लखनऊ:हाउस अरेस्ट और पुलिस अरेस्ट तो आपने जरूर सुना होगा. लेकिन अब साइबर अपराधियों ने डिजिटल अरेस्ट का खेल शुरू कर दिया है. राजधानी लखनऊ में हाल ही में आईएएस, सीबीआई अफसर और महिला डॉक्टर को डिजिटल अरेस्ट कर लाखों रुपये ठग लिए. अब सवाल उठता है कि डिजिटल अरेस्ट क्या होता है और इससे कैसे बच सकते हैं.
क्या होता है डिजिटल अरेस्ट?
कानूनी तौर पर डिजिटल अरेस्ट कोई शब्द नहीं है. बल्कि साइबर अपराधियों के ठगी करने का नया तरीका है. साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे बताते हैं कि साइबर अपराधियों का सबसे बड़ा हथियार डर और लालच होता है. साइबर अपराधी डराकर या लालच देकर वीडियो कॉल पर जोड़ लेते हैं. हफ्तों या कुछ घंटे तक आपको डर या लालच दिखाकर कैमरे के सामने रखते हैं. कई केसों में तो साइबर ठगों ने अपने शिकार को तो सोने नहीं देते. जालसाज डर या किसी न किसी बहाने तब तक वीडियो कॉल पर जोड़े रखते हैं, जब तक आप उनकी डिमांड पूरी करते रहते हैं. साइबर एक्सपर्ट ने बताया कि जालसाज ऐसे लोगों को टारगेट कर रहे है, जो रिटायर्ड है या फिर मौजूदा बड़े अफसर या डॉक्टर इंजीनियर होते हैं. इसके पीछे की वजह होती है कि इनके बैंक में काफी पैसा होता है. दूसरा इनकी जिंदगी इतनी लंबी होती है कि उनके दस्तावेज कहां-कहां इस्तमाल हुए हो उन्हें भी याद नहीं रहता है.
फर्जी पुलिस स्टेशन बनाकर बैठे रहते हैं जालसाजःइसके बाद जालसाज पुलिस, सीबीआई और ईडी कार्यालय कर्मचारी बताकर फोन करके कहते हैं कि आपका आधार कार्ड, सिम कार्ड या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल गैरकानूनी गतिविधि के लिए हुआ है. इसके अलावा पार्सल में ड्रग्स और बेटे या रिश्तेदार की गंभीर मामले में फंसे होने की बात कहकर गिरफ्तारी का डर दिखाते हैं. इस दौरान कथित बड़े अधिकारियों से बात कराते हुए सेटलमेंट की बात करते हैं. जब पीड़ित डर जाता है तो जालसाज वीडियो कॉल पर जुड़ने के लिए कहते हैं. मना करने पर घर पुलिस भेजने की बात करते हैं. जब पीड़ित व्यक्ति वीडियो कॉल पर जुड़ जाता है तो पहले से तैयार थाने के सेटअप में बैठे कथित एसपी, दारोगा, नारकोटिक्स और सीबीआई जैसे अधिकारियों से बात कराते हैं.
ज्यादा पैसे कमाने के लिए खोली जा रही लोकल यूनिट
साइबर एक्सपर्ट राहुल मिश्रा ने बताया कि अब तक साइबर पुलिस ठगी के शिकार लोगों के पैसे ही रिकवर कर पाती थी. वह भी तब जब ठगी की सूचना 72 घंटे के अंदर दी जाती थी. लेकिन अब बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां भी हो रही हैं. इसकी वजह साइबर अपराध करने वाले गैंग का ज्यादा पैसे कमाने का लालच है. पहले जालसाज सुदूर इलाकों में बैठ कर ठगी करते थे, ऐसे में जांच एजेंसियों के रडार पर नहीं आते थे. लेकिन, अब इन्होंने अपनी लोकल यूनिट खोल दी है और वहीं आस पास के जिलों के लोगों की भर्ती कर रहे है. जो डिजिटल अरेस्ट कर आसानी से किसी को भी ठग ले रहे है. क्योंकि इनके पास सम्बन्धित व्यक्ति की हर जानकारियां होती है.
यूपी के हर जिले में है ठगःसाइबर सेल के शिशिर यादव बताते हैं कि बीते कुछ केस की स्टडी करने पर सामने आया है कि डिजिटल अरेस्ट के जरिए फ्रॉड करने वाले गैंग ने अपनी कार्यशैली में बदलाव किया है. पहले इस तरह का फ्रॉड नाइजीरिया गैंग दिल्ली से करता था. अब यहीं के गैंग देश में रहकर या फिर देश के बाहर से इन वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. लेकिन, अब जो अधिकांश ठगी हो रही है. इन ठगों के पास लोकल स्तर की भी जानकारियां होती हैं. लिहाजा साइबर पुलिस को कुछ सफलताएं भी मिली है और तीन मामलों में गिरफ्तारियां भी की है. ये ठग जहां ठगी करते है उन्हीं के आस पास के इलाकों में ही रहते थे.
डाटा खरीद कर करते हैं रेकीःलखनऊ एसीपी साइबर अभिनव ने बताया कि डिजिटल अरेस्ट करने वाले गैंग का नेटवर्क काफी बड़ा है. ये दलालों के माध्यम से रिटायर्ड अफसर, शिक्षक, डॉक्टर का डाटा खरीदते हैं. बैंक की डिटेल लेकर लोगों को फोन करते हैं और इसकी जानकारी देते हैं. बाकायदा उनकी एफडी और खाते में जमा रकम की जानकारी दी जाती है. यही नहीं, टारगेट से बातचीत के दौरान उनके ही जिले से आईपीएस अफसर का नाम भी यूज किया जाता है. जिससे लोग इनके विश्वास में पूरी तरह आ जाते हैं और ठगी का शिकार हो जाते हैं.
डिजिटल अरेस्ट होने से कैसे बचें?