वाराणसी: बनारस-मिर्जापुर समेत पूरे पूर्वांचल का लोक परंपरा लोकगीतों से गहरा नाता है. जहां आज भी परंपराओं में लोकगीत जीवंत नजर आते हैं. इन्हीं लोकगीतों में से एक विधा है कजरी, जिसके जरिए महिलाएं अपने संबंधों को सहेजती हैं. इसमें पति-पत्नी के बीच श्रृंगार, प्रेम, विरह की बातों को गीतों के माध्यम से बताया जाता है, तो वहीं ननद-भाभी, सास-बहू, देवर-भाभी के प्रेम को भी खूबसूरत भाव के साथ प्रस्तुत किया जाता है. आज कजरी तीज है, ऐसे में आज महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना के साथ कजरी गीत को गाती है.
विश्व प्रसिद्ध गायिका पद्मश्री सोमा घोष (Soma Ghosh) ने बताया कि कजरी एक विधा नहीं बल्कि वह जीवंत शैली है, जिसके जरिए महिला अपने प्रेम वेदना श्रृंगार को बयां करती है. कजरी को लेकर पुरानी कहानियों में अलग-अलग मान्यताएं हैं, अलग अलग स्वरूप है. इसमें जहां पति-पत्नी के बीच प्रेम के रिश्तों को बताया गया है, तो वहीं पति के दूर जाने पर नवविवाहिता के विवाह की भी बातें कही गई हैं. ननद-भाभी के नटखट रिश्ते, देवर भाभी के बीच के पवित्र संबंध, सास बहू के बीच की नोकझोंक को भी बताया गया है.
उन्होंने बताया कि कजरी की शुरुआत मिर्जापुर बनारस से मानी जाती है. डेढ़ सौ साल पहले जब पति नौकरी के लिए दूर देश चले जाते थे तो ऐसे में महिलाएं अपनी विरह वेदना गीतों के जरिए गाती थीं. इसलिए उसका नाम कजरी पड़ा. यह भी कहा जाता है कजलवंती देवी चरणों में बैठकर कजरी नाम की महिला अपने दर्द को रो-रो कर बयां करती थीं, इसलिए भी इसका नाम कजरी पड़ा. बारिश व हरियाली के मौसम को उत्सुकता से मनाने की कला को भी कजरी कहा गया है. इसकी अनेक परिभाषा हैं. लेकिन इन सब में एक परिभाषा है कि नवविवाहित के सम्बंध और रिश्तों का आईना ही कजरी है.
कजरी तीज पर महिलाएं करती हैं अखण्ड सौभाग्य की कामना:सोमा घोष बताती हैं कि कजरी तीज का अलग महत्व है. महिलाएं पति के दूर जाने से दुखी तो हैं, लेकिन उनके स्वस्थ रहने की कामना भी करती हैं. यही वजह है की कजरी तीज का प्रावधान है, जहां महिलाएं सोलह श्रृंगार कर अखंड सौभाग्य के कामना के साथ पूजा अर्चना करती हैं, गीत गाती हैं और अपने पति को याद करती है. वर्तमान स्वरूप में भी कजरी विद्यमान है, यही वजह है कि महिलाएं गांव में बाकायदा झूला डालकर पूरे सावन भर कजरी गीत को गाती है.
कुछ खास कजरी गीत
सेजिया पर लोटे काला नाग हो, कचौड़ी गली सुन कईला बलमु
मिर्जापुर कईला गुलजार हो, कचौड़ी गली सुन कईला बलमु