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अयोध्या जाने के लिए दूसरे की पत्नी को बताया था अपनी, जानिए कारसेवक राजू पाठक की कहानी

वाराणसी के कार सेवक राजू पाठक की कहानी. जिन्होंने गुंबद पर चढ़ने का काम किया था. अयोध्या पहुंचने के लिए राजू ने दूसरे की पत्नी को अपनी पत्नी बताकर पुलिस की गिरफ्तारी से बचने का प्रयास किया था.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 20, 2024, 8:58 PM IST

वाराणसी के कार सेवक राजू पाठक ने ईटीवी भारत से साझा की जानकारी



वाराणसी: अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन और रामलला की प्रतिमा की स्थापना का कार्य चल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी को मुख्य आयोजन में शामिल होंगे और भक्तों के लिए प्रभु के दर्शन भी खोले जाएंगे. इन सब के बीच लगभग 500 सालों के एक बड़े संघर्ष के बाद इस मंदिर के निर्माण में कई लोगों को उत्साह से भर दिया है. खास तौर पर वह कार सेवक जिन्होंने 1991 में भगवान राम के कार्य के लिए अपने प्राणों की आहुति देने और प्राणों की परवाह किए बिना अयोध्या पहुंचकर बाबरी विध्वंस का काम किया था. वह कारसेवक आज खुद को न सिर्फ गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं, बल्कि उन स्मृतियों को याद करके प्रभु श्री राम को भी नमन कर रहे हैं. ऐसी ही एक कहानी वाराणसी के पक्के महाल यानी पुराने बनारस के राजू पाठक की है. 30 वर्ष की अवस्था में राजू पाठक ने भगवान राम के लिए अपने जीवन की परवाह किए बिना लगभग सवा सौ किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलकर तमाम दुश्वारियां को झेलते हुए गुंबद पर चढ़ने का काम किया था. राजू आज भी उन स्मृतियों को याद करते हैं और पूरी कहानी बड़े ही मजेदार तरीके से सुनाते हैं.

रास्ते में हो रही थी गिरफ्तारियां:वाराणसी के राजू पाठक वर्तमान में बनारस के पुराने इलाके में रहते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि आज भी राजू को लोग देखते ही जय श्री राम के संबोधन के साथ उनका सत्कार करते हैं. पूरे मोहल्ले में राजू श्रीवास्तव को राम भक्त के रूप में ही जाना जाता है, क्योंकि आज भी अखबारों की कटिंग से लेकर राजमाता सिंधिया की तरफ से दी गई भगवान श्री राम की एक छोटी सी स्मृति भी राजू ने संजोकर रखी है. अपनी तस्वीरों की अखबारों में निकली कटिंग और तमाम अखबारों की सुर्खियों को राजू ने बड़े ही बेहतर तरीके से संजोकर रखा है. राजू का कहना है कि आज भी मुझे वह दिन याद है, जब 25 दिसंबर को हम बनारस से तीन लोग भगवान राम के काम के लिए निकले थे. हमें यह भरोसा दिलाया गया था कि हम सब अयोध्या जाएंगे लेकिन, रास्ते में ही गिरफ्तारियां होने लगी और मैं वहां से भाग निकला.

ऐसे पुलिस से बच निकले: राजू बताते हैं कि वह जिस बस से जा रहे थे, उसमें पुलिस ने छापेमारी शुरू कर दी थी. इस दौरान जब उनसे कहा गया कि राजू पाठक आप गिरफ्तार किया जा रहे हैं, तो मैंने कहा था मैं राजू पाठक नहीं अनिल सिंह हूं. पुलिस को भरोसा दिलाने के लिए मैंने एक परिवार का बिना बोले ही साथ मांग लिया. एक महिला अपने बच्चों और पति के साथ लखनऊ जा रही थी. मैंने उस महिला का हाथ पकड़ कर पुलिस से कहा, यह मेरी पत्नी और मेरे बच्चे हैं. हम लोग लखनऊ किसी ट्रेनिंग के लिए जा रहे हैं. महिला भी चुप रही, कुछ नहीं बोली और उसके पति ने भी चुप रहकर मेरा साथ दिया. हालांकि जब हम वहां से आगे बढ़े, तो बनारस जौनपुर की सीमा पर मैं गाड़ी से उतर गया और महिला का धन्यवाद देकर वहां से आगे बढ़ा. लेकिन रास्ते में पुलिस की छापेमारी तेज हुई तो मैं वापस बनारस लौट आया.

