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बनारस में शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, महामंडलेश्वर सहित 2000 से अधिक मठ, अब होगा इनका संरक्षण

काशी से कन्याकुमारी तक की संस्कृति की दिखेगी झलक, जीर्णोद्धार के लिए सरकार उठा रही ये कदम, दुनिया में बजेगा डंका

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बनारस के मठ संवारेगी योगी सरकार. (photo credit: etv bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 9, 2024, 8:42 AM IST

Updated : Oct 9, 2024, 12:34 PM IST

वाराणसीःलघु भारत कही जाने वाली काशी में मठ परंपरा हजारों वर्ष पुरानी मानी जाती है, जिसमें काशी से लेकर कन्याकुमारी तक की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. यहां उत्तर से लेकर दक्षिण तक के पूजा पद्धतियों का संगम होता है. मगर आधुनिकतावाद की इस दौड़ में काशी के मठ अब विलुप्त होते जा रहे हैं. कई ऐसे मठ हैं जो आज तलाशने पर भी नहीं दिखते. इन मठों में सबसे अधिक संख्या दक्षिण भारत के मठों की है. विलुप्त हो रहे इन मठों को इंदिरा गांधी कला केंद्र के माध्यम से डिजिटली संरक्षित किया जाएगा.

धार्मिक वैभव की नगरी है काशीः काशी न सिर्फ ऐतिहासिक बल्कि धार्मिक वैभव की नगर भी है. काशी को दुनिया के सबसे पुराने जीवित शहरों में से एक माना जाता है. इसे अविमुक्त क्षेत्र भी कहा जाता है. इन सभी महत्वों के साथ ही एक महत्व वाराणसी की मठों की वैभवशाली परंपरा का भी है. देश के प्रमुख मंदिरों के मठ अस्सी घाट से राजघाट के बीच स्थित हैं. इतना ही नहीं, चारों शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, महामंडलेश्वर के मठ भी यहां हैं. समय के साथ-साथ बीते 50 वर्षों में काफी मठों का अस्तित्व समाप्त हो चुका है.

बनारस के मठ संवारेगी योगी सरकार. (video credit: etv bharat)

बनारस में करीब 2000 से अधिक मठः हम इन्हीं सब बातों के बारे में जानने के लिए काशी के 300 साल पुराने कैलाशपुरी मठ में पहुंचे. इस मठ को सनातन धर्म की सुरक्षा के लिए बनाया गया था. यहां पर आज भी बटुकों को शिक्षा दी जाती है. ऐसे ही काशी में 2000 से अधिक मठ रहे हैं, लेकिन 19वीं शताब्दी के बाद ये मठ धीरे-धीरे विलुप्ति के कगार पर हैं. अब इनके संरक्षण का बीड़ा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने उठाया है. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के माध्यम से इन मठों को डिजिटली सुरक्षित करने की कवायद शुरू हो रही है. शहर से लेकर गांव तक के मठों को चिह्नित कर उनसे जुड़ी वस्तुओं, तस्वीरों आदि दस्तावेजों को सहेजा जाएगा.

काशी के मठ हिंदू धर्म का बड़ा केंद्र हैं. (photo credit: etv bharat)

धर्म और संस्कृति की रक्षा को समर्पित हैं मठ-आश्रम: कैलाशपुरी मठ के प्राचार्य अभिजीत दीक्षित कहते हैं, 'मठों को संरक्षित करने का प्रयास हम लोगों के लिए उम्मीद और आशा का पल है. हम लोग अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा में एवं राष्ट्र के प्रति जो प्रेम की भावना है उसको जगाने में हर तरह से प्रयास कर रहे हैं. सरकार मठों के संरक्षण के लिए आगे आ रही है, यह हम सभी के लिए खुशी की बात है. इससे हम सभी को सहायता मिलेगी, जिससे हम अपने इस लक्ष्य को और आगे ले जा सकते हैं.'

