शिमला: हिमाचल में कल लोकसभा की चार सीटों पर मतदान होगा. हिमाचल प्रदेश में कुल 57 लाख 11 हजार 969 मतदाता हैं. प्रदेश में मतदान के लिए 7992 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं. कुल 369 पोलिंग बूथ अति संवेदनशील श्रेणी में हैं. कांगड़ा में सबसे अधिक 118 मतदान केंद्र इस श्रेणी में शामिल हैं. इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही सीधी टक्कर है. 2014-2019 में कांग्रेस को हिमाचल में एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई. इस बार प्रदेश की चारों सीटों पर बीजेपी कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है.
कांगड़ा सीट
कांगड़ा सीट पर बीजेपी-कांग्रेस को दोनों ही प्रत्याशियों का पहला लोकसभा चुनाव है. कांग्रेस प्रत्याशी आनंद शर्मा कद्दावर नेता हैं और मनमोहन सरकार में उनके पास वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की जिम्मेदारी थी. आनंद शर्मा चार बार राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं, इनमें से तीन बार हिमाचल के रास्ते राज्यसभा पहुंचे. अब लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करना उनके लिए बड़ी चुनौती है. आनंद शर्मा भले ही हिमाचल से संबंध रखते हों, लेकिन हिमाचल की राजनीति में वो बहुत कम सक्रिय रहे हैं. ऐसे में बीजेपी ने पूरे कैंपेन में उनके बाहरी होने के मुद्दे को खूब हवा दी थी.
वहीं, बीजेपी उम्मीदवार इससे पहले कभी कोई चुनाव नहीं लड़े. 2019 में सांसद बने किशन कपूर ने हिमाचल में सबसे ज्यादा वोट से जीत हासिल की थी, लेकिन बीजेपी ने उनका टिकट काट दिया और नए चेहरे को मैदान में उतारा. दरअसल हर बार चेहरा बदलना बीजेपी के लिए इस सीट पर हिट फॉर्मूला रहा है. 2004 के बाद इस सीट से बीजेपी ने हर चुनाव में यहां से नया चेहरा उतारकर लगातार चार बार जीत का चौका लगाया है. राजीव भारद्वाज शांता कुमार के करीबी हैं. शांता कुमार और राजन सुशांत के बाद बीजेपी एक ब्राह्मण चेहरे की तलाश में थी. स्थानीय नेताओं का मानना है कि शांता कुमार से करीबी रिश्ते होने के कारण वो टिकट झटकने में कामयाब रहे. बीजेपी ने 2009 में राजन सुशांत, 2014 में शांता कुमार और 2019 में किशन कपूर को टिकट दिया था. एक बार फिर बीजेपी ने चेहरा बदलकर अपना फॉर्मूला दोहराया है. दरअसल हर बार चेहरा बदलने के पीछे बीजेपी की रणनीति जनता की नराजगी को कम किया जाए.
मंडी संसदीय
हिमाचल प्रदेश की मंडी संसदीय सीट इस समय सबसे हॉट सीट बनी हुई हैं. इस सीट से बीजेपी ने 'बॉलीवुड क्वीन' कंगना रनौत को मैदान में उतारा है. वहीं, कांग्रेस ने एक बार फिर वीरभद्र परिवार पर भरोसा करते हुए विक्रमादित्य सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. कंगना का प्रचार के दौरान महिलाओं पर ज्यादा फोक्स था. उनका चुनावी नारा भी 'मंडी की बेटी मंडी के साथ' था. इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस और विक्रमादित्य सिंह पर तीखे जुबानी हमले भी किए और कांग्रेस के आरोपों का भी जवाब दिया. कंगना ने स्थानीय परिधानों में जनसभाओं को संबोधित कर मतदाताओं के बीच अभिनेत्री की छवि को तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन कांग्रेस ने जनसभाओं में कहा कि कंगना का 1 जून के बाद मुंबई का टिकट पक्का और वो वापस लौट जाएंगी. कांग्रेस ने अपने इस सियासी वार से कंगना की सियासी चाल का जवाब दिया. वहीं, कंगना के लिए पीएम मोदी, योगी, और नितिन गडकरी जैसे दिग्गज नेता रैलियां करते नजर आए.
जहां कंगना मोदी नाम पर चुनाव लड़ रही हैं तो वहीं, विक्रमादित्य सिंह छह बार के मुख्यमंत्री रह चुके अपने पिता वीरभद्र सिंह के नाम पर मैदान में कूदे हैं. विक्रमादित्य सिंह प्रदेश में युवा चेहरा हैं साथ ही राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं. इसके साथ वो वीरभद्र सिंह परिवार से आते है. इसके साथ ही विक्रमादित्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में भी गए थे. प्रचार के दौरान विक्रमादित्य सिंह के भाषणों में जयश्रीराम का नारा होता है. खुद को श्री कृष्ण वंशज बताकर उन्होंने मंडी सीट पर बीजेपी से हिंदूत्व का एजेंडा छीन लिया. अब तक हुए 17 लोकसभा चुनाव का ट्रेंड बताता है कि मंडी लोकसभा सीट पर जीत दर्ज करने वाले उम्मीदवार की पार्टी केंद्र में सरकार बनाती है. 1951-52 के आम चुनाव से लेकर 2019 लोकसभा चुनाव तक ये सिलसिला जारी है.