वाराणसी :अद्भुत शहर बनारस में हर कुछ अद्भुत होता है और इस अद्भुत तरह के आयोजनों की शृंखला में 1 अप्रैल यानी मूर्ख दिवस के दिन वाराणसी के राजेंद्र प्रसाद घाट पर बने ओपन थिएटर यानी घाटों की सीढ़िया पर मौजूद पब्लिक की भारी भीड़ के बीच महामूर्ख मेले का आयोजन हुआ. 56 सालों से काशी के परंपरा के अनुरूप 1 अप्रैल यानी मूर्ख दिवस के दिन होने वाला या अद्भुत आयोजन काशी की संस्कृति का परिचायक है. सबसे बड़ी बात यह है कि इस आयोजन में एक से बढ़कर एक बुद्धिजीवी रहते हैं, लेकिन नाम इसे महामूर्ख मेला दिया जाता है और काशी के विद्युत जान और वरिष्ठजनों के साथ जुड़ती है. भारी भीड़ जहां हंसी ठिठौली के बीच एक ऐसी परंपरा भी निभाई जाती है जो हमारे और आपके जीवन का महत्वपूर्ण अंग है.
दरअसल शनिवार गोष्ठी नाम की साहित्यिक संस्था की तरफ से इस आयोजन को पूरा कराया जाता है. जिसमें सुदामा तिवारी जिन्हें सांड बनारसी के नाम से जाना जाता है, उनके संरक्षण में यह आयोजन विगत कई साल से किया जा रहा है. इस वर्ष भी 1 अप्रैल को मूर्ख दिवस के दिन यह आयोजन पूरा हुआ. काशी के प्रसिद्ध नगाड़े की थाप पर गधे की आवाज के साथ शुरू होने वाले इस आयोजन में सब कुछ अनूठा था.
दुल्हन की जगह लड़का दूल्हे की जगह लड़की और पंडित जी की जगह कवि जो अगड़म बगड़म शेरो शायरी के साथ शादी पूरी करते हैं और फिर शादी टूट भी जाती है. इस बार इस परंपरा को निभाने के लिए शहर के बड़े डॉक्टर कर्मराज सिंह दुल्हन की भूमिका में थे जबकि उनकी पत्नी और प्रसिद्ध डॉ. नूतन सिंह दूल्हे की भूमिका में थी. बंगाली रीति रिवाज का मुकुट धारण करके पत्नी दूल्हा बनकर बारात लेकर पहुंची और दुल्हन कामराज सिंह घूंघट में शादी की रसमदा करने पहुंचे शादी हुई और कुछ देर बाद दूल्हे ने दुल्हन को स्वीकारने से मना कर दिया. बाद में मनुहार के बाद लोग माने.