रायपुर: छत्तीसगढ़ के जंगल यहां के धार्मिक और पर्यटक स्थल पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं. हर साल बड़ी संख्या में यहां देश और विदेश से पर्यटक आते हैं. मान्यता है कि वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम और माता सीता लक्ष्मण जी के साथ यहां रुके थे. ऋषि मुनियों की रक्षा के लिए श्री राम और लक्षमण जी ने कई राक्षसों का संहार किया था. चंदखुरी में कौशल्या माता का मंदिर भी है. छत्तीसगढ़ को रामजी का ननिहाल भी कहते हैं. रामजी का ननिहाल होने के नाते अयोध्या नगरी से छत्तीसगढ़ का अलग नाता भी है. विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर आज हम आपको छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों की जानकारी देने जा रहे हैं.
दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी का दरबार: 52वें शक्तिपीठ के रुप में मां दंतेश्वरी मंदिर की अदभुत पहचान है. इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि मंदिर का निर्माण करीब 850 साल पहले हुआ था. डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर मंदिर की स्थापना हुई है. करीब 700 साल पहले मंदिर का जीर्णोद्वार वारंगल से आए राजाओं ने कराया था. सालों पहले यहां बलि की परंपरा भी प्रचलित रही. 1932 से 1933 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जीर्णोद्धार तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था. मां दंतेश्वरी मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मनोकामना ज्योति जलाते हैं.
डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर विराजी हैं मां बमलेश्वरी: राजनांदगांव के डोंगरगढ़ी पहाड़ी पर करीब 1,600 फीट की ऊंचाई पर मां बम्लेश्वरी विराजीं हैं. साल में दो बार यहां पर नवरात्र का मेला लगता है. दोनों मेलों में करीब 20 लाख से ज्यादा भक्त पहुंचते हैं. मां बमलेश्वरी के दरबार में विदेशों से भी भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं. मां बम्लेश्वरी मंदिर में भी मनोकामना जोत प्रज्ज्वलित करने की परंपरा है.
भोरमदेव मंदिर: कबीरधाम के चौरागांव में प्रसिद्ध भोरमदेव का ऐतिहासिक मंदिर है. भोरमदेव मंदिर लगभग एक हजार साल पुराना है. इसकी राजधानी रायपुर से दूरी लगभग 125 किलोमीटर है. भोरमदेव मंदिर भगवान शंकर को समर्पित है. मंदिर पहाड़ियों के बीच बना है. ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर 7वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था. भोरमदेव मंदिर की झलक मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध खजुराहो मंदिर से मिलती जुलती है. जिस वजह से इस मंदिर को “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” के नाम से भी जाना जाता है.
बस्तर के 'ढोलकल गणेश': बस्तर जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर फरसपाल गांव से सटे बैलाडीला के पहाड़ पर 'ढोलकल गणेश' जी विराजे हैं. तीन हजार फीट ऊंची चोटी पर ललितासन में विराजित प्राचीन गणेश जी की ये मूर्ति अपने आप में अनूठी है. कहा जाता है कि मूर्ति 11वीं सदी की है. सालों तक सिर्फ गांव के लोग ही इसे जानते रहे. ढोलकल में स्थानीय लोगों के साथ देशी विदेशी सैलानी भी आने लगे हैं.
चंदखुरी गांव में कौशल्या माता का मंदिर: रायपुर से 17 किलोमीटर की दूरी पर चंदखुरी गांव हैं. इस गांव को भगवान राम की मां कौशल्या का जन्म स्थान माना जाता है. यहां तालाब के बीचों-बीच माता कौशल्या का मंदिर है, जो 10वीं शताब्दी में बनाया गया था. रामजी का ननिहाल भी छत्तीसगढ़ को माना जाता है. रामजी का ननिहाल छत्तीसगढ़ होने के चलते अयोध्या नगरी से छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक और धार्मिक नाता रहा है.
नारायणपाल मंदिर: बस्तर की विरासत अपनी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पहचान के लिए जानी जाती है. इंद्रावती नदी के पास प्राचीन विष्णु जी का मंदिर भी है. इंद्रवती और नारंगी नदियों के संगम पर बना ये मंदिर प्राचीन वास्तुकला का अदभुत नजारा पेश करता है. नारायणपाल गांव में मंदिर होने के चलते इस मंदिर का नाम नारायणपाल मंदिर रखा गया.
कोटमसर गुफा: कोटमसर गुफा जगदलपुर में है. कोटमसर गुफा पर्यावरण से प्रेम करने वाले पर्यटकों को खूब भाता है. कोलेब नदी की सहायक नदी केगर पर कोटमसर गुफा है. चूना पत्थर बनी ये गुफा है. कोटमसर गुफा की ऊंचाई समुद्र तल से 560 फीट ऊंची है. कोटमसर गुफा को देखने के लिए हर साल लाखों पर्यटक यहां आते हैं. मॉनसून के दौरान कोटमसर गुफा को बंद कर दिया जाता है.