विदिशा :11 सितंबर को राधा अष्टमी के दिन राधारानी को स्वर्ण, हीरे आदि के आभूषण पहनाए जाएंगे. इस मौके पर करीब 35 घंटे तक मंदिर के पट दर्शन के लिए खुले रहेंगे. वहीं 364 दिन के इंतजार के बाद राधाष्टमी पर भक्तों को राधारानी के दर्शन मिलेंगे. इस बार खास बात यह है कि राधारानी के लिए 28 किलो चांदी का रजत सिंहासन तैयार किया गया है. इसमें 15 कलश स्थापित किए गए हैं, जिसमें सोने और मोतियों के नगों से विशेष श्रृंगार किया गया है.
क्या है इस मंदिर का इतिहास?
मंदिर के पट खोलने से पहले पुजारी पं. मनमोहन शर्मा ने ईटीवी भारत से कहा, '' श्रीराधा जी का जो यहां मंदिर है भारतवर्ष में राधा जी के दो ही मंदिर ऐसे हैं. एक मथुरा के बरसाना धाम में है और दूसरा जो वृंदावन में स्थित है. सन् 1670 के पूर्व मुगलों ने आक्रमण कर उस मंदिर को ध्वस्त कर दिया था. तब वहां से स्वामी परिवार ने निधियों को लाकर यहां स्थापित कर दिया. उस समय विदिशा की जो नगरीय स्थिति थी वो ऐसी नहीं थी, केवल एक छोटी सी बस्ती थी. इसके बाद स्वामी परिवार ने एक अलह झोपड़ी बनाकर यहां पूजा का क्रम जारी रखा ''
13 पीढ़ियों से राधा रानी के कर रहे सेवा
पुजारी पं. मनमोहन शर्मा ने बताया, '' राधा जी की सेवा करते हुए स्वामी परिवार की लगभग 12 से 13 पीढ़ियां व्यतीत हो चुकी हैं और अब भी उनके वंशजों द्वारा इस सेवा को संपन्न किया जाता है. बाहरी किसी व्यक्ति का सेवा में प्रवेश नहीं होता है.''