बलरामपुर: जनपद में शारदीय नवरात्र पर आस्था श्रद्धा एवं भक्ति भावना के बीच देवी के विभिन्न स्वरूपों का पूजन अर्चन किया जा रहा है. जिले के भारत नेपाल सीमा क्षेत्र में स्थित तुलसीपुर नगर में देवीपाटन शक्तिपीठ पर शारदीय नवरात्रि पर देश प्रदेश के कोने-कोने एवं पड़ोसी देश नेपाल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर दर्शन पूजन कर रहे हैं. नवरात्रि में देश के कोने कोने से भक्त अपनी मन्नते लेकर मां के दरबार में आते है. माता उनकी मन्नते पूरी करती है.
देवीपाटन शक्तिपीठ 51 शक्ति पीठ में शामिल होने के कारण यहां देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. पुराणों के अनुसार यहां माता सती का बाय स्कंध पट सहित गिरा था. इसलिए, इस स्थान का नाम देवीपाटन पड़ा है. प्रातः काल से ही श्रद्धालु लंबी कारों में लगकर दर्शन पूजन कर रहे हैं. जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा का कड़ा बंदोबस्त किया गया है. पूरे मेला क्षेत्र की सीसीटीवी कैमरे द्वारा निगरानी की जा रही है.
देवीपाटन मंदिर में उमड़ी भीड़, महंत और पुजारी ने दी जानकारी (viedeo credit- Etv Bharat) गोरखपुर, बस्ती,गोंडा अन्य पड़ोसी जनपदों सहित नेपाल से श्रद्धालु पहुंचते है. गोंडा से देवीपाटन मंदिर आये श्रद्धालु पुनीता सिंह ने बताया, कि यहां जो भी मांगो माता अवश्य पूरा करती हैं. हम हर साल माता का दर्शन पूजन करने आते है. इस मंदिर में देश विदेश से लोग पूजा अर्चना करने आते है. मंदिर के महंत योगी मिथलेश नाथ ने बताया, कि देवी पाटन शक्तिपीठ गुरु गोरखनाथ पीठ गोरखपुर से जुड़ा है. यहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशन में श्रद्धालुओं के सुरक्षा, आवास और स्वास्थ्य संबंधी सारी व्यवस्थाएं चुस्त एवं दुरुस्त है.
वाराणसी की स्कंद माता (photo credit- Etv Bharat) इसे भी पढ़े-प्रयागराज का मां ललिता देवी माता मंदिर है बेहद खास, जानें क्यों नवरात्र में यहां लगती हैं श्रद्धालुओं की लंबी कतारें - Maa Lalita Devi Mandir in Prayagraj
काशी में मां के इस स्वरूप के दर्शन का है महत्व और लाभ:शारदीय नवरात्र के छठे दिन स्कंद माता की पूजा-अर्चना की जाती है. इन्हें बागेश्वरी देवी के नाम से भी जानते हैं. कहते हैं, कि इनकी कृपा से मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है. इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं. इस देवी की चार भुजाएं हैं. ये दाई तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं. नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है. बाई तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है. इनका वर्ण एकदम शुभ्र है. ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. इसीलिए, इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है. सिंह इनका वाहन है.
मंदिर के महंत गोपाल मिश्रा ने बताया, कि इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं. भक्त को मोक्ष मिलता है. सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है. अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है. उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है. यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है.
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