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राहुल गांधी की मेगा मन्नत, दिल बदल करेंगे राज, मध्य प्रदेश से बहेगी बदलाव की बयार - RAHUL GANDHI MADHYA PRADESH VOW

संविधान और अंबेडकर के जरिए राहुल गांधी मध्यप्रदेश समेत देश में खोई जमीन पाने की कोशिश में. कितनी सफल होगी रणनीति. विश्लेषण.

Rahul Gandhi Madhya Pradesh Vow
राहुल गांधी की महू में मेगा मन्नत (Etv Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 27, 2025, 1:55 PM IST

Updated : Jan 27, 2025, 5:11 PM IST

भोपाल (गोपाल वाजपेयी) :बीते दो दशक से केंद्र के साथ ही कई प्रमुख राज्यों में सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में फिर से खड़ी होने की कोशिश कर रही है. बीते दो-ढ़ाई साल से संविधान पर संकट और बाबासाहेब अंबेडकर के अपमान को प्रमुख मुद्दा बनाकर पूरी कांग्रेस खासकर राहुल गांधी बीजेपी पर हमलावर हैं. इन दोनों मुद्दों को लेकर कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन फिर से वापस लेने के लिए संघर्ष कर रही है. बीते लोकसभा चुनाव में इन मुद्दों ने कांग्रेस को ताकत भी दी, जब उसकी सीटें दोगुनी होकर करीब 100 तक पहुंच गईं. इससे उत्साहित कांग्रेस अब इसी रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रही है. इंदौर के पास बाबासाहेब अंबेडकर की जन्मस्थली महू पर कांग्रेस का मेगा शो इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.

मध्यप्रदेश के साथ ही पड़ोसी राज्यों पर कांग्रेस की नजर

कांग्रेस की महू में बड़ी रैली को लेकर लोगों के मन में कई प्रकार के सवाल हैं. संविधान और अंबेडकर के नाम पर लगातार बीजेपी पर हमला कर रही कांग्रेस साल 2025 के गणतंत्र दिवस के ठीक एक दिन बाद मध्यप्रदेश के महू में मेगा रैली क्यों कर रही है? अगर बिहार-उत्तर प्रदेश राज्यों के विधानसभा चुनाव छोड़ दिए जाएं तो अभी कहीं और चुनाव भी नहीं हैं. लोकसभा चुनाव के साथ ही मध्यप्रदेश सहित प्रमुख हिंदी पट्टी राज्यों में आगामी 4 साल तक कोई विधानसभा चुनाव भी नहीं हैं. ऐसे में कांग्रेस द्वारा इतना बड़ी रैली करने के पीछे क्या रणनीति है? क्या कांग्रेस संविधान और अंबेडकर का मुद्दा इन आगामी 4 सालों तक जीवित रखने की कोशिश में है? इन आगामी 4 सालों में कांग्रेस इस प्रकार की और भी रैली समय-समय पर करती रहेगी? क्या मध्यप्रदेश में इस मेगा रैली से कांग्रेस फिर से खड़ी हो जाएगी? क्या मध्यप्रदेश के साथ ही पूरे देश में कांग्रेस दलितों की सहानुभूति जिंदा रखने में कामयाब रहेगी? इन सवालों के जवाब सियासत की गलियारों में भी एक-दूसरे से पूछे जा रहे हैं.

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मेगा रैली के लिए कांग्रेस ने कैसे की तैयारी

मध्यप्रदेश के इंदौर से सटा महू बाबासाहेब अंबेडकर की जन्मस्थली है. यहां पर अभी तक किसी राजनीतिक दल ने इतना बड़ी रैली नहीं की. कांग्रेस ने इस रैली की व्यापक स्तर पर तैयारी की. रैली में दो लाख से ज्यादा लोगों को इकट्ठा करने की तैयारी बीते एक माह में की गई. इस मेगा रैली में एक बड़े मंच पर राहुल गांधी, खरगे सहित 272 नेताओं के लिए कुर्सियां लगाई गई हैं. सभी प्रदेशों के कांग्रेस नेताओं को आमंत्रित किया गया. कांग्रेस शासित राज्यों के सीएम, डिप्टी सीएम, प्रदेशाध्यक्ष सहित पूरी कार्यकारिणी को प्रमुख मंच पर जगह दी गई है. अगर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की मीटिंग को छोड़ दिया जाए तो बीते 15 साल में कभी इतना बड़ा आयोजन कांग्रेस ने नहीं किया.

