रायपुर:यदि आपको छत्तीसगढ़ी संस्कृति और आदिवासी परंपरा को करीब से जानना और देखना है तो इसके लिए नवा रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन से बढ़िया जगह दूसरी नहीं है. आप यहां एक ही जगह पर छत्तीसगढ़ के पुरखों की स्मृतियां और निशानियां देख सकते हैं. सारी चीजें एक ही जगह स्थापित करने के कारण इसे एक ही उद्यान यानी पुरखौती मुक्तांगन कहा गया. करीब 200 एकड़ में फैले इस स्थल की प्राकृतिक छटा अनुपम है.यहां पर आपको छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासियों की संस्कृति,सभ्यता,भाषा,शैली,खानपान, वेशभूषा और जनजीवन को जानने का करीब से मौका मिलेगा.
पुरखौती मुक्तांगन में आकर्षण का केंद्र :पुरखौती मुक्तांगन में कृत्रिम झरना, पहाड़, गांव, खेत-खलिहान, आदिवासी जीवन, पारंपरिक नृत्य शैली को प्रस्तुत करतीं प्रतिमाएं लोगों को अपनी ओर खींचती हैं.यहां प्राकृतिक वातावरण और मनमोहक चीजों को आप नजदीक से देख सकते हैं. परिवार के समय अच्छा समय बीताने के लिए पुरखौती मुक्तांगन सबसे अच्छी जगह है.
कब बना पुरखौती मुक्तांगन :छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के बाद 7 नवंबर 2006 को तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने रायपुर के उपरवारा गांव में संग्रहालय का उद्घाटन किया था. मुक्तांगन कैंपस में छत्तीसगढ़ का खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर का छोटा प्रतिरूप, बस्तर के प्रसिद्ध शक्तिपीठ दंतेश्वरी मंदिर, चित्रकोट जलप्रपात, बस्तर की पहाड़ी पर स्थित ढोलकल गणेश प्रतिमा, ऐतिहासिक बस्तर दशहरा का रथ प्रतिरूप भी बनाया गया है. यहां खुले आंगन में करीब पांच एकड़ में आमचो बस्तर यानी हमारा बस्तर है. जहां छत्तीसगढ़ की लोककला, लोकनृत्य की झलक दिखाई गई है. विशेषकर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध पंथी नृत्य, आदिवासी नृत्य, सुआ नृत्य, राउत नृत्य,नाचा, गेड़ी नृत्य करते हुए कलाकारों की प्रतिमाएं मन मोह लेती हैं.