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मकान मालिक की जरूरत पर किरायेदार को खाली करना पड़ेगा घर-दुकान, बस देखना होगा जरूरतें वास्तविक हैं या नहीं: हाईकोर्ट - HIGH COURT ORDER

एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि मकान मालिक की मर्जी पर निर्भर होता है किराएदार

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 15, 2025, 11:03 PM IST

Updated : Jan 16, 2025, 12:00 PM IST

प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि किरायेदार आमतौर पर मकान मालिक की मर्जी पर निर्भर होता है. अगर मकान मालिक चाहे तो उसे मकान पर कब्जा छोड़ना होगा. हालांकि अदालत ने यह भी कहा- 'किरायेदार के खिलाफ निर्णय देने से पहले न्यायालय को यह देखना चाहिए कि मकान मालिक की जरूरतें वास्तविक हैं या नहीं.' यह आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने जुल्फिकार अहमद व कई अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया है.

संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दखल की जरूरत नहीं: उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी कोर्ट ने कहा कि किराएदार को मकान मालिक की मर्जी पर निर्भर होना चाहिए. क्योंकि जब भी मकान मालिक को निजी इस्तेमाल के लिए संपत्ति की जरूरत होगी तो उसे छोड़ना होगा. अदालत को बस यह देखना है कि जरूरत है या नहीं. कोर्ट ने किरायेदार की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब वास्तविक आवश्यकता और तुलनात्मक कठिनाई मकान मालिक के पक्ष में हो तो संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है.

मामले के तथ्यों के अनुसार मालिक ने निजी ज़रूरत के आधार पर दो दुकान खाली कराने का आवेदन किया था. मकान मालिक का इरादा दोनों दुकानों में मोटर साइकिल और स्कूटर मरम्मत का काम करने के लिए एक दुकान खोलने का था. विहित प्राधिकारी ने दुकान खाली करने के आवेदन को स्वीकार करते हुए कहा कि वास्तविक आवश्यकता और तुलनात्मक कठिनाई मकान मालिक के पक्ष में है. किरायेदार की अपील खारिज कर दी गई. किरायेदार ने हाईकोर्ट में यह याचिका लगाई थी.

मकान मालिक को यह अधिकार कि कौन आवास या दुकान उसके लिए उपयुक्त: हाईकोर्ट ने कहा कि वैकल्पिक आवास का प्रश्न हालांकि प्राधिकरण द्वारा निर्णय लेने के लिए अनिवार्य है. लेकिन इसका उत्तर प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर दिया जाएगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि किस प्रकार का वैकल्पिक आवास उपलब्ध है. इसकी उपयुक्तता के साथ ही अन्य कारक जैसे मकान मालिक के परिवार का आकार, आवास मकान मालिक के व्यवसाय को चलाने के लिए पर्याप्त आदि होना है.

अदालत के मुताबिक निर्धारित प्राधिकारी को केवल किराएदार द्वारा बताए गए वैकल्पिक आवास के आधार पर खाली करने के आवेदन को खारिज करने में धीमा रहना होगा. मकान मालिक हमेशा यह तय करने में सबसे अच्छा मध्यस्थ होगा कि कौन सा आवास उसके व्यवसाय के लिए सबसे उपयुक्त होगा. परिणामस्वरूप यह माना गया कि नियम 1972 की धारा 16(1)(डी) के तहत भी निर्धारित प्राधिकारी के आदेश को अपील में बरकरार रखा गया, वह सही था.

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Last Updated : Jan 16, 2025, 12:00 PM IST

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