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अचलदास खिंची की वीरता और हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है गागरोन, 14 युद्ध और दो जौहर का भी है गवाह - HERITAGE SITES OF RAJASTHAN

राजस्थान के झालावाड़ में स्थित गागरोन किले के बारे में जानिए, जो 14 युद्ध और दो जौहर का गवाह रहा है.

गागरोन किला
गागरोन किला (ETV Bharat Jhalawar)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 22, 2024, 7:18 PM IST

झालावाड़ : राजस्थान में स्थापत्य कला के कई बेजोड़ उदाहरण हैं. यहां पूर्व में कई राजा महाराजाओं ने अपनी शान-शौकत और प्रजा को सुरक्षा व सुविधा मुहैया करवाने के लिए ऐतिहासिक किलों, महलों, इमारतों का निर्माण करवाया है. ऐसा ही झालावाड़ शहर से मात्र 7 किलोमीटर दूरी पर स्थित गागरोन किला है. यह किला प्रदेश में स्थापत्य कला का एक बेहतरीन उदाहरण है. दुर्गम पहाड़ी पर बने इस दुर्ग को जल दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है. बिना नींव खोदे बड़ी-बड़ी चट्टानों पर निर्मित इस दुर्गम किले के चारों ओर बहने वाली कालीसिंध और आहु नदी इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं.

इतिहासकार ललित शर्मा बताते हैं कि हजारों वीरांगनाओं ने अपने आत्म सम्मान के लिए जौहर किया था, जिसकी ज्वाला की तपिश आज भी किले में मौजूद है, जो इस दुर्ग को विशेष बनाती है. गागरोन में परमार, खींची और मुगलों का शासन रहा है. यह दुर्ग 7वीं सदी से लेकर 14वीं सदी तक अभेद रहा है. 14 युद्ध और दो जौहर को समेटे यह दुर्ग हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल के रूप में काफी प्रसिद्ध है. यहां मौजूद 100 साल का पंचांग और 92 हिंदू देवी देवताओं के मंदिर इसे इतिहास में विशेष स्थान दिलाते हैं.

झालावाड़ में स्थित गागरोन किले के बारे में जानिए (ETV Bharat Jhalawar)

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प्रदेश का इकलौता जल दुर्ग, विश्व विरासत घोषित :21 जून 2013 को प्रसिद्ध पुरातात्विक विरासत जलदुर्ग गागरोन को यूनेस्को की ओर से कंबोडिया के नोमपेन्ह शहर में हुई वैश्विक समिति की बैठक में विश्व धरोहर में शामिल किया गया था. ऐतिहासिक साक्ष्यों को समेटे यह जलदुर्ग मुकुंदरा की पहाड़ियों के मध्य स्थित है. यह क्षेत्र अब मुकुंदरा टाइगर रिजर्व क्षेत्र भी बन गया है.

गागरोन किले की यह है विशेषता. (ETV Bharat gfx)

परमार से लेकर मुगल राजाओं ने किया राज :इतिहासकार ललित शर्मा ने बताया कि गागरोन किले का निर्माण परमार वंश के डोडा राजपूत बिजलदेव की ओर से 1195 ईस्वी में करवाया गया था, जिसे ढोड़ागढ़, धूलेरगढ़ नाम दिया गया. बाद में यहां चौहान वंश की ब्रांच खींची के देवन सिंह ने बिजलदेव को युद्ध में परास्त किया और धुलेरगढ़ का नाम बदलकर गागरोन कर दिया. खींची राजा देवन सिंह ने यहां चौहान वंश को स्थापित किया. 1300 ईस्वी में यहां के प्रतापी खींची शासक जेतसी ने अलाउद्दीन खिलजी की ओर से किए गए घातक आक्रमण को विफल कर दिया और उसकी सेना को बिना किले जीते ही लौटना पड़ा. यहां चौहान वंश के प्रतापी शासक प्रताप सिंह ने त्याग व बलिदान का उदाहरण पेश करते हुए राज सिंहासन को त्याग कर छोटे भाई अचल दास खींची को शासक बनाया.

14 युद्ध व वीरांगनाओं के जौहर का गवाह है गागरोन :विश्व प्रसिद्ध विरासत गागरोन में योद्धाओं के बीच कुल 14 युद्ध हुए हैं. इनमें 1423 ईस्वी में मांडू के सुल्तान होशंगशाह व अचल दास खींची के बीच छिड़ा युद्ध इतिहास के पन्नों में दर्ज है. यहां मांडू के सुल्तान की विशाल सेना ने गागरोन पर आक्रमण कर दिया, जिसमें प्रतापी खींची राजा अचलदास वीरगति को प्राप्त हुए. बाद में राजपूत व अन्य समुदाय की वीरांगनाओं ने अग्नि से धधकते हुए जौहर कुंड में अपने प्राणों की आहुति देकर गागरोन का नाम इतिहास में अमर कर दिया. दूसरा जौहर 1444 में देखने को मिला, जब खींची राजा पालनहंसी के ऊपर मालवा के सुल्तान मोहम्मद खिलजी प्रथम ने आक्रमण कर दिया. किले को जीतने के बाद सुल्तान ने किले के चारों ओर कोर्ट का निर्माण करवाया और किले का नाम बदलकर मुस्तफाबाद कर दिया.

कालीसिंध और आहु नदी लगाती हैं खूबसूरती में चार चांद (ETV Bharat Jhalawar)

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हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक गागरोन किला :गागरोन को हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है. यहां के पूर्व राजा प्रताप सिंह ने रामानंद संप्रदाय को अपनाकर राज सिंहासन को त्याग दिया, जो रामानंद के 12 शिष्यों में से एक हैं. इनको दर्जी समुदाय अपना आराध्य मानता है. वहीं, दूसरी ओर मुस्लिम सूफी संत पीर मीठे महाबली शाह की दरगाह भी मौजूद है. राजस्थान की प्रसिद्ध ढोला मारू लोक कथा का नायक धोलागढ़ भी झालावाड़ जिले में स्थित गागरोन का पूर्व राजा था.

गागरोन किला (ETV Bharat Jhalawar)

गागरोन में ऐतिहासिक स्थल :राजस्थान के अधिकांश किलों पर कोट मौजूद होते हैं, लेकिन यहां तीन पराकोटे मौजूद हैं. जल दुर्ग के एक तरफ खाई है, इसलिए इसको मिनी लंका भी कहते हैं. खास बात यह भी है कि इसके आस-पास पहाड़ों की ऊंचाई के समान इसकी ऊंचाई है, इसलिए यहां आक्रमण करने वालों को यह पता नहीं होता था कि किला कहां है. इसके परकोटे को विशाल चट्टानों से बनाया गया है. परकोटा इतना ऊंचा है कि कोई भी इसको लांघ नहीं सकता. इस दुर्ग में ऐसी व्यवस्था थी कि युद्ध काल के समय यहां अस्त्र-शस्त्र को इकट्ठा किया जा सकता था. परकोटे की ऊंचाई 4 से 5 मीटर और मोटाई 4.46 मीटर है, जिस पर गोलाकार बुर्ज भी है. दुर्ग में मदनमोहन मंदिर, राम मंदिर और घाट मौजूद हैं. गणेश पोल, लाल दरवाजा, जौहर कुंड, कटारमाल की छत्री, दरी खाना, जनाना महल, अचल दास का महल और मधुसूदन मंदिर भी काफी सुंदर दर्शनीय स्थल हैं.

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