मठों को चिह्नित कर उनसे जुड़ी वस्तुओं, तस्वीरों आदि दस्तावेजों को सहेजा जाएगा.
धर्म और संस्कृति की रक्षा को समर्पित हैं मठ-आश्रम: कैलाशपुरी मठ के प्राचार्य अभिजीत दीक्षित कहते हैं, 'मठों को संरक्षित करने का प्रयास हम लोगों के लिए उम्मीद और आशा का पल है. हम लोग अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा में एवं राष्ट्र के प्रति जो प्रेम की भावना है उसको जगाने में हर तरह से प्रयास कर रहे हैं. सरकार मठों के संरक्षण के लिए आगे आ रही है, यह हम सभी के लिए खुशी की बात है. इससे हम सभी को सहायता मिलेगी, जिससे हम अपने इस लक्ष्य को और आगे ले जा सकते हैं.'
300 साल से अधिक पुराना है कैलाश आश्रमःवे आगे अपने मठ के बारे में बताते हैं कि, हमारा कैलाश गुरुकुल-आश्रम 300 साल से भी पुराना है. इसके मालिक शंकराचार्य जी है. उनकी एक मूर्ति यहां स्थापित है. इसके वर्तमान अध्यक्ष मंडलेश्वर स्वामी आशुतोषानंद गिरि जी महाराज हैं. वही इसको चला रहे हैं और आगे बढ़ा रहे हैं. यहां पर उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत हो सभी राज्यों से छात्र आकर स्वाध्याय कर रहे हैं. उन्होंने कहा, 'यह एक बहुत बड़ी बात है कि वे सभी यहां नि:शुल्क अध्ययन कर रहे हैं. सरकार से अब हमें एक उम्मीद है.'