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पैदल तय किया सफर:राजू पाठक ने बताया कि इसके बाद उनके कुछ साथी प्लानिंग के बाद शाम को फिर निकले और ट्रेन पड़कर अयोध्या के लिए रवाना हुए. जगदीशपुर के पास लगभग भोर में 4:00 बजे वह सभी ट्रेन से कूद गए और पैदल चलते-चलते चलते चलते जंगल झाड़ियों से होते हुए जब खेत में पहुंचे तो एक किसान ने उनकी मदद की और बताया कि यह जगदीशपुर है और यहां से अयोध्या भी दूर है. राजू बताते हैं कि हम लोग उल्टा दूसरे रास्ते पर बढ़ गए और एक दिन हमारा बर्बाद हुआ. फिर हम दोबारा लौटे और अयोध्या की तरफ बढ़ने लगे. तमाम दिक्कतों के बाद ठंड और कोहरे के साथ ही भयानक ओस का सामना करते हुए पैदल चलता रहा. राजू ने बताया कि हम सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक पैदल चलते थे और 7 बजे किसी बस्ती में रुकते थे. जहां हिंदू भाई हमारा पूरा साथ देते थे. अपने घर में सुरक्षित रखने से लेकर खाना पीना खिलाने तक सब यही लोग करते थे. हमें सुरक्षित अयोध्या तक पहुंचने में हर रास्ते के हिंदू भाइयों का बड़ा योगदान था.

लाठियां और चल रही थी गोलियां: राजू बताते हैं कि हम लोग जब अयोध्या पहुंचे, तो वहां पर लाठियां और गोलियां चलाई जा रही थी, लेकिन हम अपनी जान की परवाह किए बिना बस आगे बढ़े जा रहे थे. एक महात्मा जी वहां बस लेकर पहुंचे थे और तमाम बैरिकेडिंग तोड़ते हुए बस सीधे अयोध्या विवादित स्थल तक पहुंची और कारसेवक अंदर दाखिल होने लगे. राजू ने बताया कि उसे भीड़ का हिस्सा मैं भी था. जब हम लोग हाथ में हाथ पकड़ कर सीढ़ियां बनाते हुए एक-एक करके गुंबद पर चढ़ने लगे. गुंबद पर चढ़ने वालों में मैं भी था. हाथ में श्री राम का भगवा झंडा लेकर जब हम ऊपर चढ़े, तो गोलियां चलनी शुरू हुई, लेकिन तब तक काम हो चुका था. हम लोग श्री राम का नारा लगाते हुए नीचे कूद गए. इसके बाद पुलिस ने हमारी बहुत पिटाई की. गिरफ्तारी भी हुई लेकिन, रास्ते में जाते वक्त हम सरयू नदी में कूद कर भाग निकले.

राजू का कहना है कि यह राम का नहीं राष्ट्र का मंदिर बन रहा है. पूरे राष्ट्र ने इसमें अपना योगदान दिया और आज प्रभु श्री राम जब वापस आए हैं तो, हम लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं है. हमें निमंत्रण मिला या नहीं मिला यह बात की बात है. हम एक संगठन से जुड़े थे और उसी की संस्कृति का सम्मान करते हैं. हमारे लिए राम वही है जहां हम चाहेंगे. हम अपने घर में दीपक जलाएंगे, खुशियां मनाएंगे और प्रभु श्री राम के आगमन पर सभी को बधाई भी बाटेंगे. राजू इन स्मृतियों के साथ आज खुद को बहुत फक्र के साथ कारसेवक कहते हैं. राजू उस दिन को भी याद करते हैं जब उनकी छोटी बेटी उनके पिता के साथ मोहल्ले के ही हनुमान मंदिर पर आकर बार-बार कहती थी. पापा अब नहीं आएंगे लेकिन, पिता को भरोसा था कि बेटा राजू लौट कर आएगा. आज वह दिन राजू देख रहे हैं, जिसका उन्हें इंतजार था.

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