अजमेर : देशभर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं. ईटीवी भारत आज आपको उस स्थान के दर्शन करवा रहा है, जहां धरती पर सर्वप्रथम भगवान श्री विष्णु का पदार्पण हुआ था. यहां आज भी विश्व की सबसे प्राचीन भगवान विष्णु की शेषनाग पर शयन करते हुए प्रतिमा मौजूद है. यह वही प्रतिमा है, जिसको स्वयं जगतपिता ब्रह्मा की ओर से पूजा जाता था. तीर्थ नगरी पुष्कर के अरण्य क्षेत्र में मौजूद सूरजकुंड गांव के समीप कानबाय के नाम से यह पवित्र स्थान विख्यात है. हरिवंश पुराण में श्रीहरि के इस पवित्र स्थान का उल्लेख मिलता है. पुष्कर अरण्य क्षेत्र इतना पवित्र है कि यहां ब्रह्मा विष्णु और महेश ने सृष्टि यज्ञ से पहले घोर तप किए थे. इस स्थान का अति पौराणिक महत्व है. यही वजह है कि भगवान श्रीराम दो बार और भगवान श्रीकृष्ण सात बार स्वयं यहां आए थे.
तीर्थ राज गुरु पुष्कर नगरी में जगतपिता ब्रह्मा का विश्व में इकलौता मंदिर है. सृष्टि के रचयिता जगतपिता ब्रह्मा का उद्भव भगवान विष्णु की नाभि से माना जाता है. करोड़ों वर्ष पहले पुष्कर से 12 किलोमीटर दूर नागौर की ओर समंदर था. शास्त्रों के मुताबिक यह समंदर ही क्षीर सागर था. पुष्कर से 8 किलोमीटर की दूरी पर सूरजकुंड गांव स्थित है, जहां समीप ही कानबाय नाम से विख्यात अति प्राचीन स्थान है. यहां करोड़ों वर्ष पहले क्षीर सागर हुआ करता था. समुद्र मंथन के बाद क्षीर सागर का दायरा सिमट गया. समुद्र मंथन में ही माता लक्ष्मी का भी उद्भव हुआ था. ऐसे में पुष्कर आरण्य क्षेत्र में ही लक्ष्मी का उद्भव समुद्र मंथन के दौरान होना माना जाता है.
यहां भगवान विष्णु ने किया था सर्वप्रथम पदार्पण : पदम पुराण के अनुसार हजारों वर्ष पहले पुष्कर के कानबाय क्षेत्र में ही पंच धारों (नदी) का मिलन था. इन नदियों में नंदा, कनका, सुप्रभा, सुधा और प्राची शामिल थी. यही वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने धरती पर पहला पदार्पण किया था. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने 10 वर्ष और भगवान शिव ने 9 वर्ष तक यहीं कठोर तप किया था. कानबाय में क्षीर सागर नामक एक कुंड भी है, जहां ऋषि च्यवन ने स्नान करके वृद्ध होने के श्राप से मुक्ति पाई थी. कानबाय में भगवान विष्णु की विश्व की सबसे प्राचीन मूर्ति है. वर्षो से यह स्थान आसपास के ग्रामीणों के लिए पूजित रहा है, लेकिन पुष्कर आने वाले तीर्थ यात्रियों को भगवान विष्णु के अति प्राचीन स्थान के बारे में कम ही जानकारी हो पाती है. यही वजह है कि वर्षो से शासन और प्रशासन की भी बेरुखी इस स्थान को लेकर रही है.
जन्माष्टमी पर रात भर होता है कीर्तन :मंदिर के महंत दामोदर वैष्णव बताते हैं कि कानाबाय पुष्कर से दूर खजूर के वन में स्थित होने के कारण तीर्थ यात्रियों को इस पवित्र स्थान के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है. आसपास के दर्जनों गांव के अलावा अन्य जिलों से बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए यहां आते हैं. जन्माष्टमी के पर्व पर रात भर यहां कीर्तन होता है. अगले दिन मेला भरता है. श्रद्धालु बताते हैं कि कानबाय मंदिर में आने वाले लोगों को यहां विशेष अनुभूति होती है. पहली बार आने पर श्रद्धालु की आस्था स्वतः ही मंदिर से जुड़ जाती है. श्रद्धालु नरेंद्र जोशी ने बताया कि वह बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ मंदिर आया करते थे. जन्माष्टमी के पर्व पर वह हमेशा मंदिर आते हैं. उन्होंने बताया कि पुष्कर आने वाले तीर्थ यात्रियों को भगवान विष्णु के इस पवित्र स्थान के बारे में जानकारी नहीं हो पाती है. ऐसे में वह यहां तक नहीं पहुंच पाते. यही वजह है कि कम ही लोगों को मंदिर के इतिहास और यहां के पौराणिक महत्व के बारे में जानकारी है. आसपास के गांव से बड़ी संख्या में लोग जन्माष्टमी पर्व की रात को यहां दर्शनों के लिए आते हैं.