प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि किरायेदार आमतौर पर मकान मालिक की मर्जी पर निर्भर होता है. अगर मकान मालिक चाहे तो उसे मकान पर कब्जा छोड़ना होगा. हालांकि अदालत ने यह भी कहा- 'किरायेदार के खिलाफ निर्णय देने से पहले न्यायालय को यह देखना चाहिए कि मकान मालिक की जरूरतें वास्तविक हैं या नहीं.' यह आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने जुल्फिकार अहमद व कई अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया है.
संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दखल की जरूरत नहीं: उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी कोर्ट ने कहा कि किराएदार को मकान मालिक की मर्जी पर निर्भर होना चाहिए. क्योंकि जब भी मकान मालिक को निजी इस्तेमाल के लिए संपत्ति की जरूरत होगी तो उसे छोड़ना होगा. अदालत को बस यह देखना है कि जरूरत है या नहीं. कोर्ट ने किरायेदार की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब वास्तविक आवश्यकता और तुलनात्मक कठिनाई मकान मालिक के पक्ष में हो तो संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है.
मामले के तथ्यों के अनुसार मालिक ने निजी ज़रूरत के आधार पर दो दुकान खाली कराने का आवेदन किया था. मकान मालिक का इरादा दोनों दुकानों में मोटर साइकिल और स्कूटर मरम्मत का काम करने के लिए एक दुकान खोलने का था. विहित प्राधिकारी ने दुकान खाली करने के आवेदन को स्वीकार करते हुए कहा कि वास्तविक आवश्यकता और तुलनात्मक कठिनाई मकान मालिक के पक्ष में है. किरायेदार की अपील खारिज कर दी गई. किरायेदार ने हाईकोर्ट में यह याचिका लगाई थी.