सरगुजा: दुनिया भर में स्वास्थ्य के अधिकार की बात होती है. भारत में भी इस विषय पर चर्चा होती है, लेकिन अब तक ऐसा कोई कानून बन नहीं सका है. शासकीय अस्पतालों में लगातार सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यवसायीकरण बढ़ता ही जा रहा है. इलाज दिन-ब-दिन महंगा होता जा रहा है. ऐसे में एक संस्था सरगुजा के वनांचल क्षेत्रो में सेवा दे रही है. ये संस्था और इनके डॉक्टर गरीब वनवासियों के अब मसीहा बन चुके हैं. ये हम नहीं कह रहे है बल्कि ये उन लोगों का कहना है जिनका इलाज संगवारी में हुआ है.
संगवारी संस्था बना मसीहा:जब अंबिकापुर के नवापारा पीएचसी को देश के सबसे उत्कृष्ट अस्पताल का अवार्ड मिला, तो उसके पीछे भी संगवारी की टीम खड़ी थी. जब कोरोना काल में मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एसीयू में गंभीर मरीजों की जान बचानी थी, तब भी वहां संगवारी की टीम खड़ी थी. नवापारा में पेन एंड पेल्ल्येटिव, कीमोथेरेपी शुरू की जा सकी, तो संगवारी के डॉक्टर ही वहां मोर्चा सम्हाल रहे थे. नवापारा में जो सिकलसेल का इलाज शुरू किया गया, जिसे बाद में प्रधानमंत्री ने पूरे देश में लागू कर दिया. उस सिकलसेल यूनिट के पीछे भी संगवारी थी.
लाइलाज बिमारियों का कर रहा इलाज (ETV Bharat)
इन जिलों में खोले गए केन्द्र: प्रशासन के साथ मिलकर तो संगवारी की टीम छत्तीसगढ़ में काम कर ही रही है. इसके अलावा संगवारी ने सरगुजा के तीन विकासखंड में अपने खुद के क्लीनिक खोल दिए. ये क्लीनिक सुदूर वानंचल क्षेत्रो में खोले गए है. सरगुजा में संगवारी क्लीनिक मैनपाट विकासखंड के कुनिया, लखनपुर, अमगसी और उदयपुर के अरगोती में खोली गई है. इसके बाद अब संगवारी क्लीनिक प्रदेश के दुर्ग और जशपुर जिले में भी खोल दिए गए है.
लाइलाज बीमारी का होता है इलाज: कुनिया के ग्रामीण राज कुमार यादव बताते हैं यहां हर प्रकार की बीमारी का इलाज हो रहा है. बीपी, सुगर, लकवा, बुखार हर बीमारी का इलाज अच्छे से हो रहा है. पैसा नहीं के बराबर लगता है. पहले हम लोग अंबिकापुर जाते थे. बहुत भीड़-भाड़ में परेशानी होता था. गाड़ी का खर्चा लगता था. यहां गांव में ही इलाज हो रहा है. वंदना, सीतापुर, नानदमाली तक से लोग इलाज करने आए है. यहां से रायपुर जाकर लोग इलाज कराकर आ गए है. यहं के डाक्टर लकवा वाले मरीज का इलाज किए और वो आज ठीक हो कर काम कर रहा है."
कम पैसे में होता है इलाज: गांव के ही मरीज उपास यादव बताते हैं कि संगवारी क्लीनिक में बहुत कम रेट में और फ्री में भी इलाज होता है. यहां बहुत से मरीज सरकारी अस्पताल से होकर यहां आकर इलाज कराते हैं. हर एक बीमारी का इलाज यहां होता है. बहोत कम पैसा लगता है. डॉक्टर पहले रायपुर से आते थे. अब अंबिकापुर से आते हैं.
मिर्गी के मरीजों का भी करते हैं इलाज: राहुल मिश्रा बताते हैं कि बलरामपुर जिले का एक लड़का है सोनू. इसकी उम्र तीस साल है. इनको हफ्ते दस दिन में मिर्गी आती थी. वो इलाज और झाड फूंक में 25-30 हजार रुपये खर्च कर चुका था. इलाज के लिए उसने मुर्गी, बकरी तक बेच दिया था. इसी बीच हम लोगों को पता चला कि एक संगवारी संस्था है. जहां न्यूरो फीजीशियन हैं तो मैं सोनू को वहां लेकर गया. शुरू में वो जो दवाई दिए वो डेढ़ सौ रुपये की थी. अभी 52 रुपए की दवाई खरीद रहे हैं. बीमारी ठीक है. 2 महीने से उसको मिर्गी नहीं आई है. सोनू से मेरी बात हुई. वो कहता है कि ये अस्पताल के डॉक्टर भगवान जैसे हैं. जिस चीज के लिए हजारों रुपये लगा चुके थे. ठीक नहीं हो रहा था. आज वो बीमारी दो सौ में ठीक हो चुकी है.
2020 से संस्था कर रही काम:संगवारी के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी हरेन्द्र सिंह कहते हैं कि संगवारी 2020 से सरगुजा में काम कर रही है. सबसे पहले जब कोरोना काल था. तब मेडिकल कालेज अस्पताल के कोविड आईसीयू में संगवारी टीम काम कर रही थी. वहां करीब 2 सौ मरीज एडमिट हुए, जिसमें 110 मरीज ठीक हुए. उन मरीज की स्थित ऐसी थी कि अगर वो आईसीयू में नहीं जाए तो शायद उनको नहीं बचाया जा सकता था. फिर छत्तीसगढ़ में हमने डाक्टर नर्स और लैब टेक्नीशियन को ट्रेनिंग दी. नवापारा अस्पताल जो देश में एक मॉडल पीएचसी बना. वहां पेन एंड पेल्ल्येटिव, सिकलसेल, कीमोथेरेपी शुरू की गई.
कम पैसे में होता है बेहतर इलाज: हरेन्द्र सिंह ने आगे बताया कि हमारे पास कई विशेषज्ञ डाक्टर हैं. जनरल फीजेशियन, न्यूरो फीजीशियन, गायनिक, आयुर्वेदिक डाक्टर भी हैं. प्रशासन के साथ तो मिलाकर कई कार्यक्रम में संगवारी काम कर ही रही थी. इसके अलावा हम लोगों को लगा कि सरगुजा में और कुछ करना चाहिए. जिसके बाद जिले में तीन ब्लॉक में संगवारी क्लिनिक खोले गए. दूरस्थ क्षेत्रों में जहां वनवासी रहते हैं. वहां संगवारी क्लीनिक खोली गई है. यहां पीवीटीजी जातियां जैसे पंडो, कोरवा, पहाडी कोरवा, मांझी मंझ्वार का इलाज निशुल्क किया जाता है. सामान्य आदिवासी और जनरल कैटेगरी के लोगों से शुल्क ली जाती है, लेकिन शुल्क इतना कम है कि वो ना के बराबर है. बाहर अगर आपका एक हजार रुपए लग रहा है तो हमारे यहां सौ रुपये में जांच के साथ पूरा इलाज हो जाएगा. दवाइयां बेहद सस्ती हैं. जेनरिक दवाइयों का उपयोग किया जाता है.