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उत्तर प्रदेश में फल-फूल रहे हैं भाजपा का साथ पाने वाले क्षेत्रीय दल - भारतीय जनता पार्टी

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha elections 2024) का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. सभी दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. चुनावों से पहले ऐसे ज्यादातर दल भारतीय जनता पार्टी के साथ हो लिए हैं. जानिए क्या है यूपी में भाजपा का साथ पाने वाले क्षेत्रीय दलों की स्थिति. पढ़ें पूरी खबर.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 1, 2024, 8:39 PM IST

लखनऊ :प्रदेश में कई ऐसी छोटी राजनीति पार्टियां हैं, जिनका प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रभाव है. लोकसभा चुनावों से पहले ऐसे ज्यादातर दल भारतीय जनता पार्टी के साथ हो लिए हैं. कुछ तो पहले से साथ थे ही. जो दल पिछले चुनावों में भाजपा के साथ रहे हैं, उनका जनाधार भी बढ़ा है और सत्ता सुख भी भोगने का अवसर प्राप्त हुआ है. अपना दल (एस), हो या सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) अथवा निषाद पार्टी. सभी दलों ने अपनी ताकत बढ़ाई है. हां, सुभासपा विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा का साथ छोड़ सपा के साथ गई, जिसका खामियाजा उसे भोगना पड़ा और विधानसभा चुनावों में वह उतनी सीटें नहीं जीत पाई, जितनी भाजपा के साथ रहते जीत सकती थी. मौके की नजाकत देख पार्टी प्रमुख फिर भाजपा के साथ हो लिए हैं और जल्दी ही मंत्री बन सकते हैं.


अनुप्रिया पटेल (फाइल फोटो)

अपना दल की एक सीट की मांग :यदि 2022 के विधानसभा चुनावों की बात करें, तो भाजपा से गठबंधन के बाद अपना दल (सोनेलाल) के 12 प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. वहीं पार्टी के दो नेता लोकसभा सांसद भी हैं. ऐसे में आगामी लोकसभा चुनावों में अपना दल चार सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारना चाहता है. हालांकि, भाजपा उन्हें दो से ज्यादा सीटें देने के लिए कतई तैयार नहीं है. पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल केंद्रीय मंत्री हैं और उनके पति आशीष पटेल राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. ऐसे में अनुप्रिया चाहती हैं कि उनकी पार्टी का प्रदेश में और विस्तार हो. वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भी अपने लिए एक सीट चाहती हैं. भाजपा उनकी मुराद पूरी करेगी, ऐसा लगता नहीं है. हालांकि, अपना दल की मांग जारी है.


जयंत चौधरी (फाइल फोटो)

भाजपा के साथ जाने का फायदा :राष्ट्रीय लोकदल का पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर अच्छा जनाधार है. इस पार्टी ने पिछला विधानसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा था और आठ सीटें जीतने में कामयाब हुई थी. एक सीट पर बाद में उपचुनाव हुआ वह भी आरएलडी के खाते में ही गई. हालांकि, अब लोकसभा चुनाव रालोद, भाजपा के साथ मिलकर लड़ने का मन बना रही है. बस आधिकारिक घोषणा होनी शेष है. रालोद भाजपा से अपने लिए चार सीटों की मांग कर रही है, लेकिन भाजपा उनकी यह मांग शायद ही माने. वहीं, समाजवादी पार्टी उन्हें सात सीटें देने पर राजी थी. ऐसा लगता है कि रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी को भाजपा के साथ जाने में ही ज्यादा फायदा दिखाई दे रहा है. इसीलिए वह कम सीटें पाकर भी भाजपा के हमराही होना चाहते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि प्रदेश की योगी सरकार में उनकी पार्टी को प्रतिनिधित्व मिल जाएगा और यदि भाजपा दोबारा सत्ता में लौटती है तो केंद्र की मोदी सरकार में भी मंत्री बनने का भी जैकपाॅट लग सकता है.

ओम प्रकाश राजभर (फाइल फोटो)

लोकसभा चुनाव में एक सीट की मांग :समाजवादी पार्टी गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ने वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी विधानसभा चुनावों में छह सीटें ही जीत पाई थी. हालांकि, पार्टी मुखिया ओम प्रकाश राजभर को ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद थी. हां, विश्लेषकों का मानना है कि यदि वह भाजपा के साथ होते तो शायद ज्यादा सीटें जीत सकते थे. ओम प्रकाश राजभर को लगता था कि सपा उनके बेटे को विधान परिषद भेज देगी, लेकिन अखिलेश ने उनकी नहीं सुनी. निराश होकर वह फिर भाजपा के साथ हो लिए हैं. उम्मीद है कि भाजपा जल्द ही उन्हें प्रदेश में कैबिनेट मंत्री बना देगी. वह लोकसभा चुनावों में अपने बेटे के लिए एक टिकट मांग रहे हैं. उनकी पार्टी से कोई लोकसभा सदस्य है भी नहीं. माना जा रहा है कि ओम प्रकाश राजभर की यह ख्वाहिश भाजपा पूरी कर सकती है. ऐसे में भाजपा गठबंधन उनके लिए फायदे का सौदा है.


विधानसभा चुनाव 2022 का परिणाम

निषाद पार्टी को एक सीट की उम्मीद : निषाद पार्टी की बात करें तो विधानसभा चुनावों में उसके छह नेता जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. वहीं, 2019 में भाजपा ने उनके बेटे को अपने टिकट पर चुनाव लड़ाया था और वह जीतकर लोकसभा भी पहुंचा था. अब पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद चाहते हैं कि आगामी चुनाव में उनकी पार्टी को लोकसभा चुनाव में कम से कम एक सीट जरूर मिले. इस बात की उम्मीद कम ही है कि भाजपा उन्हें अलग से एक सीट देगी. हां, उनके बेटे प्रवीण निषाद दोबारा भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं.


विधानसभा चुनाव 2022 का परिणाम

यदि विपक्ष की बात करें, तो चाहे कांग्रेस हो, समाजवादी पार्टी या बसपा, इन दलों के साथ चुनावी गठबंधन के लिए कोई ऐसा छोटा दल नहीं है, जिसका कोई क्षेत्रीय वजूद अथवा वोट बैंक हो. जन सत्ता दल (लोकतांत्रिक) के पास दो विधानसभा की सीटें हैं और इस पार्टी के मुखिया रघुराज प्रताप 'राजा भैय्या' भी जरूरत पड़ने पर भाजपा के साथ ही खड़े होते रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा की रणनीति अन्य दलों की अपेक्षा कहीं बेहतर है. सपा और कांग्रेस मिलकर भाजपा के खिलाफ क्या रंग दिखा पाते हैं, कहना मुश्किल है. वहीं, बसपा के सामने खुद के वजूद का संकट है.

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