लातेहारः महुआ का सीजन आते ही लातेहार में बहार आ जाती है. ग्रामीणों को अपने गांव और आसपास के जंगल में ही ऐसा रोजगार मिल जाता है, जिससे उन्हें काफी अच्छी आमदनी होती है. अप्रैल का पूरा महीना महुआ के सहारे ग्रामीणों के लिए आमदनी का महीना साबित होता है.
दरअसल झारखंड का लातेहार जिला महुआ के उत्पादन के दृष्टिकोण से पूरे देश में अग्रणी माना जाता है. यहां प्रत्येक सीजन में कम से कम 100 करोड़ रुपए मूल्य के महुआ का उत्पादन होता है. इसमें सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में ग्रामीणों को पूंजी के नाम पर एक पैसा भी नहीं लगाना पड़ता है. अर्थात बिना पूंजी लगाए ही सिर्फ थोड़ी सी मेहनत कर ग्रामीण खूब अच्छी आमदनी कर लेते हैं.
ग्रामीणों की भाषा में बात करें तो महुआ की खेती बिना हल-बैल की खेती है. जिसमें ना तो कोई पूंजी लगानी पड़ती है और ना ही इसमें नुकसान की कोई संभावना होती है. स्थानीय ग्रामीण संतोष प्रसाद की माने तो महुआ का फसल ग्रामीण इलाके के लिए आर्थिक रीढ़ के समान होता है. उन्होंने बताया कि महुआ के पेड़ से गिरने वाले महुआ को चुनकर किसान उसे सुखाते हैं और उसे बेचकर अच्छी आमदनी करते हैं. उन्होंने बताया कि वर्तमान में महुआ 40 से लेकर ₹50 प्रति किलो की दर से बाजार में बिक्री हो रही है.
खाने के साथ-साथ शराब बनाने में भी किया जाता है उपयोग
महुआ का उपयोग मुख्य रूप से ग्रामीणों द्वारा खाने के साथ-साथ शराब बनाने के लिए किया जाता है. बंगाल और ओडिशा में महुआ की मांग सबसे अधिक होती है. ग्रामीण जिसे महुआ व्यापारियों के पास बेचते हैं वह महुआ बंगाल, ओडिशा समेत अन्य राज्यों में बिक्री किए जाते हैं. हालांकि स्थानीय स्तर पर इसका उपयोग सिर्फ खाने या शराब बनाने में ही किया जाता है. ग्रामीण नंदलाल प्रसाद ने बताया कि महुआ का उपयोग स्थानीय लोग खाने के साथ-साथ शराब बनाने में भी करते हैं. उन्होंने बताया कि महुआ ग्रामीण क्षेत्र के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन है.
गांव में लौट आई है रौनक
इधर महुआ का सीजन आने के बाद गांव में रौनक लौट आई है. काम की तलाश में जो ग्रामीण पलायन कर बाहर चले जाते हैं, वह भी अप्रैल महीने में लौट कर अपने घर आ जाते हैं. स्थानीय ग्रामीण अरुण प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि यह स्वाभाविक है कि जब गांव में रोजगार के साधन उपलब्ध होंगे तो कोई भी ग्रामीण बाहर काम करने नहीं जाएगा. महुआ का सीजन आने के बाद गांव में रोजगार के साधन उपलब्ध हो जाते हैं. इसी कारण जो लोग काम की तलाश में बाहर गए होते हैं वह भी दो माह की छुट्टी लेकर वापस गांव लौट आते हैं और महुआ चुनकर अच्छी आमदनी करते हैं.