कोरबा:छत्तीसगढ़ में लाइन लॉस के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. जितनी बिजली पैदा हो रही है. उसका 20 फीसदी हिस्सा पूरी तरह से बर्बाद हो रहा है. प्रदेश भर के पावर प्लांट मिलकर जितनी बिजली पैदा कर रहे हैं. उसमें से 20 फीसदी बिजली बेकार हो जाती है. अब इस नुकसान की भरपाई करने के लिए विद्युत विभाग में बिजली के दरों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव तैयार किया गया है. विद्युत विनियामक आयोग ने इसकी स्वीकृति भी दे दी है. आने वाले कुछ महीनों के भीतर ही बढ़ी हुई दरें लागू कर दी जाएंगी.
आम उपभोक्ता के जेब पर बिजली पड़ेगी भारी :छत्तीसगढ़ में बिजली दरें बढ़ने से इसका सीधा असर उन उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा, जो बिजली खरीदकर ईमानदारी से इसका भुगतान बिजली विभाग को करते हैं. घरेलू से लेकर औद्योगिक बिजली की दरों में 20% तक की बढ़ोतरी होगी. 400 यूनिट तक की बिजली को घरेलू उपयोग के लिए उपयुक्त औसत माना जाता है. इस स्लैब में भी लगभग 8 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हो रही है. जिसका एकमात्र कारण लाइन लॉस के बढ़े हुए आंकड़े हैं.
क्या होता है लाइन लॉस :पावर प्लांट से बिजली पैदा होने के पश्चात पवार ग्रिड में बिजली के संचरण और वितरण के दौरान बिजली की जो मात्रा नष्ट हो जाती है. उसे ही लाइन लॉस कहा जाता है. तकनीकी प्रक्रिया के दौरान लाइन लॉस एक सामान्य प्रक्रिया है. लेकिन लाइन लॉस के लिए सिर्फ यही एक वजह उत्तरदाई नहीं है. लाइन लॉस होने का बड़ा कारण बिजली की चोरी भी है. ऐसे उपभोक्ता जो बिजली का उपयोग तो करते हैं लेकिन इसके बदले में इसका भुगतान बिजली विभाग को नहीं देते. कुकिंग या कटिया या फिर किसी और माध्यम से अपने घर के ऊपर से गुजर रही लाइन से तार फंसाकर बिजली चोरी करते हैं. इससे कंपनी का सबसे ज्यादा नुकसान होता है. इसके अलावा कंपनी के पुराने तार और कमजोर संसाधन बिजली विभाग के लाइन लॉस के आंकड़ों को लगातार बढ़ा रहे हैं.राज्य विद्युत वितरण कंपनी ने छत्तीसगढ़ बिजली नियामक आयोग को 4 हजार 420 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय की जरूरत बताई गई है.
2100 मेगावाट बिजली का उत्पादन में 20% का घाटा :7 जून की स्थिति में प्रदेश के सरकारी पावर प्लांट मिलकर 2100 मेगावाट बिजली पैदा कर रहे हैं. जबकि छत्तीसगढ़ की डिमांड 5023 मेगावाट है. इस बढ़े हुए डिमांड को पूरा करने के लिए सेंट्रल पूल से बिजली उधार ली जाती है. वर्तमान में लाइन लॉस की परिस्थितियों के अनुसार यदि सभी पावर प्लांट मिलकर 2100 मेगावाट के बिजली पैदा कर रहे हैं. तो इसमें से 20% यानी 420 मेगावाट बिजली का लाइन लॉस हो रहा है. इस बिजली का बिजली विभाग को कोई भी रिटर्न नहीं मिलता. 420 मेगावाट बिजली के बदले में विद्युत विभाग को किसी भी तरह का फायदा नहीं होता. यह कंपनी का विशुद्ध नुकसान है.
मकड़ी के जाले की तरह उलझी रहती हैं लाइन : लाइन लॉस का हवाला देकर एक तरफ तो बिजली विभाग विद्युत दरों में बढ़ोतरी करने को तैयार है. लेकिन दूसरी तरफ कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत नहीं किया जा रहा है. कोरबा के बालको क्षेत्र के सेक्टर 5, आजाद नगर इलाके में तार मकड़जाल की तरह उलझे हुए हैं. बस्तीवासी बांस-बल्ली तानकर बिजली अपने घरों तक ले गए हैं. लेकिन बिजली विभाग ने इसे सुधारने की जहमत नहीं उठाई. स्थानीय निवासी कहते हैं कि बिजली के बिना कोई काम नहीं होता. बिजली विभाग के अधिकारियों को कई बार इसकी शिकायत की गई, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ.