जयपुर : राजस्थान में हाल के वर्षों में आत्महत्या के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है जो विशेष रूप से स्कूलों, कोचिंग संस्थानों और प्रतियोगी परीक्षाओं में अध्ययन कर रहे छात्रों के बीच एक चिंताजनक समस्या बन चुकी है. हाल ही में जयपुर स्थित एमएनआईटी में एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली, जबकि कोटा में भी आत्महत्या का एक और मामला सामने आया. इन घटनाओं ने राजस्थान के आत्महत्या के मामलों में एक खतरनाक प्रवृत्ति को उजागर किया है.
आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में पिछले पांच वर्षों में 80 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की है, जिनमें से अधिकांश 17 से 18 वर्ष की आयु के हैं. इसके अलावा 18 वर्ष से अधिक आयु वाले छात्रों में भी आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है. इन आत्महत्याओं के प्रमुख कारणों में स्कूल, कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षाओं में असफलता, समाज और माता-पिता की अपेक्षाएं और मानसिक अवसाद प्रमुख रूप से शामिल हैं.
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मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों की चिंता :समाजसेवी विजय गोयल के अनुसार यह आंकड़ा अत्यंत चिंताजनक है, क्योंकि अत्यंत कम उम्र में मानसिक अवसाद के कारण बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं. मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल तांबी का कहना है कि आजकल एन्ट्रेंस एग्जाम्स में प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ती जा रही है. बच्चों से माता-पिता की अपेक्षाएं भी अधिक हो गई हैं. जब बच्चे इन अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते तो कई बार उन्हें आत्महत्या का रास्ता अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.