Importance of Ramadan and Roza:जिस तरह से ईस्वी कैलेंडर में 12 माह होते हैं उसी तरह से इस्लामिक कैलेंडर में भी 12 महीने होते हैं. जिसकी शुरुआत मुहर्रम माह से होती है और खात्मा जुलहिज्जा से होता है. इन महीनों में से एक महीना रमजान का भी है, जिसके बारे में सभी लोग जानते हैं की रमजान में इस्लाम धर्म का अनुसरण करने धर्मावलंबी अपनी इबादतों में इजाफा (बढ़ोतरी) करते हैं और रमजान के रोजे रखते हैं. लेकिन इसकी शुरुवात कबसे और कैसे हुई और क्या-क्या इसकी फजीलत (श्रेष्ठता) है इसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं.
खजूर से ही क्यों खोलते हैं रोजा
रमजान में इस दौरान दुनिया भर के मुसलमान 30 रोजे रखते हैं. इस्लाम को मानने वाले लोग रमजान के दौरान सुबह सहरी करते हैं और फिर पूरे दिन रोजे रखने के बाद शाम को अपना रोजा खोलते हैं. रोजेदार इफ्तार की शुरुआत खजूर से करते हैं, इसके पीछे धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी हैं. इस्लाम में खजूर को सुन्नत माना गया है और यह पैगंबर हजरत मुहम्मद का पसंदीदा फल था. पैगंबर मुहम्मद खजूर खाकर ही रोजा खोलते थे. इसलिए आज भी रोजेदार खजूर खाकर ही रोजा खोलते हैं. रमजान के महीने को 3 बराबर हिस्सों में बांटकर गिना जाता है. हर हिस्से में दस- दस दिन गिने जाते हैं. हर दस दिन के हिस्से को 'अशरा' कहकर संबोधित किया जाता है, जिसका मतलब अरबी भाषा में 10 होता है.
रमजान में ही नाजिल हुआ कुरआन
रमजान को लेकर ईटीवी भारत ने राजगढ़ के मुफ्ती शाकिर से खास तौर से बात की. उन्होंने बताया कि, रमजानुल मुबारक की इब्तिदा यानी की शुरुवात पैगंबर साहब (हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्ल्लाहु आलेही वसल्लम) जब हिजरत (एक जगह से दूसरी जगह जाना) फरमाकर मदीना मुनव्वारा तशरीफ ले गए, उसके दो साल के बाद सन दो हिजरी में इसके ताल्लुक (संबंध) में कुरआन की आयत नाजिल हुई. अगर हम इसे ईस्वी कैलेंडर के अनुसार देखें तो 622 ईस्वी में आपने हिजरत की और 624 ईस्वी में रमजानुल मुबारक और उसके रोजे का दौर शुरू हुआ, और इस वर्ष जो रमजान आ रहे हैं ये 2024 ईस्वी चल रहा है, और जबसे ही रमजान और उसके रोजे रखने का सिलसिला चला आ रहा है.''
मुसलमान रखते हैं 30 रोजे
वैसे ये कोई नई बात नहीं है की रोजा सिर्फ इसी उम्मत (पैगंबर के अनुयायियों) के लिए ही फर्ज हुआ, क्योंकि कुरआन ए पाक में कहा गया है की,"ए ईमान (अल्लाह पर यकीन रखने) वालों हमने रोजे को तुम पर फर्ज (जरूरी) किया, जैसा कि तुमसे पहली उम्मत (अन्य पैगंबर के अनुयायियों) पर भी फर्ज किया गया था. मालूम हुआ कि, इससे पहले भी रोजा होता था, और लोग रोजा रखते थे, और आज भी मुसलमानों के अलावा दूसरे धर्म के लोग भी रोजा रखते हैं. जिसे अलग अलग नामों से जाना जाता है.
रोजेदार की कमाई में होती है बरकत
वहीं, मुफ्ती शाकिर रोजे का मकसद (उद्देश्य) बताते हुए कहते हैं कि, ''रोजे का मकसद खुद अल्लाह (ईश्वर) रब्बुल इज्जत ने कुरआन पाक में फरमाया (बताया) है कि, ताकि तुम लोगों के अंदर तकवा (अल्लाह के आदेश का पालन, और जिन बातों से मना किया गया है उसे छोड़ना) पैदा हो जाए, ताकि तुम नेक बन जाओ और जब इंसान के अंदर तकवा आ जाता है तो उसके लिए कुरआन कहता है की तीन फायदे उसको मिलते है, अल्लाह (ईश्वर) उसके लिए आसानी पैदा कर देता है, जो व्यक्ति रोजा रखता है, तकवा जिसके दिल के अंदर आता है और मुत्तकि बनता है उसको अल्लाह (ईश्वर) अपने खज़ाना ए गैब (अदृश्य खजाना) से बेशुमार दौलत अता फरमाता है,और उसकी जरूरत पूरी हो जाती है. तकवे का फायदा ये है की अल्लाह उसके लिए मामलात को आसान कर देता है, उसके मसाइल (समस्याएं) आसान कर देता है, जो काम दूसरे लोगों के लिए भारी होते हैं मुश्किल होते हैं वो एक रोजेदार के लिए, मुत्तकी के लिए तकवे वालों के लिए, आसान हो जाते हैं.