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Rajasthan: खींवसर, सलूंबर और चौरासी में त्रिकोणीय मुकाबला, झुंझुनू में लड़ाई को रोचक बना सकते हैं गुढ़ा

भाजपा-कांग्रेस ने सभी 7 सीटों पर तो 'बाप' ने 2 सीटों पर उतारे प्रत्याशी, खींवसर से हनुमान बेनीवाल ने पत्नी को बनाया प्रत्याशी.

RAJASTHAN BY ELECTION 2024
राजस्थान का सियासी संग्राम (ETV BHARAT GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 10 hours ago

Updated : 8 hours ago

जयपुर :राज्य की सात सीटों पर होने जा रहे विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने सभी सीटों पर अपने पत्ते खोल दिए हैं, जबकि हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारत आदिवासी पार्टी ने भी ताल ठोक दी है. भारत आदिवासी पार्टी ने सलूंबर और चौरासी सीट पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं. वहीं, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल अपनी परंपरागत सीट खींवसर पर किसे अपना उत्तराधिकारी बनाते हैं, इस पर सबकी निगाहें हैं. ऐसे में खींवसर, सलूंबर और चौरासी में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बन गए हैं. हालांकि, कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार में मंत्री रहे व वर्तमान में शिवसेना शिंदे गुट में शामिल राजेंद्र गुढ़ा भी चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं. राजेंद्र गुढ़ा ने गुरुवार को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में झुंझुनू से अपना नामांकन दाखिल कर दिया.

दौसा में भाजपा-कांग्रेस में टक्कर :दौसा में भाजपा ने कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे चुके डॉ. किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को चुनावी मैदान में उतारा है. जबकि कांग्रेस ने दीनदयाल बैरवा को मैदान में उतारा है. यहां अभी तक किसी भी पार्टी के बागी या निर्दलीय प्रत्याशी के मैदान में उतरने के आसार नहीं हैं. ऐसे में इस सीट पर जगमोहन मीणा और दीनदयाल बैरवा के बीच आमने-सामने की टक्कर है. विधायक रहे मुरारीलाल मीणा के सांसद बनने से यह सीट खाली हुई है.

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झुंझुनू में रोचक मुकाबले के आसार :ओला परिवार की परंपरागत सीट झुंझुनू से कांग्रेस ने एक बार फिर परिवारवाद का कार्ड खेला है. विधायक से सांसद बने बृजेंद्र ओला के बेटे अमित ओला को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है. जबकि भाजपा ने राजेंद्र भांबू पर भरोसा जताया है. कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार में मंत्री रहे व अभी शिवसेना शिंदे गुट से जुड़े राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने भी झुंझुनू सीट से ताल ठोक दी है. ऐसे में यहां त्रिकोणीय मुकाबले के आसार है.

देवली-उनियारा में होगी कांटे की टक्कर :टोंक जिले की देवली-उनियारा सीट से 2023 में विधायक बने कांग्रेस के हरिशचंद्र मीना ने सांसद का चुनाव लड़ा और जीते. अब उपचुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर नए चेहरे के रूप में केसी मीना पर दांव खेला है. जबकि भाजपा ने राजेंद्र गुर्जर को मैदान में उतारा है. गुर्जर और मीना बहुल इस सीट पर भी भाजपा और कांग्रेस के बीच आमने-सामने की टक्कर होगी.

खींवसर में भी त्रिकोणीय मुकाबला :नागौर जिले की खींवसर हनुमान बेनीवाल की परंपरागत सीट है. 2023 के चुनाव में मामूली अंतर से जीते हनुमान बेनीवाल सांसद बने तो यह सीट खाली हुई. अब भाजपा ने हनुमान बेनीवाल को 2023 के चुनाव में कड़ी चुनौती देने वाले रेवंतराम डांगा को उतारा है. जबकि कांग्रेस ने सवाई सिंह चौधरी की पत्नी रतन चौधरी को टिकट देकर मुकाबला रोचक बना दिया है. सवाई सिंह खुद भी 2018 में कांग्रेस के टिकट पर हमुमान बेनीवाल के सामने चुनाव लड़ चुके हैं. वहीं, हनुमान बेनीवाल ने अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को मैदान में उतारा है.

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'बाप' के गढ़ में भी त्रिकोणीय मुकाबला : डूंगरपुर जिले की चौरासी सीट भारत आदिवासी पार्टी (बाप) के राजकुमार रोत की परंपरागत सीट है. वे पहले बीटीपी से और 2023 में भारत आदिवासी पार्टी से विधायक बने. उनके सांसद बनने के बाद 'बाप' ने अनिल कटारा को प्रत्याशी बनाया है. वे अभी जिला परिषद सदस्य हैं. कांग्रेस ने इस सीट पर युवा प्रत्याशी महेश रोत को मौका दिया है. जबकि भाजपा ने कारीलाल ननोमा को मैदान में उतारा है. वह सीमलवाड़ा पंचायत समिति से प्रधान हैं.

सलूंबर में भी त्रिकोणीय संघर्ष के आसार :मौजूदा विधायक विधायक अमृतलाल मीणा (भाजपा) के निधन से खाली हुई इस सीट पर भाजपा ने सहानुभूति कार्ड खेलते हुए अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता देवी को चुनावी मैदान में उतारा है. जबकि कांग्रेस ने इस सीट पर रेशमा मीणा को टिकट दिया है. भारत आदिवासी पार्टी के जितेश कटारा भी मैदान में हैं. उन्हें 2023 के विधानसभा चुनाव में करीब 50 हजार वोट मिले थे और वे तीसरे स्थान पर रहे थे.

रामगढ़ में आमने-सामने की लड़ाई :मौजूदा विधायक कांग्रेस के जुबैर खान के निधन के कारण यह सीट खाली हुई है. इस सीट पर कांग्रेस ने सहानुभूति का कार्ड खेला है और जुबैर खान के बेटे आर्यन खान को टिकट दिया है. जबकि भाजपा ने सुखवंत सिंह को मैदान में उतारा है. सुखवंत सिंह 2018 में भाजपा के टिकट पर और 2023 में टिकट नहीं मिलने पर बागी होकर आजाद समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था. हालांकि, दोनों ही बार वे जीत दर्ज नहीं कर सके. अलवर के वरिष्ठ पत्रकार प्रेम पाठक का कहना है कि इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होने पर कांग्रेस को फायदा मिलता है. जबकि, आमने-सामने की टक्कर में भाजपा को फायदा मिलता है.

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