लखनऊ :युवाओं को प्रशिक्षित कर रोजगार के अवसर दिलाने के लिए शुरू किए गए केंद्र और प्रदेश सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट को किसी की नजर लग गई लगता है. शायद यही कारण है कि मिशन में इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. करोड़ों की पूंजी लगाकर प्रशिक्षण भागीदार बनी कंपनियों के कर्ताधर्ता इन दिनों फुटबॉल बने हुए हैं. प्रशिक्षण सहयोगियों को भुगतान के लिए धक्के खाने पड़ते हैं, लेकिन नतीजा नहीं निकलता. मिशन के अधिकारी इसके लिए एनआईसी (राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र, उत्तर प्रदेश) को जिम्मेदार बताते हैं, लेकिन प्रशिक्षण सहयोगियों के पास कोई जगह नहीं है, जहां वह अपनी बात रख सकें.
स्टार्टअप ट्रेनिंग पार्टनर्स पर हो रहा दोहरा सितम :कुछ माह पूर्व कौशल विकास मिशन ने नए प्रशिक्षण सहयोगियों के लिए आवेदन मांगे थे जो इस क्षेत्र में काम करना चाहते हों. उन्हें नाम दिया गया था स्टार्टअप ट्रेनिंग पार्टनर. मिशन के स्तर पर इनके साथ कदम-कदम पर धोखा हुआ. 10-10 लाख रुपये की एफडी मिशन के नाम कराने के बाद लगभग सवा तीन सौ ट्रेनिंग पार्टनर्स को 250 युवाओं को प्रशिक्षित किए जाने का टारगेट दिया जाना था, लेकिन शुरुआती सौ प्रशिक्षणदाताओं को ही 250 का टारगेट दिया गया. बाद में मिशन ने अपने ही अनुबंध के विपरीत शेष लोगों के लिए टारगेट घटाकर 108 कर दिया. यही नहीं इन प्रशिक्षणदाताओं पर यह शर्त भी थोप दी गई कि वह 600 घंटों से अधिक समय सीमा वाले कोर्सों का संचालन नहीं कर सकेंगे. मिशन से अनुबंध की शर्तों में था कि पंजीकरण के कुछ प्रतिशत प्रशिक्षण पूरा होने के बाद प्रशिक्षणदाताओं को 25 प्रतिशत राशि का भुगतान कराया जाएगा. हालांकि यह अभी तक शुरू तक नहीं कराया जा सका है, जबकि तमाम प्रशिक्षणदाताओं ने अपना 50 प्रतिशत प्रशिक्षण पूरा भी कर लिया है. यही नहीं जो कुछ प्रशिक्षणदाता किन्हीं कारणों से अपना पंजीकरण पूरा नहीं कर सके, उनका टारगेट भी निरस्त किया जा रहा है, जबकि अभी वित्तीय वर्ष भी खत्म नहीं हुआ है. रोना यह है कि प्रशिक्षणदातों के इस दुख-दर्द को समझने और मरहम लगाने वाला कोई नहीं है.
सुस्त मोड में चल रही कौशल विकास की गाड़ी, एनआईसी से हारा मिशन :कौशल विकास कार्यक्रम की गाड़ी चलनी तो मिशन को तरह दिन-रात मेहनत करके चाहिए थी, लेकिन यहां हालात कुछ और ही हैं. मिशन के सूत्र बताते हैं कि ई गवर्नेंस में सहायता करने वाले विभाग एनआईसी की हालत यह है कि वह चार दिन की समस्या का समाधान चार माह में भी नहीं कर पाता. पोर्टल पर कभी बिल दिखते हैं तो कभी गायब हो जाते हैं. एक स्तर पर दिखते हैं तो दूसरे स्तर पर नहीं दिखते. समस्या यह भी है कि प्रशिक्षणदाताओं को यह भी पता नहीं होता कि उनका बिल किस स्तर पर रुका हुआ है. उन्हें हर दरवाजा खटखटाना पड़ता है. पूर्व के वर्षों में प्रशिक्षणदाताओं को पोर्टल के माध्यम से यह पता चलता रहता था कि उनके बिल किस स्तर पर रुके हुए हैं, लेकिन अब यह सुविधा भी छीन ली गई है. स्वाभाविक है कि इससे प्रशिक्षणदाताओं का संघर्ष और भी बढ़ गया है. प्रशिक्षणदाताओं द्वारा कोई भी काम समय पर न हो पाने पर तत्काल कार्यवाही कर दी जाती है, लेकिन जब मिशन अपने ही बनाए नियम नहीं मानता तब कुछ भी नहीं होता. भुगतान आदि के लिए भी यहां कोई समय सीमा या नीति नहीं है.
भुगतान से लेकर टारगेट तक सबकुछ अपने हाथ में रखना चाहते हैं प्रमुख सचिव : मिशन के सूत्र बताते हैं कि छोड़ी भी गड़बड़ी पाए जाने पर प्रशिक्षणदातओं के टारगेट खत्म कर दिए जाते हैं. नए टारगेट देने पर भी प्रमुख सचिव ने रोक लगा रखी है. भुगतान को लेकर भी स्थिति में बदलाव की चर्चा है. सूत्र बताते हैं कि प्रमुख सचिव एम. देवराज चाहते हैं कि मिशन का सारा काम सरकारी पॉलिटेक्निक व अन्य संस्थानों के माध्यम से ही कराया जाए. हालांकि अतीत में इसके परिणाम अच्छे नहीं रहे हैं. यही कारण है कि मिशन ने निजी प्रशिक्षणदाताओं का सहयोग लेना आरंभ किया था. केंद्र की योजनाओं में भी यही पद्धति लागू है. बावजूद प्रदेश नए प्रयोग की ओर चल पड़ा लगता है. मिशन के सूत्र बताते हैं कि पहले प्रमुख सचिव के स्तर पर बैठकें पखवारे में होती थीं, लेकिन अब हर सप्ताह होती हैं और पूरा सप्ताह सवालों के जवाब बनाते ही कटता है.