लखनऊ: प्रदेश में अंगदान को लेकर सोच नहीं बदली है. आज भी महिलाएं अंगदान कर पुरुषों का जीवन तो बचा लेती हैं, लेकिन जब उन्हें जरूरत होती है तो परिवार के पुरुष किनारा कर लेते हैं. इससे गंभीर बीमारी से जूझ रही तमाम महिलाएं अंगदान के इंतजार में दम तोड़ देती हैं. चिकित्सा संस्थानों में ऐसे भी कई केस सामने आए हैं जिनमें महिलाओं में किडनी, लिवर की गंभीर बीमारी होने पर उनका उपचार ही बंद कर दिया गया.
राज्य अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (एसओटीटीओ) की रिपोर्ट के मुताबिक पुरुष मरीजों को लिवर एवं किडनी दान करने वाली 87 फीसदी महिलाएं होती हैं. इसमें करीब 50 फीसदी मामलों में पत्नी अंगदान करती है. पत्नी के न होने पर 38 फीसदी केस में मां दान देती हैं. इसके अलावा परिवार के अन्य सदस्य अंगदान के लिए आगे आते हैं. वहीं, जब महिलाओं को अंगदान की जरूरत होती है तो सिर्फ 13 फीसदी परिवार के पुरुष ही आगे आते हैं.
एसओटीटीओ के निदेशक प्रो. आर हर्षवर्धन कहते हैं कि महिलाओं को दान में अंग दिलाना आज भी बड़ी चुनौती है. इसके पीछे मूल कारण सामाजिक सोच है. अंगदान के मामले में पुरुषों की सोच आज भी नहीं बदली है. परिवार के किसी पुरुष को अंग की जरूरत पड़ती है तो पत्नी और मां तत्काल आगे आ जाती हैं, लेकिन किसी महिला को अंग की जरूरत पड़ती है तो कोई पुरुष अंगदान करना भी चाहे तो परिवार के अन्य सदस्य उन्हें हतोत्साहित करते हैं.
बीमारी का पता लगते ही बंद कर देते हैं इलाज:केजीएमयू में अब तक आठ किडनी प्रत्यारोपण हुए हैं. इसमें मिर्फ एक महिला का प्रत्यारोपण हुआ है, यह भी कैडबर (ब्रेनडेड के बाद अंगदान) है. नेफ्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. विश्वजीत सिंह बताते हैं कि अंगदान के लिए जागरूकता पर निरंतर कार्य करने की जरूरत है. महिलाओं के उपचार को तवज्जो नहीं दी जाती है. ओपीडी में आने वाली महिला मरीजों के परिजनों को जब किडनी की गंभीर स्थिति के बारे में बता देते हैं तो वे आगे का इलाज ही बंद करने की कोशिश करते हैं.