कांग्रेस के लिए ढाई साल से अंबेडकर इतने अहम क्यों ?

खास बात ये है कि 3 साल पहले तक कांग्रेस की रैलियों में अंबेडकर का नाम कभीकभार ही आता था. लेकिन बीते ढाई साल से कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी 'संविधान बचाओ' की मुहिम चला रहे हैं. इसी क्रम में जातिगत जनगणना का मुद्दा भी राहुल गांधी जोर-शोर से उठा रहे हैं. ढाई साल से राहुल गांधी अपने भाषण में संविधान की लाल किताब भी साथ रखते हैं. दरअसल, एक समय दलित वोटर्स पर कांग्रेस का एकाधिकार था. दलित और आदिवासी वोटर्स की दम पर कांग्रेस ने सालोंसाल देश के साथ ही अधकांश राज्यों में राज किया. लेकिन बीते दो दशक से ये वोटर्स कांग्रेस से छिटक गया है. अगर ये वोटर्स फिर से साथ आए, तभी सत्ता की राह दिख सकती है.

मेगा शो के लिए अंबेडकर की जन्मस्थली को ही क्यों

कांग्रेस ने अपने सबसे बड़े कार्यक्रम के लिए बाबासाहेब अंबेडकर की जन्मस्थली को ही क्यों चुना? इसके पीछे का मकसद बिल्कुल साफ दिखता है. गौरतलब है कि मध्यप्रदेश देश के उन राज्यों में आता है, जहां एससी और एसटी आबादी बड़ी संख्या में है. महू की भौगोलिक संरचना ऐसी है जहां से मध्यप्रदेश के साथ ही महाराष्ट्र, राजस्थान, यूपी, छत्तीसगढ़, और गुजरात में कांग्रेस अपना संदश देने में सफल हो सकती है. इन राज्यों में एससी और एसटी वोटर्स निर्णायक स्थिति में हैं. अगर कांग्रेस संविधान और अंबेडकर के मुद्दे को आगामी 4 साल तक इसी प्रकार जीवित रखेगी तो एक हिंदी पट्टी राज्य से दूसरे कई राज्यों तक पकड़ मजबूत कर सकती है. यही कारण है कि इस मेगा रैली में मध्यप्रदेश से जुड़े राज्यों के नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में पहुंचे.

बीजेपी को संविधान विरोधी क्यों बता रही कांग्रेस

बीते लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने संविधान खत्म करने के नाम पर ऐसा घेरा कि 400 पार का नारा लगाने बीजेपी को बहुमत भी नहीं मिल सका. वहीं, कांग्रेस ने अपनी सीटें दोगुनी कर ली. इसके बाद संसद में गृह मंत्री अमित शाह के कथित अंबेडकर विरोधी बयान और आसएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयानों को हथियार बनाकर कांग्रेस फिर लोगों को ये भरोसा जताने में जुटी है कि बीजेपी का असली मंशा संविधान खत्म करने की या संविधान बदलने की है. साफ है कि संविधान और अंबेडकर का मुद्दा उठाकर कांग्रेस बीजेपी को फिर से मजबूत नहीं होना देना चाहती. दलित और आदिवासी वोटर्स के साथ ही ओबीसी को भी अपनी ओर खींचने के लिए कांग्रेस की कोशिशें और तेज होने की संभावना है.

