बोकारोःजिले के रितुडीह निवासी राजकुमारी किन्नर लावारिसों की राजकुमारी हैं. भले हैं इनके पास बड़ा महल नहीं है, लेकिन दिल बहुत बड़ा है. राजकुमारी किन्नर अनाथों का नाथ बन कर मिसाल बनी हुई हैं. राजकुमारी किन्नर ने पांच लड़कियों और तीन लड़कों का लालन-पालन कर उनकी शादी भी करा चुकी हैं. वर्तमान में राजकुमारी एक बच्चे का लालन-पालन कर रही हैं. इतना ही नहीं राजकुमारी आस-पड़ोस की जरूरतमंद महिलाओं को भी त्योहार के समय या जरूरत पड़ने पर मदद करती हैं. लोगों की माने तो वह अपनी कमाई का 80 प्रतिशत हिस्सा जरूरतमंदों की भलाई में खर्च करती हैं.
आधा दर्जन से अधिक बच्चों का जीवन संवार चुकी हैं राजकुमारी
बोकारो-रामगढ़ एनएच के किनारे रितुडीह में बस्ती में राजकुमारी किन्नर का घर एक तरह से अनाथ आश्रम ही है. आधा दर्जन से अधिक अनाथ बच्चे इनके आशियाने में पल-बढ़ और पढ़कर अपनी जिंदगी जी रहे हैं. करीब दो-ढाई दशक से राजकुमारी यह नेक काम कर रही हैं. राजकुमारी ने कई बच्चियों को पाल-पोस कर बड़ा किया और फिर उनका अच्छे घरों में विवाह भी कराया है. हालांकि महंगाई के इस दौर में सभी का खर्च उठाने में कई बार काफी मुसीबत भी उठानी पड़ती है, लेकिन फिर भी राजकुमारी के कदम इस नेक कार्य से कभी पीछे नहीं हटे. वह गरीब की बेटी के शादी में जो बन पड़ता है सहयोग करती हैं.
पहले की तरह नहीं मिलती है बधाईः राजकुमारी
इस संबंध में राजकुमारी किन्नर कहती हैं कि अब पहले जैसी बधाई भी नहीं मिलती. बधाई के पैसों से तो खुद का पेट भरना ही मुश्किल हो गया है. बच्चों को पालने के लिए जहां-तहां हाथ पसारना पड़ता है. हाट-बाजार से सब्जी मांग कर लाती हूं. उन्होंने बताया कि बच्चों के लिए काॅपी, किताब ट्यूशन समेत अन्य तरह के खर्च उठाने पड़ते हैं.
अनाथों की तरह पली, इसलिए दर्द समझती हूं
अनाथों को पालने का ख्याल क्यों और कैसे आया इस सवाल पर राजकुमारी भावुक हो जाती हैं.कुछ देर खामोश रहने के बाद बताती हैं कि वह मूलतः बिहार के गोपालगंज जिले के बरौली की रहने वाली हैं. पैदा होते ही मां मर गई. पिता डीवीसी चंद्रपुरा में कार्यरत थे. उन्होंने कहा कि उसके जन्म से उनके इज्जत पर बट्टा लग रहा है. लगभग 9 साल की उम्र में उन्हें घर से निकाल दिया गया. उसके बाद वह पहले बेरमो फिर बोकारो आकर रहने लगीं.
राजकुमारी ने बताया कि वे अनाथों की तरह पली-बढ़ी हैं, इसलिए अनाथों का हाल और उसका दर्द समझती हैं. उन्होंने बताया कि कई लावारिस बच्चों को उन्होंने उठाकर घर लाया और उनका लालन-पालन किया है. उन्होंने बताया कि इन कार्यों में इन्हें आज तक कोई सरकारी मदद नहीं मिली है. सब कुछ अपने दम पर करती हैं. 54 वर्ष की आयु को पार कर चुकी राजकुमारी का शरीर भी उम्र के साथ थक गया है. सरकार और प्रशासन के रवैये से निराश जरूर है, पर हौसला नहीं हारी हैं. तमाम विकट परिस्थितियों के बावजूद एक किन्नर का हौसला देखने लायक हैं.