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13 साल की बच्ची को साध्वी बनाने पर जूना अखाड़े का बड़ा एक्शन, संत को किया निष्कासित, बच्ची को भेजा घर - MAHAKUMBH JUNA AKHARA DECISION

रमता पंच ने सात साल के लिए निकाला, आगरा के परिवार की बच्ची महंत कौशल गिरि को मिली थी दान में

जूना अखाड़े ने महंत कौशल गिरि को किया निष्कासित.
जूना अखाड़े ने महंत कौशल गिरि को किया निष्कासित. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 11, 2025, 11:59 AM IST

प्रयागराज:महाकुंभ के पहले स्नान पर्व से पहले 13 साल की नाबालिग को साध्वी बनाकर दान के रूप में प्राप्त करने वाले जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि के खिलाफ कड़ा एक्शन लिया गया है. संत को जूना अखाड़े से 7 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया है. यह कार्रवाई बच्ची को गलत ढंग से साध्वी बनाने के लिए की गई है. यह निर्णय शुक्रवार को रमता पंच की मौजूदगी में अखाड़े के शीर्ष पदाधिकारियों की पंचायत में लिया गया. इसी के साथ साध्वी बनाई गई बालिका को घर भेजा दिया गया है.

जूना अखाड़े ने महंत कौशल गिरि को किया निष्कासित. (Video Credit; ETV Bharat)

पिंडदान कराने की थी तैयारी:जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि ने आगरा के रहने वाले एक परिवार की 13 वर्षीय बेटी को दान के रूप में प्राप्त करने का दावा किया था. इसके बाद बच्ची को साध्वी बना लिया गया. मीडिया में भी उस पर रिपोर्ट प्रकाशित हुई थीं. कहा जा रहा था कि संन्यासिनी की दीक्षा दिलाने के बाद महाकुंभ में धर्मध्वजा पर संस्कार कराया जाएगा. इसके बाद परंपरा के अनुसार बालिका के जीते जी पिंडदान कराने की भी तैयारी थी.

नाम रखा गया साध्वी गौरी:कौशल गिरि का कहना था कि इसके बाद बच्ची सांसारिक जीवन त्याग कर पूरी तरह संन्यासिनी जीवन में प्रवेश कर जाएगी. उसका नाम साध्वी गौरी रखा गया था. उसके माता-पिता का कहना था कि उनकी बेटी शुरू से साध्वी बनना चाहती थी. इसलिए उसके फैसले पर उन्हें कोई ऐतराज नहीं है. इसके पीछे माता-पिता की भी रजामंदी है.

अखाड़े की बैठक में कौशल गिरि को किया गया निष्कासित: हालांकि 13 साल की बच्ची को साध्वी बनाने की खबरें आने के बाद सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना शुरू हो गई. इसके बाद शुक्रवार को जूना अखाड़े की छावनी में रमता पंच की मौजूदगी में शीर्ष पदाधिकारियों की बैठक बुलाई गई. बैठक में जून खड़े के संत संरक्षक श्रीमहंत गिरि, श्रीमहंत प्रेम गिरि, प्रवक्ता दूधेश्वरनाथ पीठाधीश्वर श्रीम नारायण गिरि, मेला प्रभारी मोहन भारती, सचिव महेश पुरी शामिल रहे. इस पंचायत में नाबालिग को साध्वी बनाकर दान में प्राप्त करने वाले महंत कौशल गिरि को सात साल के लिए जूना अखाड़े से निष्कासित करने का फैसला किया गया.

जूना अखाड़े के प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि ने बताया कि बच्ची नाबालिग थी. ऐसे में उसे उसके घर आगरा भेजने का निर्णय लिया गया. इसके अलावा रमता पंच के निर्णय के अनुसार उसके गुरु कौशल गिरि को सात साल के लिए अखाड़े से निष्कासित कर दिया गया है.

वैदिक मंत्रोच्चार के बीच बच्ची को कराया था शिविर प्रवेश :साध्वी बनाई गई नाबालिग के पिताआगरा के पेठा व्यवसायी हैं और मां गृहणी. बच्ची परिवार में बड़ी संतान है, इसके अलावा एक छोटी बहन भी है. फिलहाल बच्ची कक्षा नौ की छात्रा है. पेठा व्यवसायी बच्ची के साथ पिछले सोमवार को महाकुंभ में पहुंचे. जहां पर बेटी का जूना अखाड़ा को कन्यादान किया. बताया जा रहा है कि बेटी की भी इच्छा थी कि वो साध्वी बने. इसलिए गुरुग्राम (हरियाणा) से आए जूना अखाड़ा के महंत कौशल गिरि ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच साध्वी को शिविर प्रवेश कराया और नामकरण 'गौरी' किया.

चार साल से कर रहे गुरु सेवाः पेठा व्यवसायी की पत्नी के मुताबिक परिवार के सभी लोग चार साल से गुरु की सेवा से जुड़े हैं. कौशल गिरि ने मोहल्ले में भागवत कथा सुनाई थी. उसी समय से मन में भक्ति जागृत हुई. इसके चलते 26 दिसंबर को दोनों बेटियों के साथ महाकुंभ मेला क्षेत्र में आए. गुरु के सानिध्य में शिविर सेवा में लगे हैं. बेटी ने साध्वी बनने की इच्छा जताई थी. बेटी की इच्छा पूरी करने के लिए कौशल गिरि के माध्यम से सेक्टर 20 में शिविर प्रवेश कराया. बताया कि बच्चों की खुशी में ही मां-बाप की खुशी होती है. बेटी साध्वी बनना चाहती है तो ये उसकी इच्छा है.

नवरात्र में नंगे पैर आती थी स्कूलःआगरा केजिस स्कूल में बच्ची पढ़ती है, उसके प्रबंधक ने बताया कि वह बेहद होनहार है. उसमें अपनी बातों से हर किसी को आकर्षित करने की कला है. वह काफी धार्मिक प्रवृत्ति की है. नव दुर्गा में वह नंगे पैर ही स्कूल आती थी. साध्वी बनने का उसका निर्णय उचित और स्वागतयोग्य है. ये हमारे लिए भी सौभाग्य की बात है.

ये है साध्वी और सन्यास लेने की प्रक्रियाःसनातन धर्म परंपरा के अनुसार साध्वी पद धारण करने के लिए पांच गुरु उन्हें चोटी, गेरूआ वस्त्र, रुद्राक्ष, भभूत और जनेऊ देते हैं. गुरु इन्हें ज्ञान और मंत्र के साथ संन्यासी जीवन शैली, संस्कार, खान-पान, रहन-सहन आदि की जानकारी देते हैं. इन्हीं संस्कारों का पालन करते हुए महिला संन्यासियों को अपनी पांच इंद्रियों काम, क्रोध, अंहकार, मध और लोभ पर नियंत्रण करना पड़ता है. कुंभ के चौथे स्नान पर्व पर दीक्षांत समारोह में पूर्ण दीक्षा दी जाती है. इस दिन इन्हें व्रत रखना होता है. साथ ही ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप कर गंगा में 108 डुबकियां लगानी होती हैं और हवन संपन्न कराया जाता है.

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