बालोद में तिवरा बेर की लालच में छत में फंसा सांड, तीन दिन बाद हुआ रेस्क्यू
Rescue Of Bull ये कहावत आपने जरुर सुनी होगी आ बैल मुझे मार.इस कहावत का मतलब होता है जान बूझकर मुसीबत को अपने पास बुलाना.लेकिन कभी कभी मुसीबत बिन बताए ही आती है.ये किस रूप में होगी ये कोई नहीं जानता.बालोद के परसदा में रहने वाला परिवार ऐसी ही एक बिन बुलाई मुसीबत के चक्कर में फंस गया.आईए आपको बताते हैं कि ये माजरा क्या है.
बालोद :बालोद जिले के परसदा गांव में भावसिंह यदुवंशी का परिवार रहता है. भावसिंह ग्राम पटेल हैं.जिनकी छत पर चारा सुखाने के लिए रखा गया था.छत तक पहुंचने के लिए घर के बाहर से ही सीढ़ी दी गई है.जिसके सहारे कोई भी छत पर जा सकता है.लेकिन इस सीढ़ी का इस्तेमाल एक सांड ने किया और छत पर जा पहुंचा.छत पर तिवरा और बेर सूख रहा था.जिसकी महक से सांड घर तक खींचा चला आया.इसके बाद बड़े ही चालाकी से छत पर चढ़ गया.
तिवरा और बेर की लालच में फंसा सांड :तिवरा और बैर की दावत उड़ाने के बाद सांड छत से नीचे नहीं उतर पा रहा था.शाम को जब परिवार के लोगों को सांड दिखा तो इसकी जानकारी पशुपालन विभाग को दी गई.ग्राम पटेल भावसिंह यदुवंशी ने बताया कि शनिवार को सांड दरवाजा तोड़कर छत में चला गया. छत में तिवरा और बेर सूखने के लिए रखे गए थे. जिसे खाने के लालज में सांड छत तक पहुंचा था.
''सांड सीढ़ी के सहारे छत तक पहुंच तो गया.लेकिन उतरने में नाकाम रहा.घर वालों ने भी सांड को उतारने की काफी कोशिश की लेकिन वो नहीं उतरा.जितने समय तक सांड छत के ऊपर था परिवार वालों की भी जान हलक में अटकी थी.'' भावसिंह यदुवंशी, ग्राम पटेल
ग्रामीणों ने सांड को दिया दाना पानी : जैसे ही गांववालों को ग्राम पटेल के घर में सांड के फंसने की खबर मिली लोगों का हुजूम लगने लगा.इस दौरान ग्रामीणों ने सांड को नंदी महाराज का रूप मानकर उसकी तीन दिनों तक छत में ही सेवा की.सांड को बचाने के अलावा उसके दाना पानी की भी व्यवस्था ग्रामीणों ने ग्राम पटेल के छत पर की.ग्राम पटेल ने बताया कि पशुपालन विभाग को पहले ही जानकारी दी जा चुकी थी. लेकिन विभाग क्रेन लाने में आनाकानी कर रहा था.इस समस्या का समाधान ना होता देखकर ग्राम पटेल ने कलेक्टर से शिकायत करने की बात कही.जिसकी जानकारी जैसे ही पशुपालन विभाग को लगी तो सीधे भावसिंह के घर पहुंच गए.
कैसे छत से उतरा सांड ? : सीढ़ी से सांड को उतारना आसान काम नहीं था.इसके लिए पशुपालन विभाग और ग्रामीणों ने दिमाग लगाया.ग्रामीणों ने सांड के उतरने वाले रास्ते को पैरा से ढंका ताकि उसका पैर ना फिसले.इसके बाद सांड को लालच देने के लिए खाने पीने की चीजें पैरा के ऊपर रखीं गईं.इसके बाद ट्रैक्टर की ट्रॉली को सीढ़ी से सटाकर रखा गया ताकि सांड उतरते वक्त सीधा ट्राली में आए.जैसा सोचा गया था ठीक वैसा ही हुआ.सांड खाने के लालच में सीढ़ी पर बिछाए गए पैरा से होते हुए सीधा ट्रॉली में आ गया. इसके बाद सांड को सुरक्षित जगह पर छोड़ा गया.