लखनऊ: समीक्षा अधिकारी(RO) और सहायक समीक्षा अधिकारी(ARO) भर्ती परीक्षा का पेपर लीक करने के मामले में मास्टरमाइंड राजीव नयन मिश्रा को अपने काम को अंजाम देने के लिए ऐसे सहयोगियों की जरूरत थी, जो अपनी जिंदगी से परेशान हो और पैसे के लिए कुछ भी कर सकते थे. ऐसे में उन्हें दो ऐसे इंजिनियर मिले, जिसमें एक का अफसर बनने का सपना टूटा था. तो दूसरा इंजीनियरिंग करने के बाद कुंभ के मेले में कपड़े बांट रहा था. बस इन्हें इतना पैसों का लालच दिया गया कि वो न कर ही नहीं पाए
यूपी एसटीएफ ने बीते रविवार को आरओ-एआरओ पेपर लीक कांड के छह आरोपियों को गिरफ्तार किया था, जिन्हें अब जेल भेज दिया गया है. लेकिन जेल भेजने से पहले यूपी एसटीएफ ने गिरफ्तार किए गए सुभाष प्रकाश प्रजापति, सुनील रघुवंशी और विशाल दुबे से पूछताछ की उसमें कई खुलासे हुए है. पेपर लीक करने वाले चार इंजीनियर दोस्तों में तीन ने यह कबूल किया की उनकी जिंदगी में असफलताएं इतनी थी कि, सही गलत में फर्क नहीं कर पाए और राजीव नयन मिश्रा के साथ जुड़ गए. और पेपर लीक करने का फैसला कर लिया.
बिहार के सुभाष प्रकाश प्रजापति ने एसटीएफ को बताया कि, उसने बीटेक और एमटेक किया. उसका सपना अधिकारी बनने का था. लिहाजा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा. सुभाष के मुताबिक, बिहार पीसीएस की उसने मेंस पास भी कर लिया लेकिन इंटरव्यू में उसका सलेक्शन नहीं हो सका. यही वजह थी कि, उसने प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में नौकरी कर ली. इसी दौरान इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला दिलाने का ठेका लेने वाले राजीव नयन मिश्रा से उसकी मुलाकात हुई और फिर वह पेपर लीक करने वाले गैंग में शामिल हो गया.
गिरफ्तार छह आरोपियों में विशाल दुबे ने भी अपनी कहानी एसटीएफ को बताई. विशाल ने बताया कि, उसने भी सुभाष और सुनील रघुवंशी के साथ ही इंजीनियरिंग की थी. उसने सोचा था कि, इंजीनियरिंग कर अच्छी खासी नौकरी मिलेगी और अपने घरवालों के सपने को साकार करेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. काफी समय तक नौकरी की तलाश की लेकिन मिली नहीं. ऐसे में वह दिल्ली चला गया, यहां उसने कपड़े बेचने वाली ठेलिया लगाई, लेकिन कुछ खास चली नहीं तो वह एक एनजीओ से जुड़ गया. एनजीओ ने उसे 2019 के कुंभ मेले में काम करने के लिए प्रयागराज भेज दिया. एक साल तक एनजीओ से जुड़ने के बाद अचानक कोरोना आया और फिर उसकी जिंदगी एक बार फिर से पलट गई और बेरोजगार हो गया. अब वह एक एक पैसे के लिए मोहताज रहने लगा. इसी बीच वह राजीव नयन मिश्रा के संपर्क में आया और बेरोजगारी में लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला करवाने वाले छात्रों को ढूंढ कर राजीव नयन मिश्रा के पास लाने लगा.
प्रिंटिंग प्रेस से बोतल में पेपर बाहर लाने वाले मैकेनिकल इंजीनियर सुनील रघुवंशी की कहानी भी उसके दोनों इंजिनियर दोस्तों को ही तरह थे. सुनील ने भी इंजीनियरिंग पास कर नौकरी की तलाश की, लेकिन मिली नहीं. तब उसने अपने बड़े भाई से पैसे उधार लेकर एक ऑटो पार्ट्स की दुकान खोली, लेकिन चली नहीं, हालांकि कुछ समय बाद भोपाल की प्रिंटिंग प्रेस में उसे नौकरी मिली. इसके बाद विशाल दुबे और सुभाष प्रकाश ने उसे ढूंढ निकाला और राजीव नयन मिश्रा के गैंग में शामिल करवा दिया.
तीनों इंजीनियर दोस्तों को बी.टेक के बाद भी अच्छी नौकरी नहीं मिली, बाद के करियर में असफलता ही हाथ लगी लेकिन उनका यह एक गलत कदम उन्होंने जिंदगी में इतना पीछे कर दिया कि अब फिर वह कभी वापस सामान्य जिंदगी में लौट नहीं पाएंगे.
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