कैलाश मठ 300 साल से ज्यादा पुराना है. (photo credit: etv bharat)

300 साल से अधिक पुराना है कैलाश आश्रमःवे आगे अपने मठ के बारे में बताते हैं कि, हमारा कैलाश गुरुकुल-आश्रम 300 साल से भी पुराना है. इसके मालिक शंकराचार्य जी है. उनकी एक मूर्ति यहां स्थापित है. इसके वर्तमान अध्यक्ष मंडलेश्वर स्वामी आशुतोषानंद गिरि जी महाराज हैं. वही इसको चला रहे हैं और आगे बढ़ा रहे हैं. यहां पर उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत हो सभी राज्यों से छात्र आकर स्वाध्याय कर रहे हैं. उन्होंने कहा, 'यह एक बहुत बड़ी बात है कि वे सभी यहां नि:शुल्क अध्ययन कर रहे हैं. सरकार से अब हमें एक उम्मीद है.'

मठों में दी जाती है धर्म की शिक्षा. (photo credit: etv bharat)

करीब 700 धार्मिक स्थलों का होगा जीर्णोद्धारःक्षेत्रीय निदेशक इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, डॉ. अभिजीत दीक्षित बताते हैं कि, धर्म क्षेत्र में सदियों से काशी का वैभव रहा है. मगर समय के साथ कुछ मठ गुम हो गए. एक बार फिर दुनिया को इन मठों से रूबरू कराने का बीड़ा उठाया है. उन्होंने बताया कि, काशी की मठ परंपरा अध्ययन और शोध का कार्य किया जा रहा है. अभी तक लगभग 200 मठ चिह्नित हुए हैं. काशी के करीब 700 धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार करने की तैयारी है. इनमें हिंदू मंदिरों के अलावा जैन, बौद्ध मंदिर और गुरुद्वारे भी शामिल हैं.

धर्मस्थलों से जुड़े साहित्य किए जाएंगे ऑनलाइनःकाशी में पर्यटन की दृष्टि से यहां की मठ परंपरा भी उतनी ही अहमियत रखती है, जितने की यहां के प्राचीन मंदिर. ऐसे में पर्यटन स्थलों तक सैलानियों की पहुंच बढ़ाने के लिए मंदिरों और गुरुद्वारों का कायाकल्प किया जाएगा. इसके लिए पर्यटन विभाग ने काशी के धर्मस्थलों का सर्वे कराया है. इतना ही नहीं इन सभी धर्मस्थलों से जुड़े साहित्य को ऑनलाइन यानी कि डिजिटल किया जाएगा. स्थलों को क्यूआर कोड से लैस किया जाएगा, जिससे पर्यटकों को ऑनलाइन विस्तृत जानकारी मिल सके.

सनातन संस्कृति का केंद्र है बनारस. (photo credit: etv bharat)

काशी के ये मठ हैं काफी प्रसिद्धःकाशी में विभिन्न मठ और मंदिर पुरानी परंपरा के ध्वजवाहक हैं. इसमें से प्रमुख नामों में कैलाश मठ, जंगमवाड़ी मठ, कबीर मठ, कांची शंकराचार्य मठ (तमिलनाडु के कांची कामकोटि पीठ की एक शाखा), पातालपुरी मठ हैं. कैलाश मठ में भगवान शिव की पूजा की जाती है. यह भेलूपुर गांव में स्थित है. वहीं, जंगमबाड़ी मठ वाराणसी के प्राचीनतम मठों में से एक है. इसे उत्तर भारत का पहला मठ कहा जाता है, कबीर मठ लहरतारा संत कबीर के उद्भव और जीवन का स्थान है, जबकि पालापुरी मठ द्वापर के इतिहास का प्रामाणिक साक्ष्य लिए हुए है.

300 मंदिर क्यूआर कोड से हो चुके हैं लैसःपर्यटन विभाग के उपनिदेशक आरके रावत बताते हैं कि, पहले चरण में काशी में 300 मंदिरों को क्यूआर कोड से लैस करने के साथ उनसे संबंधित साहित्य का डिजिटलीकरण किया जा चुका है. काशी के धार्मिक स्थलों, इनकी पौराणिक मान्यताओं से संबंधित साहित्य जुटाकर सर्वे कराने के बाद शासन को प्रस्ताव भेजा गया है. लगभग सात माह तक स्थलीय सर्वेक्षण का कार्य किया गया है. उन्होंने बताया कि काशी की मठ परंपरा पर अध्ययन और शोध का काम किया जा रहा है.

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Last Updated : Oct 9, 2024, 12:34 PM IST

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