कांकेर :कांकेर जिले के अंदुरुनी इलाकों में आज भी कई ऐसे गांव हैं. जहां लोगों के पास अपनी प्यास बुझाने के लिए भी साफ पानी नहीं है. मजबूरन ग्रामीण जंगल पहाड़ों के बीच बने झिरिया का पानी पीने को मजबूर है. आपको बता दें कि कई गांवों में हैंडपंप से निकलने वाले पानी में आयरन की मात्रा ज्यादा है.जिसके कारण पानी पीने लायक नहीं है.इसलिए ग्रामीण अपनी प्यास बुझाने के लिए प्राकृतिक स्त्रोतों पर निर्भर रहते हैं.इन स्त्रोतों तक पहुंचने के लिए भी ग्रामीणों को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है.यही नहीं महिलाओं की सुरक्षा के लिए पुरुष हाथों में डंडा लिए जंगलों में घूमते रहते हैं.
गंदा पानी पीने को मजबूर ग्रामीण:मरकाचुआ गांव में 200 और बीजापारा में लगभग 23 लोग रहते है. इनका जीवन क्षेत्र से बहने वाली कोटरी नदी के दूषित पानी से गुजर रहा है. ग्रामीण इस पानी का उपयोग पीने सहित अपने दैनिक दिनचर्या के लिए करते हैं. ये पानी इतना गंदा है कि इसे पीकर कोई भी बीमार पड़ जाए. बावजूद इसके ग्रामीण मजबूरी में अपनी प्यास बुझाने इसी गंदे पानी को पी रहे हैं.इस गंदे पानी के लिए भी ग्रामीणों को रोजना संघर्ष करना पड़ता है. झिरिया का पानी लाने के लिए ग्रामीणों को जंगली पहाड़ी रास्तों को पार करके आना जाना पड़ता है. गांव की महिलाएं एक साथ लगभग दर्जनों की संख्या में नदी तक जाकर पानी निकालती हैं.
झिरिया का पानी दो साल से पी रहे हैं.वो भी गंदा रहता है.जिसके कारण हमें हर बार बीमार पड़ते हैं और डॉक्टर के पास जाना पड़ता है- रहवासी
जंगली जानवरों का बना रहता है डर : पूरा इलाका जंगलों और पहाड़ों से घिरा होने के कारण भालू, सियार समेत दूसरे जंगली जानवरों के हमले का डर बना रहता है. पानी लेने जाने के दौरान महिलाओं के साथ में किसी प्रकार की कोई अनहोनी ना हो इसलिए पुरुष भी लाठी लिए सुरक्षा के लिए उनके साथ जाते हैं.