शिमला: हिमाचल प्रदेश में सरकारी वन भूमि पर कथित रूप से अतिक्रमण से जुड़े मामले में कुछ लोगों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. हिमाचल हाईकोर्ट ने सरकारी वन भूमि पर कब्जे के आरोप से जुड़े मामले में संबंधित अधिकारियों को अतिक्रमण हटाकर कब्जा लेने के आदेश दिए थे. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की गई थी. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल स्पेशल लीव पिटीशन में याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि वन विभाग ने प्रोसीजरल स्टेप्स पूरे नहीं किए थे. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता बाबू राम व उसके साथ वाले मामलों में हाईकोर्ट का फैसला निरस्त किया है.
याचिकाकर्ता बाबू राम की तरफ से सीनियर एडवोकेट नीरज शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में इस केस की पैरवी की थी. सीनियर एडवोकेट नीरज शर्मा के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त मौका नहीं दिया गया. अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि राज्य सरकार अतिक्रमण से जुड़े मामलों में नए सिरे से कार्रवाई करे. वन विभाग को दो माह के भीतर निशानदेही यानी डिमार्केशन पूरी करने के लिए कहा गया है.
सुप्रीम कोर्ट में ये मामला न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लगा था. मामले के अनुसार वर्ष 2015 में वन विभाग ने पीपी एक्ट यानी पब्लिक प्रेमिसेस एक्ट के तहत कार्रवाई करते हुए कथित रूप से अतिक्रमण के मामले में चालान पेश किया था. चालान में याचिकाकर्ताओं को अवैध रूप से सरकारी वन भूमि पर कथित अतिक्रमण के मामले में नोटिस जारी किए गए. बाद में मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो वहां पब्लिक प्रेमिसेस एक्ट की धारा-4 के अंतर्गत वन विभाग के एक्शन को सही माना. हाईकोर्ट ने आदेश दिए कि 30 दिन के भीतर सरकारी वन भूमि पर अतिक्रमण को हटाया जाए.