उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

लकड़ी के खिलौनों को 'जिंदा' रखने वाले वाराणसी के गोदावरी को भी मिला पद्मश्री, पीएम भी कर चुके हैं सराहना

वाराणसी के गोदावरी सिंह (Varanasi Godavari singh) को भी पद्मश्री अवार्ड मिला है. लकड़ी के खिलौनों को नया जीवन देने के लिए वह जाने जाते हैं. उनकी इस कला की पीएम मोदी भी सराहना कर चुके हैं.

प्ेप
ि्प्

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 26, 2024, 12:27 PM IST

वाराणसी :केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी है. इस सूची में देशभर की कई हस्तियों के नाम शामिल हैं. इसी सूची में एक ऐसा भी नाम शामिल है, जिन्होंने वाराणसी की कला को देश-दुनिया तक पहुंचाने का काम किया. जी हां! वाराणसी के रहने वाले गोदावरी सिंह को भी पद्मश्री के लिए चुना गया है. उन्हें कला के क्षेत्र में अपूतपूर्व योगदान देने के लिए इस अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा. गोदावरी सिंह को वाराणसी की काष्ठ कला को संरक्षित और प्रसारित करने के लिए यह पुरस्कार दिया जाएगा. उन्होंने लकड़ी के खिलौनों के माध्यम से इस कला को जीवित रखा है. इन खिलौनों को जीआई टैग भी मिला है.

गोदावरी सिंह का लकड़ी के खिलौनों के क्षेत्र में काफी नाम है. वाराणसी के खोजवा में इनका कारखाना चलता है. इनके खिलौनों की चर्चा न सिर्फ वाराणसी में बल्कि देशभर में होती है. गोदावरी सिंह इस कला में स्टेट अवार्डी भी हैं. इतना ही नहीं ओडीओपी को लेकर भी इनकी सराहना हो चुकी है. खुद वाराणसी से सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके कार्यों की सराहना कर चुके हैं. गोदावरी काष्ठ कला के क्षेत्र में अलग-अलग प्रयोग करने के लिए भी जाने जाते हैं. इन्होंने लकड़ी के अलग-अलग डिजाइन के कई तरह के खिलौने तैयार किए हैं. इनका लकड़ी का बनाया बैग भी काफी चर्चा में रहा है.

दादा और पिता से सीखी काष्ठ कलाकारी :गोदावरी सिंह वाराणसी में लगभग 68 साल पहले वाराणसी में आए थे. यहां के कश्मीरीगंज मोहल्ले में उन्होंने अपना ठिकाना खोजा. उनके दादा और पिता भी काष्ठ कला के कारोबार में ही जुटे थे. उनके साथ रहकर ही गोदावरी सिंह ने काष्ठ कला की बारीकियां सीखीं. कुछ साल बीतते-बीतते इस लकड़ी के खिलौनों और अन्य तरह की काष्ठ कला की डिमांड कम होती गई. जानकार बताते हैं कि साल 1980 के दशक में लकड़ी के खिलौनों के कारोबार पर आधुनिकता का ग्रहण लग गया, जिससे इस कारोबार पर मंदी की मार पड़ने लगी. अच्छा खासा कारोबार टूटने लगा. इसी बीच गोदावरी सिंह ने अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी.

लकड़ी के खिलौनों को जिंदा बनाए रखा :करीब 84 साल के गोदावरी सिंह की बाजुओं में अभी भी वो ताकत बची है कि वे लकड़ी के खिलौनों को नया आकार दे सकते हैं. लकड़ी के खिलौनों आदि के कारोबार में नुकसान आने के बाद भी करीब 40 साल तक गोदावरी लगे रहे. इधर नरेंद्र मोदी के काशी से सांसद बनने और देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद से इस कारोबार के अच्छे दिन लौट आए. पीएम मोदी ने स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए हैंडीक्राफ्ट, लकड़ी के खिलौनों आदि में लगे लोगों को सरकार की योजनाओं के माध्यम से मदद मुहैया कराना शुरू किया. ओडीओपी के माध्यम से लोकल के उत्पादों को बढ़ावा मिला. जी20 जैसे आयोजनों में भी इन्हें बढ़ावा दिया गया. लकड़ी के खिलौनों को आज जीआई टैग मिला है.

यह भी पढ़ें :भारतीय पैराबैडमिंटन टीम के चीफ कोच गौरव खन्ना को भी मिला पद्मश्री, बोले- यह सम्मान मेरे लिए संजीवनी की तरह

ABOUT THE AUTHOR

...view details