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Special : लकड़ी का एक घर जो बयां करता है अतीत की कहानियां, अद्भुत है राजस्थान की कावड़ कला - कावड़ कला क्या है

Kavad Art of Bassi, चित्तौड़गढ़ के पास स्थित है बस्सी कस्बा, जहां की कावड़ कला देश-विदेश में ख्याति प्राप्त है. मुगलकाल में इस कला का जन्म हुआ. समय के साथ इसमें कई बदलाव आए. हालांकि, रामायण और महाभारत कावड़ की डिमांड अधिक रहती है, तो आइए डालते हैं इस कला के इतिहास और महत्व पर एक नजर...

Kavad Art Of Bassi
राजस्थान की कावड़ कला

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 27, 2024, 10:36 AM IST

Updated : Feb 27, 2024, 2:23 PM IST

अद्भुत है राजस्थान की कावड़ कला

चित्तौड़गढ़. निकटवर्ती बस्सी कस्बा अपनी अनूठी कावड़ कला के लिए भी पहचाना जाता है. सुथार जाति के कुछ परिवार आज भी अपने बाप-दादा की इस कला को सहेज कर सात समंदर पार पहुंचा चुके हैं. हालांकि, समय के साथ अब इसकी विषय वस्तु में भी बदलाव आया है. धार्मिक पुट के साथ समसामयिक विषयों का भी समावेश किया जाने लगा है. उसी का परिणाम है कि मेवाड़ से निकलकर देश के विभिन्न हिस्सों तक इसकी डिमांड पहुंच गई. सुखद पहलू यह है कि इसे सीखने के लिए युवा वर्ग आगे आ रहा है. इसके लिए बाकायदा सरकार की ओर से ट्रेनिंग की व्यवस्था की गई है.

मुगल काल में धर्म जागरण की थी जरिया : आर्टिस्ट द्वारका प्रसाद जांगिड़ के अनुसार मुगल काल में हिंदू धर्म पर विभिन्न प्रकार की पाबंदियां थी. शहरों में मंदिर तोड़ दिए गए थे. ग्रामीण अंचल में लोग अनपढ़ होने के कारण धर्म के प्रति जागरूक नहीं थे. सुबह से शाम तक खेती बाड़ी के साथ अपने काम धंधों में लगे रहते थे. ऐसे में शाम के समय कावड़ के जरिए उन्हें रामायण, महाभारत कृष्ण लीलाएं सहित तत्कालीन धर्म उपदेशों पर आधारित कहानियों से धर्म के प्रति जागृत किया जाता था.

टेलीविजन के परदे की तरह खुलता है कावड़ : कावड़ एक प्रकार से मुगल काल का टेलीविजन माना जा सकता है. लकड़ी के मंदिर में दरवाजों की तरह पट्ट बनाए जाते हैं, जिन पर कहानी के आधार पर अलग-अलग चित्र बनाए जाते हैं. यह चित्र कहानी के प्रारंभ से अंत तक बाकायदा सीरीज में पट्ट पर उकेरे जाते हैं. कावड़ की साइज डिमांड के अनुरूप रहती है जो 4 से 5 फीट तक भी तैयार की जाती है. इन्हीं पर पूरी कहानी का पिक्चराइजेशन किया जाता है.

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कावड़ आर्टिस्ट जांगिड़ के अनुसार यह आर्ट हमारे बाप दादाओं के जमाने से चली आ रही है. उस जमाने में भाट जाति के लोग माथे पर कावड़ लेकर गांव-गांव पहुंचते और शाम को सार्वजनिक स्थान पर कावड़ का प्रदर्शन करते थे. प्रारंभ से लेकर अंत तक चित्रों के जरिए पूरी कहानी लोगों को बताते. शहरों में चोरी छुपे कावड़ ले जानी पड़ती थी, क्योंकि वहां मुगलों का पहरा रहता था.

कावड़ कला से संबंधित तथ्य

अब हर विषय पर बनती है कावड़ : बदलते सामाजिक परिवेश के साथ कावड़ की विषय वस्तु में भी बदलाव आया. हालांकि, रामायण और महाभारत कावड़ की डिमांड अधिक रहती है, लेकिन धीरे-धीरे संदेश परख कावड़ भी बनाई जाने लगी. कोरोना काल में डिमांड के अनुरूप जांगिड़ द्वारा कोरोना जन जागरूकता पर कावड़ बनाई गई. उसके कुछ चित्र लंदन तक भी पहुंचे.

महिलाओं और बच्चों को दी जा रही ट्रेनिंग : पिछले 45 साल से इस कला को जीवंत बनाए रखने वाले जांगिड़ के अनुसार कस्बे में तीन से चार परिवार कावड़ बनाने का काम करते हैं, लेकिन वे लोग केवल महाभारत और रामायण पर ही कावड़ बनाते हैं जबकि हम अन्य विषयों पर भी कावड़ तैयार करते हैं. घर की महिलाओं के साथ-साथ अन्य जरूरतमंद महिलाओं को भी यह काम सीखा रहे हैं. वहीं, सरकार की योजना के अंतर्गत बच्चों को स्पेशल ट्रेनिंग देने के लिए बाहर भी भेजा जाता है.

Last Updated : Feb 27, 2024, 2:23 PM IST

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