प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आईसीआईसीआई बैंक के अध्यक्ष से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है कि याची द्वारा लोन का भुगतान कर दिए जाने के बावजूद रिकवरी के लिए रिकवरी एजेंट बैंक द्वारा क्यों नियुक्त किए गए. कोर्ट ने कहा कि रिकवरी एजेंट नियुक्त करने पर जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई है तो किन परिस्थितियों में बैंक द्वारा अभी भी रिकवरी एजेंट की सेवाएं ली जा रही हैं. कोर्ट ने अध्यक्ष को यह भी जवाब देने के लिए कहा है कि लोन चुकता कर देने के बावजूद बैंक द्वारा याची के विरुद्ध सिविल सूट क्यों दाखिल किया गया.
नोएडा के जसविंदर चहल की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने दिया है. याची का कहना है कि उसने आईसीआईसीआई बैंक से 7. 80 लाख का होम लोन वर्ष 2002 में लिया था. उसे विदेश जाना था इसलिए उसने समय से पहले ही लोन चुकता कर दिया. बैंक की ओर से उसे आशय का प्रमाण पत्र भी दे दिया गया तथा उसकी बंधक संपत्ति को रिलीज भी कर दिया गया. सभी दस्तावेज याची को बैंक ने लौटा दिए.
इसके बावजूद बैंक द्वारा सी बिल रेटिंग में याची को डिफाल्टर दिखाया जा रहा है. इतना ही नहीं याची को परेशान करने के लिए बैंक की ओर से उसके खिलाफ सिविल सूट दाखिल कर दिया गया. जिस पर उसने लिखित जवाब दाखिल किया है. सिविल सूट दाखिल करने के बाद भी बैंक के अधिकारी रुके नहीं और उन्होंने लोन वसूली के लिए दो रिकवरी एजेंट नियुक्त कर दिए, जो उसके घर पहुंचकर तमाशा खड़ा कर रहे हैं तथा अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं. इससे याची की सामाजिक प्रतिष्ठा को गहरी ठेस पहुंची है.
इस पर कोर्ट ने आईसीआईसीआई बैंक के अध्यक्ष को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है कि पूरा लोन चुकता कर देने के बाद भी याची को परेशान क्यों किया जा रहा है और आईसीआईसीआई बैंक के ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बैंकों को रिकवरी एजेंट नियुक्त करने पर रोक लगाने का स्पष्ट निर्देश देने के बावजूद बैंक द्वारा अभी भी रिकवरी एजेंट की सेवाएं क्यों ली जा रही हैं.