मेरठ :गंगा के साथ-साथ अलग धारा के रूप में बहने वाली एक धारा जिसे बूढ़ी गंगा के तौर पर जाना जाता है. यह कहीं दिखाई देती है तो कहीं किसी खेत खलिहान या फिर किसी निर्माण कार्य के सामने जाकर ठहर जाती है. कई स्थानों पर बूढ़ी गंगा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती दिखती है. आलम यह है कि आजादी से पहले ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के मेरठ के हस्तिनापुर क्षेत्र में बहने वाली बूढ़ी गंगा नदी का अस्तित्व फिलहाल खतरे में है.
ईटीवी भारत से बातचीत में नेचुरल साइंसेज ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रियंक भारती ने कहा कि वह पिछले सात साल से बूढ़ी गंगा नदी को बचाने के लिए प्रयासरत हैं. बूढ़ी गंगा महाभारत कालीन ऐतिहासिक पौराणिक नदी है जो आजादी के बाद से विलुप्त हो गई थी. इसका अंग्रेजों के लिटरेचर में भी जिक्र मिलता है. 1950 के बाद पट्टा आवंटन और अवैध कब्जों के चलते गंगा की हालत और बदतर हो गई. हमने नदी को पुनर्जीवित करने का मामला एनजीटी में उठाया. इसके बाद मेरठ जिलाधिकारी के सहयोग से बैठकें हुईं और अब बजट तैयार किया जा रहा है.
प्रियंक भारती बताते हैं कि बूढ़ी गंगा देवल गांव से चलकर के हस्तिनापुर क्षेत्र में मुख्य धारा में जाकर मिली है. मुजफ्फरनगर जिले के देवल से कुंडा तक कुछ हिस्सों में बूढ़ी गंगा का फैलाव है. 1950 से लेकर 1985 तक हस्तिनापुर क्षेत्र में खास तौर से अवैध पट्टों के चलने से बूढ़ी गंगा मृतप्राय: होती चली गई और अब अस्तित्व खतरे में हैं. 1950 के दशक में जो भी पट्टे आवंटन हुए उसकी पत्रावली भी किसी के पास मौजूद नहीं है. 1975 से 1985 के बीच की कुछ पत्रावली अवश्य मिलती हैं. इस बीच जितना भी पट्टे आवंटित किए गए वह नसबंदी योजना के तहत आवंटित किए गए. जिला प्रशासन से एनजीटी ने जवाब तलब किया तो प्रशासन के पास कोई जवाब ही नहीं था. इसी को लेकर अक्टूबर 2023 में न्यायालय में एक रिपोर्ट जिला प्रशासन की तरफ से दाखिल की गई थी जिसे न्यायालय ने पूरी तरह से खारिज कर दिया था. उम्मीद है कि बदलाव होगा.