जयंत के फैसले से यूपी में बदले सियासी समीकरण. मेरठ :केंद्र सरकार की ओर से किसानों के मसीहा और पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का ऐलान किया गया है. इसके तत्काल बाद उनके पोते जयंत चौधरी ने एक्स (ट्विटर) पर 'दिल जीत लिया' वाला पोस्ट किया था. उनके इस ट्वीट के कई सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं. इसी के साथ रालोद मुखिया जयंत चौधरी का भाजपा को लेकर नजरिया भी बदल गया. जयंत चौधरी जल्द ही इंडिया ब्लॉक छोड़कर एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं. हालांकि अभी इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. क्यों अलग-थलग पड़ गए सपा मुखिया अखिलेश यादव, जयंत के एनडीए में शामिल होने के बाद क्या होंगे सियासी समीकरण, ईटीवी भारत की टीम ने विशेषज्ञ से बात कर इन सभी सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की. पेश है रिपोर्ट...
काफी समय से जयंत पर डोरे डाल रही भाजपा :ईटीवी भारत से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेंद्र शर्मा ने बताया कि दो तरह की राजनीति होती है. एक दीर्घकालिक होती है. इसमें सोचा जाता है कि कैसे मेरी राजनीति चलेगी, और कैसी मेरी पार्टी आगे बढ़ेगी. दूसरी तात्कालिक लाभ वाली होती है. कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि एक रास्ता चुनना पड़ता है. पिछले महीने अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई. इसके बाद माहौल राममय हो गया. विपक्षियों को पसीने आ गए कि यह क्या हो गया. भारतीय जनता पार्टी काफी समय पहले से ही जयंत पर डोरे डाल रही है. चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा भले ही अब हुई है, लेकिन यह पहले से ही तय था.
अमित शाह ने कहा था- जयंत अच्छे आदमी हैं :पुष्पेंद्र शर्मा बताते हैं कि साल 2022 में विधानसभा चुनाव से पहले अमित शाह ने यूपी के बहुत सारे जाट नेताओं को दिल्ली बुलाया था. उस वक्त उन्होंने कहा कि जयंत अच्छे आदमी हैं, लेकिन वह गलत जगह पर हैं. तभी ये संकेत मिलने लगे थे कि भारतीय जनता पार्टी में एक सॉफ्ट कॉर्नर रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी के लिए है. जयंत जीत पाएं या न जीत पाएं लेकिन हराने की स्थिति में जरूर रहते हैं. वह 2004 की राजनीति की याद दिलाते हैं, बताते हैं कि किस तरह से एक साथ रहने पर बीजेपी और रालोद को लाभ होता रहा है. 2004 में रालोद जब भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी तो तीन लोकसभा सीटें जीती थीं. 2009 में रालोद ने 5 लोकसभा सीटें जीती थीं.
अखिलेश यादव ने नहीं निभाया बड़े भाई का फर्ज :साल2019 में सपा-बसपा और रालोद गठबंधन को याद करते हुए वह कहते हैं कि उस समय तो यह लग रहा था कि इस बार तो विपक्ष यूपी में करिश्मा कर देगा, लेकिन जब नतीजे आए तो वह किसी से छुपे नहीं थे. तीन दलों के गठबंधन के बावजूद दिवंगत पूर्व मंत्री चौधरी अजित सिंह भी चुनाव हार गए थे. स्वयं जयंत भी चुनाव हार गए थे. बागपत इनका गढ़ माना जाता है, वहां से हारे थे. जयंत चौधरी को भी दिख रहा होगा कि इससे उन्हें क्या नुकसान है और क्या नफा है. उनके समर्थक भी बार-बार उनके ऊपर दबाव बना रहे थे कि जयंत कोई फैसला लें. एक बात और भी है कि जिस तरह से अखिलेश यादव को अपने बड़े भाई होने का फर्ज निभाना चाहिए था, उस तरह से उन्होंने कभी नहीं निभाया. जयंत को राज्यसभा में भेजा था तो बहुत मान-मनौव्वल के बाद. पहले चर्चा आम थी कि अखिलेश डिंपल को राज्यसभा भेजेंगे, लेकिन जयंत को राज्यसभा भेज दिया था.
इस वजह से बढ़ीं दूरियां :पुष्पेंद्र शर्मा बताते हैं कि अपनी तरफ से समाजवादी पार्टी ने 7 सीट राष्ट्रीय लोकदल को देने की घोषणा की थी, उसमें भी शर्त लगा दी थी कि तीन सीटों पर समाजवादी पार्टी के नेता राष्ट्रीय लोकदल के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे. एक तरफ तो यह दबाव भी है और अगर बिना बातचीत के अगर ऐसा किया जाएगा तो किसी भी साथी नेता को भी यह बुरा लगेगा. अखिलेश यादव के इस निर्णय पर यह जाहिर होता है कि उन्हें गठबंधन के साथी पर विश्वास नहीं था. यही सारी बातें थीं जो कहीं न कहीं एक-दूसरे में दूरियां पैदा कर रहीं थीं. ऐसे में एक तरफ तो अखिलेश से दूरियां बढ़ रहीं थीं तो वह दूसरी तरफ RLD मुखिया को भारतीय जनता पार्टी ससम्मान बुला रही है.
निकाय चुनाव में जयंत ने नहीं किया था प्रचार :जिस तरह से राज्यसभा में जयंत चौधरी ने पीएम मोदी के शासनकाल की तारीफ की. इसके बाद पत्रकारों से बातचीत में एनडीए में जाने के सवाल पर कहा कि अब वह किस मुंह से इनकार करें. इसका मतलब साफ है कि वह NDA को मजबूत करेंगे. ऐसा लगता है कि 12 फरवरी को औपचारिक घोषणा हो जाएगी. 2022 में भी अखिलेश यादव ने जितनी सीटें विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए दी थीं, उनमें भी अपने पार्टी के नेताओं को टिकट दिया था. तब रालोद के नेताओं ने काफी नाराजगी भी जताई थी लेकिन तब जयंत मिस्टर कूल बने रहे थे. पिछले साल हुए निकाय चुनावों में भी अखिलेश यादव ने यही नीति अपनाई तब भी रालोद नेताओं ने काफी नाराजगी जताई. जयंत ने निकाय चुनावों में प्रचार करने से ही मना कर दिया था. यह तब हुआ था जब अखिलेश यादव ने खुद कहा था कि निकाय चुनाव में वह और जयंत साथ प्रचार करेंगे. इसके बाद रालोद ने पश्चिम में अच्छा प्रदर्शन किया बल्कि अपनी पावर भी बढ़ाई.
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