वाराणसी : वाराणसी स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में दक्षिण और उत्तर को एकसूत्र में पिरोने के लिए एक विशेष कार्य होने जा रहा है. जिस तरह से 'काशी-तमिल संगमम' के आयोजन से दक्षिण और उत्तर भारत के लोगों ने एक दूसरे की संस्कृति को जानना-पहचानना शुरू किया है. ठीक उसी तर्ज पर शोध पीठ की स्थापना की जाएगी. जहां पर लोग इन संस्कृतियों के बार में जान सकेंगे. विश्वविद्यालय द्वारा इसके लिए 'संस्कृत-तमिल' शोध पीठ की स्थापना की जाएगी. कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा का कहना है कि तमिलनाडु और काशी के बीच सदियों पुराने संबंधों को और मजबूत किया जा सकेगा.
कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि भारत एक अनोखा राष्ट्र है, जिसका निर्माण विविध भाषा, संस्कृति, धर्म के तानों-बानों, अहिंसा और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम तथा सांस्कृतिक विकास के समृद्ध इतिहास द्वारा एकता के सूत्र में बांधकर हुआ है. एक साझा इतिहास के बीच आपसी समझ की भावना ने विविधता में एक विशेष एकता को सक्षम किया है जो राष्ट्रवाद की एक लौ के रूप में सामने आती है. इस भविष्य में पोषित और अभिलषित करने की शृंखला में 'संस्कृत-तमिल' शोध पीठ की स्थापना करने का संकल्प है.
विद्यार्थियों और शिक्षकों को मिलेगा लाभ : काशी तमिल संगमम का उद्देश्य देश की दो सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन शिक्षा पीठों तमिलनाडु और काशी के बीच सदियों पुराने संबंधों की पुष्टि को और प्रगाढ़ बनाने की कोशिश रही है. इसी दृष्टि में संस्कृत-तमिल शोधपीठ की स्थापना का भी यही मुख्य उद्देश्य है. तमिल साहित्य में भी दुनिया के उत्कृष्ट साहित्य और वैज्ञानिक अन्वेषण संरक्षित हैं. जिनका संस्कृत भाषा से समन्वय स्थापित कर शोधपीठ की स्थापना से दोनों पक्षों के विद्यार्थियों और शिक्षकों को नवीन ऊर्जा के साथ रोजाना नए नवाचार और अन्वेषण से समृद्ध ज्ञान का आदान-प्रदान होगा.