अलवर :टाइगर रिजर्व सरिस्का के बाघों को राजधानी जयपुर के वन क्षेत्र की आबोहवा खूब भा रही है. यही कारण है कि सरिस्का से बाघ निकलकर जयपुर ग्रामीण के जमवारामगढ़ के जंगल में पहुंच रहे हैं. अब तक सरिस्का के दो बाघ अजबगढ़ रेंज पार कर जमवारामगढ़ के जंगल में पहुंच चुके हैं. सरिस्का के इतिहास में पहली बार बाघों का कुनबा बढ़ कर 43 तक पहुंचा है. बाघों की बढ़ती संख्या सरिस्का ही नहीं, बल्कि अलवर जिले के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए खुशखबर है, लेकिन बाघों का सरिस्का के जंगल से बाहर निकलना वन विभाग के लिए परेशानी का सबब बन गया है.
युवा बाघ तलाश रहे नई टेरिटरी :सरिस्का में युवा बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इस कारण युवा बाघ अपनी नई टेरिटरी की तलाश में जुटे हैं. टेरिटरी की तलाश में ये युवा बाघ सरिस्का की दहलीज को लांघ कर हरियाणा, दौसा, जयपुर ग्रामीण के वन क्षेत्रों तक पहुंच रहे हैं. इन दिनों सरिस्का के दो बाघ एसटी-24 और एसटी- 2305 जमवारामगढ़ के जंगल में घूम रहे हैं. इनमें बाघ एसटी-24 को जमवारामगढ़ के जंगल में पहुंचे दो साल से ज्यादा का समय हो चुका है. वहीं, एसटी-2305 पिछले दिनों ही जमवरामगढ़ के जंगल में पहुंचा है. युवा बाघ एसटी-2303 पूर्व में सरिस्का के जंगल से निकल हरियाणा के रेवाड़ी के जंगल में पहुंच चुका है. बार-बार हरियाणा के वन क्षेत्र में पहुंचने के कारण इस युवा बाघ को एनटीसीए ने रामगढ़ विषधारी के टाइगर रिजर्व में पुनर्वासित करना पड़ा है.
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टेरिटरी के लिए जंगल पड़ा छोटा :सरिस्का टाइगर रिजर्व व आसपास कुल 29 गांव हैं, जिनका विस्थापन होना है. एक दशक से ज्यादा समय से प्रयास के बाद भी अभी तक सरिस्का से 5 गांव ही पूरी तरह से विस्थापित हो सके हैं. वहीं, शेष गांवों के विस्थापन की प्रक्रिया को पूरा होने का इंतजार है. सरिस्का के वन क्षेत्र में बड़ी संख्या में गांवों के बसे होने का असर वन क्षेत्र पर पड़ा है. सरिस्का में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी के चलते यह वन क्षेत्र उनके लिए छोटा पड़ने लगा है. वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार युवा बाघ को अपनी टेरिटरी के लिए करीब 50 वर्ग किलोमीटर की जरूरत होती है. बाघ को 30 वर्ग किलोमीटर की जरूरत होती है. इस लिहाज से बाघों को नई टेरिटरी के लिए वन क्षेत्र छोटा पड़ने लगा है, जिस कारण बाघों को नई टेरिटरी के लिए जयपुर व हरियाणा के वन क्षेत्रों का आसरा लेना पड़ रहा है.