पूर्णियाःबिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा सहित कई राज्यों में किसान धान की खेती में जुटे हुए हैं. किसी ने बासमती की फसल लगा रखी है तो कोई मसूरी और हाइब्रिड किस्मों की खेती कर रहा है, लेकिन बिहार के पूर्णिया में कई किसान अब आम धान की खेती की बजाय काला धान की खेती में रूचि ले रहे हैं. किसानों का मानना है कि काला धान की खेती में खर्च तो सामान्य खेती की तरह ही है लेकिन मुनाफा तगड़ा है. दरअसल इस धान से तैयार चावल 4 सौ से 5 सौ रुपये किलो तक आसानी से बिक जाता है.
पार्टियों में खास डिमांडः काला चावल बेहद ही खुशबूदार होता है और इससे बना खीर को बेहद ही स्वादिष्ट होता है. ऐसे में शादी-समारोहों या अन्य पार्टियों में बासमती चावल की जगह अब काला चावल की मांग बढ़ने लगी है. सबसे बड़ी बात कि किसान खुद अपने उत्पादित चावल दुकानों तक पहुंचाते हैं और बिचौलियों की जरूरत नहीं होती. सामान्य चावल जहां 30 से 40 रुपे किलो बिकता है वहीं काला चावल आसानी से 4 सौ से 5 सौ रुपये किलो तक बिक जाता है.
सामान्य धान की तरह होती है खेतीः काले धान की खेती बिल्कुल वैसी ही होती है जैसे किसी सामान्य धान की खेती होती है. मई में इसकी नर्सरी लगाई जाती है जबकि जून में इसकी रोपाई शुरू हो जाती है. वहीं करीब 4 से 5 महीने में इसकी फसल तैयार हो जाती है. खाद-पानी भी आम धान की तरह ही लगता है.
पौष्टिकता से भरपूर है काला चावलःकाले धान से निकलने वाले काले चावल की बाजार में इसलिए ज्यादा डिमांड रहती है क्योंकि इसमें विटामिन बी, विटामिन ई, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और कई पोषक तत्त्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. ऐसे में चिकित्सकों की सलाह पर लोग मोटी रकम खर्च कर काले चावल का सेवन कर रहे हैं.