पटना:बिहार में 65 फीसदी आरक्षणका मुद्दा अब राजनीतिक रंग लेने लगा है. बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना के बाद बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 65% कर दिया था. हालांकि राज्य सरकार के फैसले को पटना हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया था. वहीं, पटना हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ बिहार सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. इसके बाद से ही सूबे में सियासत शुरू हो गई थी.
आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट जाएगा आरजेडी:दरअसल, आरजेडी ने आरक्षण के मुद्दे पर बिहार सरकार और केंद्र की सरकार पर दोष मढ़ा है. आरजेडी प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि विरोधी दल के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही साफ कर दिया था कि कोर्ट के निर्णय के खिलाफ पार्टी अब सड़क से लेकर सदन तक लड़ाई लड़ेगी. ऐसे में आज आरजेडी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने किया था रोक से इनकार: 29 जुलाई को 65 प्रतिशत आरक्षण वाले कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. वहीं 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति-जनजाति कैटेगरी के लिए सब-कैटेगरी को मान्यता दे दी. इसके साथ ही अब राज्य सरकारें समाज के सबसे पिछड़े और जरूरतमंद लोगों को पहले से मौजूद रिजर्वेशन में से कोटा दे सकेंगे.
बीजेपी पर दोष मढ़ा:जाति आधारित गणना पर कोर्ट के निर्णय के लिए आरजेडी लगातार बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा रहा है. तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस और सोशल मीडिया के माध्यम से इस मसले को कोर्ट में जाने के लिए बीजेपी पर आरोप लगाया था. इसके अलावा आरक्षण के मुद्दे को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल नहीं करने के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराया था.
"जातिगत सर्वे के जो आंकड़े आए थे, उसके आधार पर बिहार में नवंबर 2023 में सभी वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया गया. दिसंबर 2023 में पूर्वी क्षेत्रीय परिषद् की बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के समक्ष भी इसे संविधान की 𝟗वीं अनुसूची में डालने का आग्रह कियाा लेकिन आरक्षण विरोधी बीजेपी और एनडीए सरकार ने इससे इंकार कर दिया था."- तेजस्वी यादव, नेता प्रतिपक्ष, बिहार विधानसभा