दलित और आदिवासी वोटर्स इतने अहम क्यों

मध्यप्रदेश सहित राजस्थान और छत्तीसगढ़ में साल 2023 के अंत में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदों पर कुठाराघात हुआ. कांग्रेस को लगता था कि कम से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसे सत्ता मिलने वाली है. सियासत के जानकार भी ऐसा ही बता रहे थे लेकिन जब नतीजे आए तो बीजेपी ने एकतरफा जीत हासिल की. सबसे ज्यादा दुर्गति मध्यप्रदेश में हुई. गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में सत्ता की चाबी दलित और आदिवासियों के पास है. खासकर आदिवासियों पर इससे पहले कांग्रेस की मजबूत पकड़ रही लेकिन इस विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटर्स का फिफ्टी-फिफ्टी बंटावारा हो गया. वहीं, दलितों ने कांग्रेस को पूरी तरह से नकार दिया. मध्यप्रदेश में विधानसभा की कुल सीटें 230 हैं. इनमें से एसटी के लिए आरक्षित कुल सीटें 47 हैं. इनमें से कांग्रेस को 22 सीटें ही मिल सकीं, जबकि बीजेपी को 24 सीटें मिलीं. एक सीट अन्य के खाते में गई. वहीं, एससी के लिए आरक्षित सीटें 35 हैं. इनमें बीजेपी को 26 तो कांग्रेस को महज 9 सीटें मिली. मध्यप्रदेश में दलित और आदिवासी वोटर्स की संख्या करीब 29 फीसदी है. इसी वोटर्स के लिए असली लड़ाई है.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सामने क्या-क्या चुनौतियां

गौरतलब है कि बीजेपी के लिए गुजरात के बाद अगर कोई राज्य सबसे मजबूत गढ़ के रूप में है तो वह है मध्यप्रदेश. यहां कांग्रेस बीते 21 सालों से सत्ता से बाहर है. इस दौरान 2018 के विधानसभा चुनाव में जैसे-तैसे कांग्रेस ने सरकार बनाई तो गुटबाजी के कारण सरकार डेढ़ सरकार ही चल पाई. और फिर बीजेपी सत्ता में आ गई. साल 2023 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारा झटका लगा. 230 विधानसभा सीटों में केवल 67 सीटें ही जीत सकी. इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में 29 की 29 सीटें बीजेपी ने जीत ली. कांग्रेस की इस दुर्गति के पीछे प्रदेश कांग्रेस में व्यापक स्तर पर गुटबाजी को माना गया. गुटबाजी का आलम अभी भी ऐसा ही है. प्रदेश कांग्रेस की बागडोर जीतू पटवारी को दी गई लेकिन वह भी हालात बदलने में नाकाम साबित हो रहे हैं. विधानसभा में विपक्ष के नेता उमंग सिंघार और जीतू पटवारी में 36 का आंकड़ा है. कमलनाथ भी जीतू पटवारी की शिकायत आलाकमान से कर चुके हैं. दिग्विजय सिंह, अजय सिंह और अजय यादव के अपनी-अपनी महात्वाकांक्षा पार्टी हित से ऊपर हैं.

संविधान और अंबेडकर के मुद्दे को जीवित रखने की कोशिश

वरिष्ठ पत्रकार योगी योगीराजकहते हैं "मध्यप्रदेश में कांग्रेस कठिन दौर से गुजर रही है. कांग्रेस अपनी जमीन हासिल करने के लिए अंबेडकर और संविधान को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश में है. हाल के लोकसभा चुनाव में ये मुद्दा कुछ हद तक सफल भी रहा. हालांकि आगामी 4 साल तक कोई चुनाव नहीं हैं. लेकिन कांग्रेस संविधान के मुद्दे को जीवित रखना चाहती है. बाबासाहेब की जन्मस्थली पर कांग्रेस की बड़ी रैली करने की बड़ी वजह यही है. इस मेगा रैली का कितना असर मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों पर पड़ेगा, ये आने वाला वक्त बताएगा लेकिन इस आयोजन से सुस्त पड़े कांग्रेस कार्यकर्ताओं में कुछ इनर्जी जरूर मिल सकती है." वहीं वरिष्ठ पत्रकार केडी शर्माका कहना है "मध्यप्रदेश कांग्रेस में जारी गुटबाजी जब तक खत्म नहीं हो जाती, तब तक बीजेपी से मुकाबला करना असंभव है. महू की रैली से भी कुछ खास फर्क पड़ने वाला नहीं. इस बड़ी रैली से ये संकेत जरूर मिले हैं कि संविधान और अंबेडकर का मुद्दा कांग्रेस के लिए दीर्घकालीन हैं."

Last Updated : Jan 27, 2025, 5:11 PM IST

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